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Prashant Mishra
पवन रे लेजा तू संदेश, मिटा दे दो हृदयों के क्लेश उसकी अदालत में कर दे जा मेरा नज़रिया पेश... गुस्से में वो ठीक से घर ना, खाती पीती होगी कोस-कोसकर मुझको उसकी रैना बीती होगी जाकर कह दे उसको अब ना पहुँचाऊँगा ठेस पवन रे ले जा तू संदेश... रोज रात को सपने में मुझसे मिलने आती थी और सवेरे अपनी हिचकी में मुझको पाती थी इतने मधुर रिश्ते को खा गया थोड़ा सा आवेश दीपक जुगनू चाँद सितारे और हवा कह देना छोड़के सारी उपमाओं को 'मेरी जाँ' कह देना एक शब्द में छिपा हुआ है प्रेमकथा का श्लेष झगड़ा मुझसे शुरू हुआ था, मान लिया है मैंने सब कुछ मेरा करा-धरा था जान लिया है मैंने हाँ... तू है पूर्ण निर्दोष प्रिये , मेरा है सारा द्वेष तू ना मानी अब तो तुझको मानूँगा हरज़ाई मर जाऊँगा तेरे बिना ना सह पाऊँगा जुदाई साथ बितानी तेरे ज़िन्दगी जितनी बची है शेष फिर न प्रेमिका झेल सकी अपने प्रेमी का क्रंदन और तोड़कर आई घर-परिवार के सारे बंधन प्रेमी के घर तक पहुँची वो बदल बदलकर भेष पवनिया लेके गयी सन्देश,मिटा दी दोनों दिलों के क्लेश --प्रशान्त मिश्रा गीत: पवन रे लेजा तू सन्देश
Raju Kumar
महकी महकी बागो में फूल की एक कली मिल गई, मेने उसे छुआ तो दिल में खलबली मच गई, ©Raju Kumar महकी महकी बागो में
कवि अनिल सिंह अल्प
आकर तु अपना गुलाब लेजा अपने ख़त का जवाब ले जा कभी मिली तो मू ही फेर लेती है आ आकर मेरा आदाब लेजा लेजा
Bachan Manikpuri
जब मैं आसमान को देखती है तो उसकी हाथो के कामों को देख मैं हैरान हो जाती है कितनी सुंदर ये दुनिया बनाई एक एक कोना उसके प्यार से महक रहा है जिससे महकी महकी फिजा हो गई हैं। ©Bachan Manikpuri महकी महकी फिजा
Anuj Ray
जब से बदली है मेरे दिल के आईने की जगह, ऐसा लगता है, हो गया है किसी और का ऐ दिल। बड़ी अजीब सी ख़ुशी की चमक रहती है आंखों में, लगती है हर वक्त निग़ाहों में ,महकी महकी सी फज़ा। ©Anuj Ray #महकी महकी सी फजा
imtiyaz khan
या तेरे रूख़सार हैं क्या है ये बता जुल्फें ये खोल दी तू ने कि है छाई ये घटा आंखें ये तेरी हैं या प्याले है मय संभाले हुए खिल उठे होंठ कि मेरी दुनिया मे उजाले हुऐ चांद निकला है या आया है कहीं बाम पे तू कितना रखता है असर सुबह पे तू शाम पे तू महकी महकी सी फ़जा आज लगे है, शायद बिखर गया है हवाओं में मेरे नाम पे तू Imtiyaz Khan ©imtiyaz khan #महकी महकी सी फ़ज़ा
अनामिका पाण्डेय
महकी-महकी सी फजा मे भी कही तन्हां सी किसी पतझड़ का मैं बाजार नजर आती हूं कोई शैलाब भिगा देता कोर आंखों की मैं अपने आप की बीमार नजर आती हूं छीनकर चैनों सुकूं देके वास्ता उसका अपने दिल की ही गुनाहगार नजर आती हूं वक्त का ही तो तकाजा है जो आज भी शायद कल की तरहा ही मै बेजार नजर आती हूं खबर कुछ थी ही नहीं खुद को फना कर बैठे हारती खुद को मै हर बार नजर आती हूं खटकती ही रही खुद ही खुदी नजरों में मैं किसी धुंध की दीवार नजर आती हूं ©अनामिका पाण्डेय #महकी महकी सी फ़ज़ा