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अंकित शर्मा बेख़बर
ख्वाहिशें दबी दबी सी रहने लगी है आज़ कल मेरी, ए बेख़बर! लगता है जरूरतों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी।। #57
विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात )
उसनें मर्द देखा है, $£€¥ मर्द का दर्द नहीं देखा || ©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़ 57
Dr. Devbrat Pundhir
अब फर्क नहीं पड़ता तेरी अदाकारियों का, मैं तेरी हर इक अदा से वाकिफ हूं, तू सजा ले कितनी भी शतरंज की बाजियां, मैं तेरी हर चाल से वाकिफ हूं।। devbrat#57