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INDIA CORE NEWS
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संगीत कुमार
Meri Mati Mera Desh (चुनाव) चला दौर चुनाव का भैया पार्टी सार्टी मन रहा दारू मुर्गा खूब चल रहा नेता जनता का पैर पकड़ रहा खूब वादा कर रहा अपने को जनता का बेटा बता रहा घर घर सब से मिल रहा अपने को जनता का हितैषी बता रहा पैदल गाँव गाँव घूम रहा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहा अपना गुणगान गा रहा सबको उल्लू बना रहा चुनाव चुनाव में ही मिल रहा चुनाव जीतने पर जनता को भूल रहा अपना जेब सब भर रहा जनता का खून चूस रहा सब अपने को ईमानदार बता रहा सच्चाई ऐसा न दिख रहा दागी दोषी से है भरा पड़ा कोई जेल का चक्कर काट रहा तो कोई जेल से चुनाव लड़ रहा कुछ तो बीबी,बेटे को चुनाव उतार रहा कर जोड़ विनती कर रहा जाँच परख कर वोट डालना किसी के बहकावे में मत आना जर्जर हाल है शिक्षा व्यवस्था का महाविद्यालय, विश्वविद्यालय सिर्फ चमक रहा ज्ञान न अब उसमे मिल रहा नेतागिरी सिर्फ हो रहा प्रोफेसर साहब कक्षा में न दिख रहे लगता जैसे शिक्षण संस्थान बंद पड़ा अंचल, अनुमण्डल, जिला कार्यालय में लोग भटक रहे समय से न काम हो रहा पर नेता जी कहते खूब तरक्की हो रहा बाढ़ सूखे से ग्रस्त रहा नहर नाले का न व्यवस्था हुआ लोगों का जीवन बदहाल हुआ मच्छर सब जगह भनभना रहा अस्पताल सब गंदगी से भरापरा लोगों को उपचार न मिल रहा उद्योग धंधा कुछ न स्थापित हुआ जनता तो प्रांत छोड़ चला गुंडागर्दी दिख रहा लोग बात -बात पर लड़ रहा हाल बहुत बुरा है भैया जात पात से ऊपर उठना अच्छे प्रत्याशी को मिल चुनना चला दौर चुनाव का भैया ©संगीत कुमार #MeriMatiMeraDesh (चुनाव) चला दौर चुनाव का भैया पार्टी सार्टी मन रहा दारू मुर्गा खूब चल रहा नेता जनता का पैर पकड़ रहा खूब वादा कर रहा
अदनासा-
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई , सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो
bhim ka लाडला official
bhim ka लाडला official
Ravendra
Ravendra