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Rupesh
पत्तियों के रंग भी क्या खूब होते है जिसमे मिल जाये उसको भी रंगीन करते है सब कुछ भूल जाये जब इनकी हवा के झोंके हर गम को बेगम कर देते है ©Rupesh #पत्तियों के रंग
Suruchi
प्रेम और ईर्ष्या कितने अजीब है न दोनों जहाँ जाते है साथ साथ जाते है, हम समझ नहीं पाते कब प्रेम ईर्ष्या का रूप लेलेता है। थोड़ा तो सही पर आ ही जाता है। हिंदी में "ईर्ष्या" कहते है, अंग्रेजी में आजकल के युवा(हमारी) जुबां में "Priorities" नाम देते है। 😜😜
Arun Mahra
मोहाब्त होने से पहले जात नहीं ना ही उम्र पूछती हैं मोहब्त की ना कोई टाइम है ना कोई वेद भाव मोहब्त कभी भी किसी वक्त पर किसी से भी हो सकती है ©Arun Mahra मोहाब्त के दिल में मेरा नाम है मेरे दिल में तेरा नाम है
Ek villain
संसद के भीतर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव तो अक्सर देखने को मिल जाता है लेकिन ऐसे अवसर कम ही मिलते हैं जब ठेका ओं की गूंज सुनाई दे पिछले दिन राज्यसभा में एक ऐसा ही नजारा देखने को मिला हुआ यह कि वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े विधायक पर चर्चा चल रही थी पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश इसके कुछ बिंदुओं में बदलाव चाहते थे इससे पहले उन्होंने स्थाई समिति में भी कुछ इस विधायक में बदलाव की सिफारिश की थी लेकिन सरकार उसे लेकर तैयार नहीं हुई ©Ek villain #humanrights संसद में गूंजा ठेकेदारों के नाम
Gurudeen Verma
शीर्षक - अपने बच्चों का नाम लिखावो स्कूल में ----------------------------------------------------------- (शेर)- पढ़ने की है उम्र इनकी, इनको स्कूल भेजो तुम। मजदूरी इनसे करवाकर, नहीं जीवन बिगाड़ो इनका तुम।। नाम लिखवाओ स्कूल में इनका, नहीं दूर बहुत है स्कूल। पढ़ा-लिखाकर अपने बच्चों की, जिंदगी सँवारो तुम।। ------------------------------------------------------------ सुन रे भैया, सुन री भाभी/सुन रे काका,सुन री काकी// अपने बच्चों का नाम, लिखावो स्कूल में। अपने बच्चों को, पढ़ने भेजो स्कूल में।। सुन रे भैया, सुन री भाभी/---------------------// अपने बच्चों का नाम------------------।। मजदूरी की उम्र इनकी, अभी नहीं है। शादी की भी उम्र इनकी, अभी नहीं है।। पढ़ने-लिखने की उम्र है, अभी इनकी। शिक्षित बनने को, इनको भेजो स्कूल में।। सुन रे दादा,सुन री दादी/सुन रे भैया,सुन री भाभी// अपने बच्चों का नाम------------------।। पढ़-लिखकर ही चांद पर, पहुंचा है मानव। जिला कलेक्टर, एसपी, बना है मानव।। पढ़-लिखकर ही बनता है,मानव वैज्ञानिक। बनने को डॉक्टर, बच्चे भेजो स्कूल में।। सुन रे ताऊ,सुन री ताई/सुन रे भैया, सुन री भाभी// अपने बच्चों का नाम------------------।। दूर नहीं, नजदीक है, सरकारी स्कूल। नहीं लेता है कोई फीस, सरकारी स्कूल।। फ्री पुस्तकें, मिड डे मील, योग्य शिक्षक है। मिलती है बहुत सुविधा, सरकारी स्कूल में।। सुन री बहिना, सुन री मौसी/सुन रे भैया,सुन री भाभी// अपने बच्चों का नाम------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #अपने बच्चों के नाम लिखावो स्कूल में
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