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Nadbrahm
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मकरसंक्रांति का संकल्प खत्म हुआ खरमास, सभी अब आलस छोरो चावल तिल गुड़ खा कर, अब संकल्पित हो लो संकल्पों से सृजित, जगत में जीने वालों संकल्पों की महिमा, को तुम यू न टालो सकल विष्व प्रकटा ही तब था, श्री हरि ने जब संकल्प लिया सृजित हुआ सब जड़ चेतन, यह वसुधा तभी प्रतिष्ठ हुआ उस से पहले न थी वायु, उस से पहले न नदिया थी न नीला अम्बर फैला था, न फूल न कोई कलियां थी था शून्य और था कुछ भी नही, अव्यक्त सृष्टि तब व्यक्त न था एक मात्र संकल्प से ही, सब व्यक्त हुआ सुसज्ज हुआ इस संकल्प के बल पर, हनुमान समुंदर पार किये बधाए सुसरा बन उभरी, प्रभु ने उसके उद्धार किये धरा को मैं भैय मुक्त करूं, संकल्प राम ने ठाना था बिन साधन भी फिर हुए सफल, फिर सत्य ये सब ने जाना थ पांडव ने जब संकल्प लिया, कुरुक्षेत्र जीत कर लाया था सत्य को फिर स्थापित कर, धर्म का ध्वज लहराया था यवनों का अत्याचार देख, चाणक्य ने भी प्रण पाला था भारत को पुनः सुरक्षित करने का, अपना दायित्व संभाला था है प्रण की शक्ति बड़ी प्रखर, जो जन इस व्रत को पालेगा कुछ भी न असंभव जग में है, यदि संकल्प में जीवन ढालेगा आ आज तुझे भी दीक्षित कर दूं, उस श्रेष्ठ मनुज गुण जीवन मे तिल चावल और गुड़ खा कर, संकल्प का अमृत पिने में तिल है संकल्प का बीज मात्र, इस को यदि तुम स्वीकार करो तो जीवन भर आदर्श चरित का, अपने मे भीतर आधार धरो यह चावल तुम्हे बताती है, की धर्म तत्व अक्षुण्ण रहे न कभी क्षति हो मनुज धर्म, अक्षत की तरह ये पूर्ण रहे यह गुड़ रस स्वाद है जीवन का, यदि गुणी और उत्कृष्ट हो तुम आदर्श जो जीवन जी पाओ, तो सब तत्वों में अभीष्ट हो तुम #makarsankranti #संकल्पितजीवन ©BK Mishra मकरसंक्रांति का संकल्प खत्म हुआ खरमास, सभी अब आलस छोरो चावल तिल गुड़ खा कर, अब संकल्पित हो लो संकल्पों से सृजित, जगत में जीने वालों
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