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ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
Mamta Singh
ऐसा दर्द जाे ना हाे ताे पूर्ण औरत ना हाेने का लांछन.. हाे ताे कायदे,कानून और न जाने कितने संयम अनुशीर्षक में पढे... एक स्त्री महिने के पच्चीस दिन नाचती रहती है ,लट्टू की तरह पर छब्बीसवे दिन,वाे पस्त हाे जाती है सर दुखने लगने लगता है बदन दर्द से त्रस्त हाे जाती है गला रूंधने लगता है आँखाें में आँसू भर आता है
Sopiya_Uday
#मासिक धर्म# ये कैसे शिक्षित समाज में रहते हैं हम मेरी एक फ्रेंड स्कूल लेक्चरर के घर में किराए से रहती है जब उसको मासिक धर्म की सार्वभौमिक प्रक्रिया होती है तब उसे हिदायत दी जाती है कि वह अपने कपड़े बाथरूम में न धोकर बाहर के नल पर धोए, क्योंकि बाथरूम का जो नल है वो रसोई घर के पानी के टैंक से जुड़ा हुआ है हम सोच भी नहीं सकते कि आज के दौर में भी ऐसी थिंकिंग वाले लोग हमारे समाज में रहते हैं और वह भी एक शिक्षक ऐसी सोच को लेकर अपने विद्यार्थियों को क्या शिक्षा दे सकता है।। जब तक यह सोच नहीं बदलेगी महिलाओं के प्रति तब तक इस देश का कुछ नहीं हो सकता।। जय भीम, सामाजिक कुरीतियों में दो ढीम🙏 ©Sopiya Uday #सोच_बदलो_देश_बदलो
Dr. BHAGYASHRI
मासिक पाळी.... आज नेहाची आई , तिला ओरडताना दिसली , इकडे नको जाऊ, तिकडे नको जाऊ देवाला तर नकोच शिवू .... तशी नेहाही वेगळीच वागत होती ...कधी रडत होती तर कधी चिडत होती...... खूप वेळच्या अबोल्यानंतर बोलली नेहा शेवटी आता झाली मी मोठी ....नाही खेळणार आळी- मिळी गुपचिळी मला आली मासिक पाळी .... मग माझ्याच मनात चालू झालं विचारांचं युद्ध शुद्ध असलेलं रक्त कस होत अशुद्ध जर रक्तच असेल अशुद्ध तर कसे जन्मले फुले ,गांधी,आंबेडकर गौतम बुद्ध विचारच असतील अशुद्ध तर काय करणार ही तर निसर्गाची देणगी रक्त तर वाहणार .... _sensitive_ink_of bhagyashree with kajal menstrul hygiene
Nikita Negi
लाल रंग लहू तेरा भी लाल हैं। लहू मेरा भी लाल हैं।। इंसान तू भी है,इंसान मैं भी हूं।। तू पुरुष है, मैं स्त्री हूं। बस इतना ही मलाल है।। लहू तेरा भी लाल हैं। लहू मेरा भी लाल हैं।। ए समाज तुम तो कहते हो ये समानता का भारत हैं। यहां स्त्री पुरुष सब एक सामान हैं। फिर क्यों मासिक धर्म के समय एक स्त्री को समझते तुम अभिशाप हो? क्या उस पीड़ा का तुम्हे जरा भी ज्ञान है? स्त्री कि उस पीड़ा को अभिशाप समझने वालों जाओ जाकर पूछो अपनी मां से क्या स्त्री होना आसान हैं।। लहू तेरा भी लाल हैं। लहू मेरा भी लाल हैं।। मेरे लहू के कणों से बने तुम इंसान हो। फिर क्यों बनते मासिक धर्म से अंजान हों। क्यों केहते एक बेटी, बहू को अभिशाप हो। लहू तेरा भी लाल हैं। लहू मेरा भी लाल हैं।। इंसान तू भी है। इंसान मैं भी हूं।। तू पुरुष है और मैं एक स्त्री बस यही एक मलाल है।। लाल रंग
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