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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा
कर्म का सिद्धान्त आंख ने पेड़ पर फल देखा .. लालसा जगी.. आंख तो फल तोड़ नही सकती इसलिए पैर गए पेड़ के पास फल तोड़ने.. पैर तो फल तोड़ नही सकते इसलिए हाथों ने फल तोड़े और मुंह ने फल खाएं और वो फल पेट में गए. अब देखिए जिसने देखा वो गया नही, जो गया उसने तोड़ा नही, जिसने तोड़ा उसने खाया नही, जिसने खाया उसने रक्खा नहीं क्योंकि वो पेट में गया अब जब माली ने देखा तो डंडे पड़े पीठ पर जिसकी कोई गलती नहीं थी । लेकिन जब डंडे पड़े पीठ पर तो आंसू आये आंख में क्योंकि सबसे पहले फल देखा था आंख ने यही है कर्म का सिद्धान्त कर्म का सिद्धान्त
shubham shubh Tiwari
अब वो गिल्ली डंडे वाले दिन नहीं आते न जाने कहाँ गुम हो गए वो दिन उन दिनों में ये लगता था कि कब में बड़ा हो जाऊं और बड़े होने के बाद अब ये लगता है कि काश वो दिन कभी खत्म ही नही हुए होते और वो गिल्ली डंडे खेलते हुए मेरी त उम्र निकल जाती वो कुछ पल की गिल्ली डंडे खेलने की खुशी पूरी ज़िंदगी की खुशी लगती थी और आज सब कुछ होने के बाद भी वो गिल्ली डंडे के दिन ही याद आते हैं गिल्ली डंडे
Sanjeev Singh Sagar
आखिर किस बात का हंगामा हो रहा था? रहमत और राजू दोनों पड़ोसी भी थे और दोस्त भी।दोनों का धर्म अलग-अलग है इसीलिए इन्हें,खाश करके राजू की माँ रहमत के साथ खेलने या कहीं जाने से रोकती है।दोनों की उम्र7औऱ8 साल के बीच होंगे इसीलिए इनकी मासूमियत किसी धर्म और मजहब को नहीं मानते हैं, पर अपने माता-पिता से बचते बचाते साथ खेलते, घूमते और घर में कुछ खाश बनता तो चुराकर साथ में खाते भी।रहमत अपनी अम्मी,से- राजू के साथ मेला देखने जा रहा हूँ,बता तेरे लिए क्या लाना है?रहमत की अम्मी-जो राजू अपनी माँ के लिए लेगा।रहमत जाने लगा फिर अम्मा आवाज़ लगाई-राजू के साथ ही रहना और अकेले इधर-उधर मत घूमना।रहमत ख़ुशी से झूमते हुए चला गया।राजू के घर ।राजू रहमत को देखते ही-तेरा कुर्ता तो लाजवाब है और आज इसे मुझे पहनने का मन है।रहमत थोड़ा सकपका गया-पर तेरी माँ राजू उसका कुर्ता खोलते हुए-माँ को मैं समझा लूंगा।आज तुम मेरा कमीज़ पहनेगा और मैं तेरा कुर्ता।दोनों ने ऐसा ही किया।जब राजू के माँ और पापा बाहर आये तो देखकर दंग रह गये।राजू आज रहमत और रहमत राजू लग रहा है।राजू की माँ-ये तुमने रहमत का कुर्ता क्यों पहना?राजू के पापा थोड़ा समझदार हैं इसीलिए ज्यादा भेदभाव नहीं करते इसीलिए मुस्कुराते हुए-दोस्ती हो तो ऐसी।राजू की माँ चुप हो गई और सभी मेला देखने निकल गये।इन दोनों की दोस्ती की वजह से समाज के कुछ असामाजिक लोगों के द्वारा रहमत के अम्मी और राजू के पिता को भी बहुत कुछ सुनना पड़ता है, पर इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।हिन्दू का मेला है इसीलिए हिन्दू संगठन के लोग जगह-जगह देखे जा रहे हैं।राजू के माँ ने मूर्ति के आगे प्रसाद चढ़ाई और राजू ने मूर्ति के सामने हाथ जोड़ा तो रहमत भी।दोनों ने प्रसाद भी खाया।एकाएक भगदड़ मच गई किसी ने बोला कि कुछ मुसलमानों ने गाय के मांस के टुकड़े मेले में फैला दिये हैं।लोग इधर उधर भाग रहे हैं।राजू के पापा भी सबसे बचते-बचाते अपने मुहल्ले तक पहुँच गये, लेकिन दंगे की आग मुहल्ले तक आ गई थी।हिन्दू संगठन के कुछ लोग मुस्लिम के लोगों को मारने के लिए ढूंढ रहे थे और मुस्लिम संगठन के लोग हिन्दू लोगों को ।सभी के दरवाज़े बंद थे।राजू को उसकी माँ और रहमत को राजू के पापा छुपा के लेकर जा थे।किसी के हाथ में तलवार तो किसी के हाथ में धारदार हथियार।किसी ने आवाज़ लगाया-रूको..फिर भी सभी बढ़ते रहे।तभी किसी ने राजू के पापा पर डंडे से हमला कर दिया।वे ज़मीन पर गिर गए।फ़िर और कुछ लोग डंडे और धारदार हथियार चलाने लगे राजू, रहमत लाख मिन्नते करता रहा छोड़ने को पर नहीं माना और वार करते रहा।इसी बीच किसी ने राजू को मुस्लिम समझते हुए छोड़ने और रहमत को हिन्दू समझकर मार डालने की बात की।माँ सुनते ही दोनों को भागकर छुप जाने को बोली,धर्म के दरिंदों ने दोंनो को ढूंढकर मार डाला।जिस मांस को लोगों के द्वारा लाने की बात कही गई थी सच में उसे किसी कुत्ते ने मरे हुए गाय के शरीर को ज़मीन के नीचे से लाया था।आज दो माँ धर्म के नाम पर अपनी दुनिया गवां बैठी फ़िर भी ये धर्म की ठेकेदारों को समझ नहीं आया कि जब आग लगती है तो सभी का घर जल जाता है। सागR कौन लगाता है ये आग #Nojoto #Nojotoaudio #Nojotovideo #Nojotonews Prakash Keshari Jahedul Sarkar Anusuya Makar Manju Singh Shivangi Vyas
@nil J@in R@J
होलिका दहन की पौराणिक कथा होलिका का ये त्योहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप 'होलाका' बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक के पृष्ठ 106 पर होलिका को 'हुताशनी' कहा गया है। इसके अलावा भारत देश की संस्कृति में इस दिन को राजा हिरण्यकश्यप और होलिका पर भक्त प्रहलाद की जीत के रूप में मनाया जाता है। दरअसल होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी और उसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था, जबकि हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, जो कि हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसलिए एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की विष्णु भक्ति से परेशान होकर उसे होलिका के साथ आग में जलने के लिये बिठा दिया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका आग में जल गई। तभी से होलिका दहन का ये त्योहार मनाया जाने लगा। इस दिन होलिका दहन के समय जलती हुई आग में से भक्त प्रहलाद के प्रतीक स्वरूप मिट्टी में दबाये गये डंडे को निकाला जाता है, जबकि डंडे के आस-पास लगी हुई लकड़ियों को जलने दिया जाता है। #NojotoQuote
Prince Raज
कर्म जो करता है उसी को फल मिलता है ..? आंख ने पेड़ पर फल देखा .. लालसा जगी.. आंख तो फल तोड़ नही सकती इसलिए पैर गए पेड़ के पास फल तोड़ने.. पैर तो फल तोड़ नही सकते इसलिए हाथों ने फल तोड़े और मुंह ने फल खाएं और वो फल पेट में गए. अब देखिए जिसने देखा वो गया नही, जो गया उसने तोड़ा नही, जिसने तोड़ा उसने खाया नही, जिसने खाया उसने रक्खा नहीं क्योंकि वो पेट में गया अब जब माली ने देखा तो डंडे पड़े पीठ पर जिसकी कोई गलती नहीं थी । लेकिन जब डंडे पड़े पीठ पर तो आंसू आये आंख में *क्योंकि सबसे पहले फल देखा था आंख ने* *अब यही है कर्म का सिद्धान्त* @:-प्रिंस राज** #NojotoQuote
Choubey_Jii
वो गौरैया जो कभी मेरे आंगन में फुदकती थी इधर उधर खो सी गई है अब,आंखों से ओझल, हो सी गई है अब कभी जिसकी चहचहाहट सुन खुद भोर का सूरज उगता था सुबह के सन्नाटे में वो प्यारी सी गौरैया कहीं सो सी गई है अब मुझे याद है अब भी कि कैसे तुझसे मुलाकात हुई थी कैसे सफल तुझे फसाने की मेरी ये वारदात हुई थी आंगन में चंद दाने चावल के डाल दिए थे लुभाने को मुझे याद है कैसे मेरी नादानी से तुझे घबराहट हुई थी इस मंज़र को याद कर होंठ मुस्कुराए तो बहुत हैं पर नज़रों में हल्की सी नमीं आ सी गईं है अब इक डंडे से टोकरी को हल्का सा सहारा दे दिया था और डोर बांधकर डंडे से अपना बचकाना जाल तैयार किया था तू चुनती हुए दानों को टोकरी के नीचे आ गई मैंने कैसे झटके से डोरी खींच टोकरी को तुझ पर गिरा दिया था बड़ा हर्षित हुआ था मैं इस सफल वारदात के बाद पर तू यकायक इस घटनाक्रम से सहम सी गई थी तब तब अहसास हुआ था मुझको मेरी उस नादानी का कैसे अनजाने में तुझे भयभीत कर गया उस बचकानी का लेकिन छोड़ने से पहले तुझसे पहचान बनाना चाहता था तुझ पर इक छाप छोड़ना चाहता था अपनी प्रेम की निशानी का इसीलिए तेरे पंखो को मैंने लाल रंग से रंग डाला था बस तुझसे नाता जोड़ने की ये तरक़ीब आ सी गई थी तब तुझे खुले आसमाँ में भेज दिया और दिल से दिल को जोड़ दिया तू वापस मिलने आएगी इसी आस पर दिल को मोड़ दिया तू अगले ही दिन वापस आई भोर में मुझको जगाने को तूने प्रेम की सारी भाषाओं को अहसासों से पीछे छोड़ दिया प्रेम के इस अप्रतिम वृतांत को शब्दों में पिरोकर मेरे दिल में ये घटना फिर से जीवंत हो सी गई है अब फिर तो ये दिनचर्या मेरी रोज की हो गई थी उसकी चहचहाहट से उठना मेरी आदत सी हो गई थी फिर इक दिन वही हुआ जिसका दिल को बहुत ही डर था मेरी प्यारी सी चिरैया आसमाँ में दूर कहीं खो गई थी इक अजीब सा था ये रिश्ता मेरे और तेरे दरमियाँ पहले प्रेम की ये कहानी मेरे दिल में अमर हो सी गई है अब #चौबेजी
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