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राजेश कुशवाहा 'राज'
Dil Shayari आज फिर से गुस्ताखी करता हूँ,धर्मावलंबियों से सवाल करता हूँ। जो धर्म तुम्हारी संस्कृति है, उसी का क्यों अपमान करते हो। जिसे झूठ को तुम पाप कहते हो,फिर वही झूठ तुम क्यों कहते हो। दूसरे को लूटने को पाप कहते हो,फिर वही लूट तुम क्यों करते हो। पराये धन भोग को दुराचार कहते हो,फिर वही दुराचार तुम क्यों करते हो। पर स्त्री स्पर्श को व्यभिचार कहते हो,फिर वही व्यभिचार तुम क्यों करते हो। अहिंसा को ही परम धर्म कहते हो,फिर वही हिंसा तुम क्यों करते हो। जिस कृत्य से बचने को कहते हो, फिर वही कुकृत्य तुम क्यों करते हो। जिस गीता कुरान बाइबिल साहिब की बात करते हो, फिर उन्हीं ग्रन्थों की बातों का क्यों अपमान करते हो।। आज फिर से गुस्ताखी करता हूँ.....।। 🖋कुशवाहाजी 🖋 #धर्म #धर्म #धर्मग्रन्थ #अपमान #चोरी #पाप #दुराचार #दुराचारी
Ankit
है डर क्यों! जब सदियों से करते रहे तिरस्कार। वक्त बड़ा होता हमेशा; देखलो खुदा सुनता की नही अब! सुनियोजित पापों से मुक्ति की गुहार #पाप #धर्म #डर #yqdidi #yqbaba
Prakashatvam
कोई भी धर्म, कोई भी धर्म स्थल या कोई भी पवित्र जल, मनुष्य के मन, कर्म और वचन से किये गए पापों से मुक्ति नहीं दिला सकते। मनुष्य को अपने द्वारा किये गए कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। ©Prakashatvam #कर्म #धर्म #पाप #जीवन #सत्य
Sukhdev Panday
बुद्धि मर्दों के पास और धन औरतों के पास होता है। समधी का मतलब बराबर बुद्धि वाले,समधन का मतलब बराबर धन वाली। इतनी बड़ी बात तो हमारे रिश्ते नातों में छिपी है। ©Sukhdev Panday बुद्धि और धन
Satyavrat dwivedi
जब तक धर्मों में पाप धोने की ब्यवस्था है, तब तक लोग पाप धो धो कर पाप करते रहेंगे।। ©Satyavrat dwivedi #Truth #true #पाप #धर्म #satyavrat #Pencil
Rʌʋsʜʌŋ Kʋjʋʀ
जीवन का हर दाव अगर जीतना है तो।। बल से ज्यादा बुद्धि का उपयोग करें।।। क्योंकि बल लड़ना सिखाता है और बुद्धि जीतना।। ©Rʌʋsʜʌŋ Kʋjʋʀ बल और बुद्धि
Parasram Arora
ह्रदय है भी जंगल जैसा वाइल्ड बुद्धि तो परिष्कृत है सुसंस्कृत है सभ्य है ह्रदय तो जंगल जैसा अपरिषकृत आदिम असंस्कृत असभ्य वह तो जंगली जानवरों जैसा वृक्षों आकाश और आवारा बादलों जैसा हैl लेकिन आदमी का हाथ आज तक ह्रदय पर पहुंचा नहीं है . और पहुंच भी नहीं सकता क्योंकि विचार और विचारणा हमारे सर से आगे नहीं जा सकते हमारे ह्रदय तक तो केवल परमात्मा की पहुंच है l ©Parasram Arora ह्रदय और बुद्धि.......
NEERAJ SIINGH
वो तमाम तुमने अपने अंदर छुपा के रखें है गम जिनके तुम स्वयं दोषी नही हो उनको अपने पर बोझ बनाये क्यू फिर रहे हो निकाल फेंको इस वहम को की तुम क्रोधी हो एक भाव हैं उसे तुम क्यों नही जीते हो, हो वीर तुम तो क्यों नही तांडव करते हो लहू पड़ गया ठंडा क्यों मुर्दो सा जीते हो ? , हुंकार हो हुंकार हो जो कापे पापी उस घड़ी की तुम क्यों नही शुरुआत करते हो , ..... #neerajwrites तांडव पाप अन्याय सत्य धर्म विजय