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Nksahu0007writer
नवीन_के_दोहे कपास (दोहा) फूल हो कपास जैसा ,सीधा होवत बॉस जीवोमृत्तन काम आऊ,प्रभुतेचरणोंदास छत्तीसगढ़ - महासमुन्द N.ksahu0007@writer ©Premyad kumar naveen #नवीन_के_दोहे #छत्तीसगढ़_महासमुन्द #प्रेमयाद_कुमार_नवीन कपास (दोहा) फूल हो कपास जैसा ,सीधा होवत बॉस जीवोमृत्तन काम आऊ,प्रभुतेचरणोंदास
Aniket Sen
तू अगर है परिक्षा, तो मैं अभ्यास बन जाऊँगा, माँ, तू गुरु है, तो मैं तेरा दास बन जाऊँगा। तू चाँद है अगर, तो मैं अमृत की प्यास बन जाऊँगा, माँ, तू मेरी तकदीर लिख दे, मैं तेरा उपन्यास बन जाऊंगा। तू अगर हाथों से ना खिलाये, तो मैं उपवास बन जाऊँगा, माँ, तू ना मुस्कुराएगी, तो मैं उदास बन जाऊँगा। तू फूल है अगर, तो मैं महकता एहसास बन जाऊँगा, माँ, तू मद्धम हवा, तो मैं हौले से उड़ता कपास बन जाऊँगा। तेरी हर एक बात से मैंने सीखा है बहुत कुछ, माँ, तू ख़ामोश रहेगी, तो मैं तेरी आवाज़ बन जाऊँगा। इस छोटी सी दुनीयाँ में भी कोई वजूद नहीं मेरा, माँ, तू मुझे बेटा बुला और मैं ख़ास बन जाऊँगा। एक तुझ ही से तो यह मेरा सारा जीवन है, माँ, तू ना रहेगी, तो मैं ज़िंदा लाश बन जाऊँगा। #माँ #गुरु #कपास #ज़िंदालाश #एहसास #mother #yqdidi #ifyoulikeitthenletmeknow
Mo k sh K an
मैं कपास के खेतों में खड़ा हो कर देखता हूँ जिंदगी कैसे उड़ी जा रही है हवाओं की तासीर भी कितनी बेपरवाह होती है उलझ जाए तो बवंडर बन जाती है सुलह जाए तो पतंग कपास कैसे धीर धरे वो आसमानों में तैरते बादलों को देख कर अक़्सर ख़्वाब संजो लेती है और धर देती है पैर हवाओं की हथेली पर वो बिजली के तारों से उलझी उलझी बेताल सी लटकी हसरतें कपास के खेतों से कहाँ नज़र आती हैं मैं कपास के खेतों में खड़ा हो कर देखता हूँ जिंदगी कैसे उड़ी जा रही है #कपास #kapas #mera_aks_paraya_tha #mikyupikyu #tasavvuf #kavishala #hindinama #nojotopune #meethashona
Noor Hindustani
Irshad Ali Ishaque
ख़ुदाए अर्ज़! मैं #बेटी के ख़्वाब कात सकूँ तू मेरे खेत में इतनी कपास रहने दे..! 'शहज़ाद नीर'
Prerna Singh
मुझ से न पूछो मोहब्बत के किस्से , वो नाजूक रेश्मी धागे बरसों पहले कपास में बदल गये हैं .... ©Prerna Singh मुझ से न पूछो मोहब्बत के किस्से , वो नाजूक #रेश्मी धागे बरसों पहले #कपास में बदल गये हैं ....
Singer Nikki Banna
Anupama Jha
पलाश के फूल से हो गए हैं शब्द! निकलते हैं, फूटती हैं उनसे संवेदनायें, कपास सी, हल्की,फुल्की फिर भावनाओं के आँधी में उड़ती हैं, भटकती हैं दिशा हीन... ©अनुपमा झा (पूरी कविता अनुशीर्षक में) पलाश के फूल से हो गए हैं शब्द निकलते हैं फूटती हैं उनसे संवेदनायें कपास सी हल्की,फुल्की फिर भावनाओं के आँधी में उड़ती हैं