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Mahesh Kumar

भारत की शासन व्यवस्था । #विचार

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सत्ताधारी खुदगर्ज बन गए ,पाकर जनता के शासन को । भूल गए अपने वादों को ,पाकर मंत्री पद के आसन को । गरीब जनता मजबूर बनी , खुदगर्जो के प्रशासन से । अधिकार नहीं मिलते हैं अब उनकों , अपने ही खुद के शासन में । अब सुधार जरूरी है , भारत के हर प्रशासन में । अब सुधार जरूरी है,भारत देश के शासन में । भारत की शासन व्यवस्था ।

HP

शासन

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राजशासन और सामाजिक संस्थानों द्वारा यह प्रयत्न किसी न किसी रूप में रहता ही है कि जनता का शरीर, मन और सामाजिक स्तर सुस्थिर रहे। शासन

Navin Arya

विकासखंड स्तरीय खेल स्पर्धा

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thoughtS by maheshjirekar

छत्रपती शासन!

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🙏🏻
सुर्य नारायण जर उगवले नसते तर..
आकाशाचा रंगचं समजला नसता..
जर छञपती शिवाजी राजे जन्मले नसते तर..
खरचं हिंदु धर्माचा अर्थच समजला नसता..
जय हिंदु प्रभो शिवाजी राजा!
🚩🔥🔥🔥🚩 छत्रपती शासन!

Ambrish Shukla

लोग 'शासन' पे ही

 उठा रहे हो सवाल जब

'सुशासन' कहके इसे

आप शर्मिंदा न करें #शासन #सुशासन

Snehi Uks

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सतीश तिवारी 'सरस'

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Author Harsh Ranjan

व्यवस्था

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दुनिया के कानूनों ने
मुझे ये सिखाया है कि 
घोड़ा और गधा एक है,
व्यवस्था की नजर में!
या कहें कि घोड़ापन अथवा है।
दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है।
सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है!
भूख और भूख का डर 
जल और वायु से भी पर्याप्त है।
कमाने वालों को कम खाने के गुण
बताए जा रहे हैं और लोग
उनकी रसोई के आटे-दाल से
भंडारे करवाये जा रहे हैं।
किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है,
एक किसान दो फसल काटकर भी
आयु में उतना कमाता है कि
उसके तीन पुश्त एक भी रात
भूखे न गुजारें! 
पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं
कि बेरोजगारी के दिन-रात
बिस्तर पर न गुजारें!
अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है
तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा
मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था

Author Harsh Ranjan

व्यवस्था

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दुनिया के कानूनों ने
मुझे ये सिखाया है कि 
घोड़ा और गधा एक है,
व्यवस्था की नजर में!
या कहें कि घोड़ापन अथवा है।
दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है।
सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है!
भूख और भूख का डर 
जल और वायु से भी पर्याप्त है।
कमाने वालों को कम खाने के गुण
बताए जा रहे हैं और लोग
उनकी रसोई के आटे-दाल से
भंडारे करवाये जा रहे हैं।
किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है,
एक किसान दो फसल काटकर भी
आयु में उतना कमाता है कि
उसके तीन पुश्त एक भी रात
भूखे न गुजारें! 
पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं
कि बेरोजगारी के दिन-रात
बिस्तर पर न गुजारें!
अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है
तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा
मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था

somnath gawade

प्रचलित व्यवस्थेविषयी
'व्यवस्थित' बोलले नाहीतर
 'व्यवस्था' आपल्याला
व्यवस्थित जागी पोहचविते.
      🤣😂 #व्यवस्था
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