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i am Voiceofdehati
स्वीडन में मुसलमानों ने शरणार्थी का मतलब ही बदल दिया,,, शरणार्थी = "जो शरण देने वाले की अर्थी निकाल दे"। #स्वीडन में #मुसलमानों ने शरणार्थी का मतलब ही बदल दिया,,, #शरणार्थी = "जो शरण देने वाले की अर्थी निकाल दे"। #SwedanRiots #मुसलमानों_भारत_छोड़ो #yqstory #yqdidi #yqsnatni Vijayant Singh🔰
changed choubey
अफगानिस्तान के मुस्लिमो के लिए जिनकी एक आवाज़ नही निकल रही है उन्हें भारत मे मुसलमानों के लिए डर का माहौल है लगता है और ये देश को गाली देकर खुशी खुशी जी रहे है ©changed choubey #तालिबान #अफ़गिस्तान #मुसलमानों #डर #Independence2021
Mohd Akhtar Razaa
*"अल्लामा इकबाल" की तकरीबन 80 साल पहले लीखी बात.* =*==*==*==*==*==*= *कल मज़हब पूछकर जिसने बख्श दी थी जान मेरी,* आज फिरका पूछकर उसने ही ले ली जान मेरी.... *मत क रो रफादेन पर इतनी बहस मुसलमानों,* नमाज़ तो उनकी भी हो जाती है जिनके हाथ नही होते.... *तुम हाथ बाँधने और हाथ छोड़ने पर बहस में लगे हो,* *और दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने की साजिश में लगे हैै|* ज़िन्दगी के फरेब में हम ने हजारों सज्दे क़ज़ा कर डाले.... *हमारे जन्नत के सरदार ने तो तीरों की बरसात में भी नमाज़ क़ज़ा नही की....* सजदा-ए-इश्क़ हो तो "इबादत" मे "मज़ा" आता है..... *खाली "सजदों" मे तो दुनिया ही बसा करती है.....* लौग कहते हैं के बस "फर्ज़" अदा करना है..... *एैसा लगता है कोई "क़र्ज़" लिया हो रब से.....* तेरे "सजदे" कहीं तुझे "काफ़िर ना कर दें..... *तू झुकता कहीं और है और "सोचता" कहीं और है.....* कोई जन्नत का तालिब है तो कोई ग़म से परेशान है..... *"ज़रूरत" सज्दा करवाती है "इबादत" कौन करता है.....* क्या हुआ तेरे माथे पर है तो "सजदों" के निशान..... *कोई ऐसा सजदा भी कर जो छोड़ जाए ज़मीन पर निशान.....* *फिर आज हक़ के लिए जान फ़िदा करे कोई.....* "वफा" भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई..... *नमाज़ 1400 सालों से इंतेज़ार में है.....* *कि मुझे "सहाबाओ" की तरह अदा करे कोई.....* एक ख़ुदा ही है जो सजदों में मान जाता है..... *वरना ये इंसान तो जान लेकर भी राज़ी नही होते.....* देदी अज़ान मस्जिदो में "हय्या अलस्सलाह"..... *ओर लिख दिया बाहर बोर्ड पर अंदर ना आए फलां और फलां.....* ख़ोफ होता है शौतान को भी आज के मुसलमान को देखकर, *नमाज़ भी पढ़ता है तो मस्जिद का नाम देखकर.* मुसलमानों के हर फिरके ने एक दूसरे को काफ़िर कहा, *एक काफ़िर ही है जो उसने हम सबको मुसलमान कहा.* hii
अमित ओझा
भारत महापुरषों का देश है जहाँ एक से बढ़कर एक महापुरुष पैदा हुए, जिनमे वीर कुंवर सिंह भी एक थे. बिहार की माटी के लाल बाबू वीर कुंवर सिंह को बिहार का बच्चा बच्चा भी जानता है,क्योंकि उनकी आन बान शान और सम्मान में हम सब बचपन से होली और अन्य लोकगीतों में देश के लिए उनके त्याग और बलिदान की कथा सुनते आ रहे हैं. जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी ब्रिटिश हुकूमत से लड़कर उनके दांत खट्टे कर दिए थे. जी हां आज में 1857 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिहार का नेतृत्व करने वाले वीर सपूत वीर कुंवर सिंह जी की जीवनी के बारे में बताने जा रहा हूँ. जी हाँ जैसा की आप सभी अब जानने लगे है की आजादी के बाद कई दशकों तक एक शाजिश के तहत हमारे देश के विभिन्न राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा को दबाने और महज कुछ जो सत्ता के आस पास रहने वाले थे उनका नाम ऊपर लेन की साजिशें चली और उसका परिणाम ये हुआ की जो जीर शहीद वास्तव में स्मरणीय होना चाहिए उन्हें भुला दिया गया और उन्ही में से एक है हमारे वीर कुंवर सिंह जिनका शौर्य शहीदी दिवस23 अप्रैल को था. वीर कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह और माता का नाम महारानी पंच रतन देवी था. इनके पूर्वज मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे. बचपन से ही कुंवर सिंह अपने पूर्वजों की भांति कुशल यौद्धा थे. इनके पास बड़ी जागीर थी लेकिन एस्ट इंडिया कम्पनी ने जबरन कुंवर सिंह की जागीर को हड़प लिया था. जिससे कुंवर सिंह अंग्रेज और ईस्ट इंडिया कंपनी से खफा थे. वीर कुंवर सिंह की शादी राजा फ़तेह नारायण सिंह की बेटी से हुई जोकि मेवारी सिसोदिया राजपूत थे जो गया जिले के ज़मींदार थे. जागीरदार साहेबजादा सिंह के घर पैदा हुए कुंवर सिंह बचपन से ही वीरता एवं साहस का परिचय दे रहे थे. सन 1848-49 ई• डलहौजी की विलय नीति ने राजों- रजवाड़ो में भय पैदा कर दिया था, जिससे कुंवर सिंह अपनी वीरता दिखाने को आतुर हो उठे.रही- सही कसर नई इनफील्ड रायफलों ने पूरी कर दी, जिससे हिंदुओ एवं मुसलमानों दोनों की धामिॅक भावनाएं आहत हो रही थी. उस समय अंग्रेजों ने जो किसानों पर अत्याचार किया उससे किसान और आम जनता में अत्यंत ही रोष पैदा हो गया था जिसे वीर कुंवर सिंह ने नेतृत्व प्रदान किया,जिसकी तपिश ने सरकार की चूलें हिला दी. 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया. बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया. 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया.।
Abshar Uddin
Abshar: https://absharuddin.blogspot.com/2019/04/blog-post.html : हम कन्हैया कुमार को क्यों जीतना देखना चाहते हैं लोगों के बहुत सारे सवाल हैं।। हमारे बहुत सारे दोस्तों ने वामपंथ की आरएसएस से तुलना की और दलील यह दी के दोनों के स्थापना का वक़्त एक है और दोनों के संस्थापक सदस्य भी ऊंच कोटि के लोग यानी ब्राह्मण वाद के लोग थे 1 और फिर कहा वामपंथियों ने बंगाल में मुसलमानों का बुरा हाल कर दिया और वहां के लोग अपने वजूद के लिये लड़ रहे हैं लेकिन वह एक बात और लिखना भूल गए के केरल मात्र एक ऐसा प्रदेश है जहाँ मुसलमानों की सब से अच्छी हालत है अगर NCERT कि किताब 6 कक्षा की देखें तो उससे यह पता चलता है कि औरतों की साक्षरता दूसरे लोगों के समान है लेकिन यहां पर हमारा तर्क वामपंथ को किसी तरीके का पक्षधर बनने का नहीं बल्कि यह बताने का है कि हर राजनीतिक पार्टी का अवाम के लिये कोई अच्छा स्टैंड नहीं बल्कि सब की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं हैं 1 रही बात बेगूसराय में कन्हैया कुमार का समर्थन करने का तो सब से बड़ी वजह यह है कि गरीब वह छात्र के लिये मिसाल बन सकते हैं क्योंकि जब कोई गरीब छात्र राजनीति में भाग्य आज़माने के लिए सोंचता है तो घर वाले सब से पहले कहते हैं के बेटा राजनीति हमारे लिए नहीं वह पैसों वालों के लिए है लेकिन जब कन्हैया जीत जाता है तो गरीब छात्र की उम्मीदें बर लाएंगी और देश को संघर्षिल नेता मिलेगा जो देश हित के लिए काम करेगा 2 दूसरी बात सब यह कह कर कन्हैया को खिलाफ दुष्ट प्रचार कर रहे हैं के वह मुस्लिम लीडर शिप खा रहा लेकिन असल बात यह है के कन्हैया कुमार के खिलाफ RJD ने तनवीर हसन को उतार कर मुस्लिम लीडर शिप बचाई नहीं बल्कि बाप कि विरासत बचाने के प्रयास की है नहीं तो मधुबनी पर फातमी भी उम्मीदवार थे 3 अगर तेजस्वी मुस्लिम के इतने खैरख्वा थे तो सिवान से हिना शहाब के खिलाफ उनका गठबंधन अमरनाथ यादव को क्यों खड़ा किया 3 अली अशरफ फ़ातमी भी अलीगढ़ से तालीम याफ़्ता हैं फ़ातमी को टिकट न मिलने पर क्या अलीग बरादरी राजद का विरोध करेगी?? दोस्तों यह सब गोल माल है क्योंकि हम जज़्बती कौम्ं है आये दिन कोई ना कोई अपने फायदे के लिये हमारे जज्बातो से खेलता है और आज भी खेला जा रहा है वरना सोचो अली अनवर साहब जो संसद रह चुके है उनको चुनाव नही लड़ाया और बेगुसराय मे मुसलिम representation को लेकर जंग छेड़ रखी है जबकी तनवीर संसद कभी नही रहे है । बल्कि मामला कुछ है तेजस्वी को यह डर सताने लगा है कि कहीं कन्हैया कुमार उसके बराबर में न खड़ा हो जाये और उसके सोने की चम्मच उससे से छिन जाए Md Absharuddin. MANUU NUH 8564032934
RAJ SINGH ✔️
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