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Arunava Chakraborty

#Sunrise

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এক অপূর্ব আলো নত হোক গাছের পাতায়
ঝিলিমিলি লেগে যাক নদীর শান্ত শরীরে
তোমাকে ছুঁয়েছি যেই হিম হিম সাদা কুয়াশায়
সবকিছু শুভ হোক, তুমি থাকো হৃদয়ে গভীরে...
                                Happy new year.....

©Arunava Chakraborty #Sunrise

SILENT BABA

#wallpaper

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White सुनो सजनी 💖💖💖
इश्क़ की घड़ी को भी,,, 
तेरे सजदे मे रोक देंगे ,,,
हम तो मोहब्बत की राह में ,,,
कयामत को भी रोक देंगे ,,,

©SILENT BABA #wallpaper

`sanju sharan

#wallpaper

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White इस नाउम्मीद की रात में 
कब जगेगी उम्मीद 
तीस चांद की रात 
तीस अमावस्या की रात में 
उम्मीद टूटते हुए देखा 
कहीं भी आस का जुगनू 
नज़र ना आया मुझे 
एक उम्मीद की लौ 
जला दे मेरे प्रभु
एक दूज का चांद दिखा दे
फिर एक खुशनुमा सुबह का 
दर्शन करा दे प्रभु
अब सहन नहीं होता 
अपनों की तकलीफ़ 
एक उम्मीद की 
झलक दिखला दे प्रभु
दिखला दे प्रभु......

©`sanju sharan #wallpaper

Hariom Yadav

Reddy Awesome

#wallpaper

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నన్ను మరిచినా నా అక్షరాలు నీతో వుండాలని రాస్తున్న..✍️✍️

©Reddy Awesome #wallpaper

maruti

Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

#Sunrise

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कितना सुंदर शब्द है -"परमार्थ" है ना..!
और इसका साधारण शाब्दिक अर्थ क्या है,-"उत्कृष्ट वस्तु"। बहुधा हम सबने कथा पुराणों में इस शब्द को सुना समझा होगा किन्तु इसकी एक और सुंदर व्याख्या की जा सकती है। कैसे..? देखिये परमार्थ का सन्धि विग्रह करें तो दो पृथक पृथक शब्द बनते हैं अर्थात परम् और अर्थ..! परम् शब्द का अर्थ जिसके ऊपर कुछ भी ना टिक सके, और अर्थ अर्थात ऐसा द्रव्य जिससे भोगों को प्राप्त किया जा सके सामान्यतः इसे धन समझ लें (यद्पि अर्थ को बहुत विस्तृत रूप में माना जाता है किन्तु यहां केवल शाब्दिक अर्थ में समझें) इस प्रकार परमार्थ का अर्थ हुआ "सर्वोत्तम प्राप्य"। और सर्वोतम प्राप्य क्या है, वह जिसे एक बार प्राप्त कर लिया जाये तो फिर कुछ भी पाने की कोई कामना नहीं रहती.. और ऐसा प्राप्य है "परमपिता परमेश्वर" हांजी सरल शब्दों में परमार्थ का अर्थ ही परमेश्वर की प्राप्ति है।
अब प्रश्न आता है इस परमार्थ शब्द का प्रयोग किसके संदर्भ में किया जाता है तो उत्तर है मूलतः जीवमात्र के संदर्भ में..! जीव क्या है..? तो जीव प्रत्येक देहधारी में ईश्वर अंश जिसे ब्रम्हज्ञान द्वारा समझा जा सकता है, प्रत्येक जीव किसी ना किसी देह को धारण करता है और देहकर्म में निमग्न रहता है..! तो, परमार्थ जीव के लिए कहा गया है अब जीवों में भी सर्वोत्तम जीव है मनुष्य। अस्तु परमार्थ प्राप्ति की सर्वश्रेष्ठ योनि है मनुष्य जो परमार्थ प्राप्त कर पाने में अन्य जीवों से बहुत अधिक सामर्थ्य रखता है..! किन्तु केवल जीव परमार्थ को कैसे प्राप्त कर सकता है बिना किसी साधन के तब जीव को साधन रूप में देह प्राप्त हुई ताकि जीव कर्म के द्वारा परमार्थ प्राप्त कर सके..! किन्तु यहां भी एक समस्या है यदि जीव को देह प्राप्त हो भी गई तब उस देह के संचालन हेतु भी साधन की आवश्यकता तो होगी ही.. हाँ तो देह के लिए अति अनिवार्य तीन मुख्य वस्तुएँ हैं रोटी कपड़ा और मकान..! बस इतना देह की मुख्य आवश्यकता है जिसे जीव अपने कर्म से अर्जित करता दिखाई देता है.. पर यहां थोड़ा रुकते हैं और ये देखें कि क्या मानवदेह रुपी जीव अपने सम्पूर्ण जीवन में कितना देहापूर्ति में भागता है और कितना परमार्थ की ओर भागता है.. क्या मानवमात्र ने अपने जीवन के चरमोत्कर्ष को, परमार्थ को प्राप्त करने की कोई इच्छा भी की.वो तो अपने देह की आपूर्ति में परमार्थ को ही भूल बैठा है.! तब..? तब संत समाज उसकी विस्मृति को स्मृति में बदलने का प्रयास करता है, किन्तु वहाँ भी ये मानव समाज बिना स्वार्थ के परमार्थ से जुड़ना नहीं चाहता.. जबकि जीवन ही परमार्थ प्राप्ति के लिए मिला है।
जय सियाराम 🙏🙏

©अज्ञात #Sunrise

Alfaaz dil se

#wallpaper

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White एक खालीपन सा है अभी ए खुदा मेरे लफ्जों की स्याही में,
मिलेंगी तुझे तो जब ढूंढेगा छींटे गहरी मेंरी तन्हा स्याही में,

गुप अंधेरा दिखा है मुझको जब जब ढूंढा तुझे स्याही में,
रंग चाहे कितने भी रख लूं तेरे बिन मैं कागज़ की स्याही में,

रूप निखार सब लिख देते हैं मैं लिखता सादगी तेरी स्याही में,
जान डाल देती है एक अदा बस तेरी ना जानें क्यों स्याही में।।

©Alfaaz dil se #wallpaper

jeet musical world

#Sunrise

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ਜੇਕਰ ਨਾਮ ਜਪਿਆ ਵੰਡ ਛਕਿਆ
 ਕਿਰਤ ਕੀਤੀ ਫਿਰ ਆਖਣਾ ਧੰਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ 🙏
✍️ ਜਤਿੰਦਰ ਜੀਤ

©jeet musical world #Sunrise

Mangala Gowri r

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