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Ajay Meena
“नहीं है मुझे कोई चिंता कि आगे क्या होगा और क्या नहीं मैं बस इतना जानता हूँ कि मेरे हक़ में तेरी यारी है क्यों करूँ मैं फ़िक्र झूठे, फरेबी और मक्कार ज़माने की? मैं जानता हूँ कि मेरी इकलौती ताक़त तेरी यारी है…” ©Ajay Meena #friends “नहीं है मुझे कोई चिंता कि आगे क्या होगा और क्या नहीं मैं बस इतना जानता हूँ कि मेरे हक़ में तेरी यारी है क्यों करूँ मैं फ़िक्र झू
#friends “नहीं है मुझे कोई चिंता कि आगे क्या होगा और क्या नहीं मैं बस इतना जानता हूँ कि मेरे हक़ में तेरी यारी है क्यों करूँ मैं फ़िक्र झू
read moreनवनीत ठाकुर
हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने का हुनर सीख लिया मैंने। हवा के रुख़ से कभी डर नहीं लगता मुझे, मेरी मंज़िल ने मेरे इरादों को आज़मा लिया है। हर जख्म ने मेरे हौसले को और गहरा किया, हर दर्द ने मेरी जीत का रास्ता दिखा दिया। अब तूफ़ान भी मुझसे सहम कर गुजरते हैं, मेरे इरादों से ज़माने के नक़्शे बदलते हैं। जहाँ कांटे बिछाए गए थे मेरे रास्तों में, वहीं मैंने अपने सपनों के फूल खिला दिए। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने
#नवनीतठाकुर हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने
read moreSANIR SINGNORI
Unsplash 'कल' की डोली उठाने के लिए, 'आज' को कंधा दे रहे हैं लड़के अजीब दास्तां है ज़माने की 'सानिर' . ©SANIR SINGNORI 'कल' की डोली उठाने के लिए, 'आज' को कंधा दे रहे हैं लड़के अजीब दास्तां है ज़माने की 'सानिर'#Book
'कल' की डोली उठाने के लिए, 'आज' को कंधा दे रहे हैं लड़के अजीब दास्तां है ज़माने की 'सानिर'#Book
read moreनवनीत ठाकुर
वक़्त का हर लम्हा संभालकर रखना, जो गुज़र गया, उसे यादों में बसा कर रखना। ख़ैर, वो कल नहीं रहेगा, जाहिद,हर लम्हा जी के रखना।। हर पल को जियो कुछ इस तरह, कि फिर लौटकर वो कभी न तरसे। वक़्त की साज़िश को समझ लो यारों, ये वो मेहमां है जो कभी ना ठहरे।। इन लम्हों का साया संभाल, ये गुज़रे तो बन जाएं किस्सा कमाल। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर जाहिद, इन लम्हों का साया संभाल, ये गुज़रे तो बन जाएं किस्सा कमाल।
#नवनीतठाकुर जाहिद, इन लम्हों का साया संभाल, ये गुज़रे तो बन जाएं किस्सा कमाल।
read moreBhanu Priya
लड़की हूं, इसलिए हर साल सुर्खी बनती हूं, सरकारें आती हैं जाती हैं, दस्तूर ए जहां, सत्ता, सत्ता ही रह जाती है, कभी कलकत्ता, कभी मनाली न जाने कितनी हैं बिगड़ी, कितने आशियानों की रमजान, होली , दिवाली, हक का कहां मिला मुझे, दस्तूर ए जहां, आज इसने तो कल उसने सबने वादें किए मुझसे... यही रीत ज़माने की लड़ता हैं वह खुद के लिए , काश एक बार निकलता वह खुदसे और लड़ता मेरे लिए। ©Bhanu Priya #दस्तूर_ए_वक़्त दस्तूर लड़की हूं,इसलिए हर साल सरखी बनती हूं, सरकारें आती हैं जाती हैं, दस्तूर ए जहां, सत्ता, सत्ता ही रह जाती है, कभी कलकत
#दस्तूर_ए_वक़्त दस्तूर लड़की हूं,इसलिए हर साल सरखी बनती हूं, सरकारें आती हैं जाती हैं, दस्तूर ए जहां, सत्ता, सत्ता ही रह जाती है, कभी कलकत
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