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परवाज़ हाज़िर ........

#Pulwama’s ‘Black #day#आन हे #ज़िसकी #देश #मेरा , य़े #प्राण #ज़िसमे #वाश मेरा , खातिर तेरे माँ आखरी कतरा भी हश्के बहज़ाये !

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आन हे ज़िसकी देश मेरा , 
य़े प्राण ज़िसमे वाश मेरा ,
 
खातिर तेरे माँ आखरी कतरा भी हश्के बहज़ाये  !
क्या हिम्मत उनकी ज़ो नापाक इरदो से 
इस ज़मी पे आये  खाक होना ही उनकी किस्मत हे  !
क्या मोल मेरे ज़िने का ज़ो तेरे धामन पर आच भी आये !
इस ज़मी पे तिरंगा य़े लहराता रहे ,  यही हसर्त लाखो दिलो की धडकन हे !
सिने मे मेरे यही सास हे ओर कुर्बान होना इसके लिये मेरे  लिये खास् हे ! #Pulwama’s ‘#Black #Day’


#आन हे #ज़िसकी #देश #मेरा , 
य़े #प्राण #ज़िसमे #वाश मेरा ,

 
खातिर तेरे माँ आखरी कतरा भी हश्के बहज़ाये  !

Shivam Mishra

प्रेंम की शक्ति प्रेंम अगर पूर्ण हो तो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को मेरे गिरधारी ने कन्नी उंगली पे परवत था उठाया

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प्रेंम की शक्ति 

प्रेंम अगर पूर्ण हो 
तो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा 

ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को 
मेरे गिरधारी ने कन्नी उंगली पे परवत था उठाया 

ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को 
अखंड ब्रह्मांड नायक ने अर्जुंन का रथ था चलाया 

चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा 

ये प्रेंम की ही थी शक्ति की 
अभिमन्यु के हर घाव पे कृष्णा की आँखों मे आँसू आया  

ये प्रेंम ही था जिसके मान को रखने 
कन्हैया ने 56 भोग को ठुकरा के केले का छिल्का खाया 

चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा 

ये प्रेंम ही था जिसको बचाने 
मुरली वाले ने द्रौपदी का चीर बड़ाय़ा 

ये प्रेंम ही था जिसके सम्मान को बचाने 
खुद कन्हैया ने प्रतिज्ञा त्याग के रथ का पहिया था घुमाया 

चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा

देखो प्रेंम का समर्थ ज़िसको समझाने 
खुद गोपल ने गीता का ज्ञान समझाया 

ये प्रेंम ही है जिसके कारण 
तीनो लोको ओर समस्थ ब्रह्मांडों का स्वामी सुदामा के लिये नंगे पांव दौड़ा आया 

चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा 

इस प्रेंम को क्या मैं समझा पाऊंगा मैं नासमझ कि जिस रुप को देखने जन्मों जन्म लगते है योग से,ये प्रेंम ही है जिसमें 

परमावतार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुंन के साथ संजय को भी अपना विश्वरुप दिखाया 

प्रेंम अगर पूर्ण हो 
चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा

©शिवम मिश्र 
विधि विद्यार्थी 
के के सी ,लखनऊ प्रेंम की शक्ति 

प्रेंम अगर पूर्ण हो 
तो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा 

ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को 
मेरे गिरधारी ने कन्नी उंगली पे परवत था उठाया

Shivam Mishra

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ऐसी कोई दुनिया की तपिश नहीं कवि के पास ज़िसकी राहत की बात ना हो 
ऐसा कोई ज़ख्मी दिन नही ज़िसकी मरहम की रात ना हो


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