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Kamlesh Kumar
हुं मैं भी एक इंसा! ख़ुदा के इस जहां ने, हमें भी इंसाँ बख्शा है… क्या इंसाँ ने भी हमें, इंसाँ बख्शा है… रूप अनोखा नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां… ख़्वाब अनोखे नहीं, हूं मैं भी तो, एक इंसाँ… आसमां को यूहीं मैं, देखता रहूं, खुद को मैं खुद में यूहीं, खोजता रहूं... मांगा नहीं था, मैंने ये जहां… रूप अनोखा नहीं, हूं मैं भी तो, एक इंसाँ अलग - अलग है, नाम मेरे पहचान मेरी है, अलग - अलग खो गया हूं, मैं तो यहां… ख्वाब अनोखे नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां क्यों तू मुझे, अपनाता नहीं डरता है मुझसे क्यों, क्या मैं इंसाँ नहीं ठुकराया है मुझको अब जो, जाऊं कहां… रूप अनोखा नहीं, हूं मैं भी, एक इंसाँ अलग - अलग है, जिस्म मेरे रूह तो नहीं है, अलग अलग ढूंढूं, अपने जैसा कहां… ख्वाब अनोखे नहीं, है घर, मेरा भी यहां रूप अनोखा नहीं, रहता हूं, मैं भी तो यहां… ख़्वाब अनोखे नहीं, हूं मैं भी, एक इंसाँ… ©Kamlesh Kumar TTA - 3rd year #KavyanjaliAntaragni21
Sumit Singh
(1) हृदय सुकोमल दिया है ब्रह्म नें सुमित हृदय की चाहना थी रागी बनना पड़ा माया मोह ममता भुला न दे हमारा पथ लक्ष्य प्राप्ति के लिये बैरागी बनना पड़ा दौलत की चाह वाह वाह से विरक्त मन हो गया दधीचि जैसा त्यागी बनना पड़ा देशभक्ति के विरुद्ध होंने लगा यद्ध जब तब देश सेवा हित बागी बनना पड़ा (2) यदि पहचानना हो चाहते विद्वान आप पहले पहल आप ज्ञान देख लीजिए यद्ध में हो चाहते यदि आप लड़ना तो रण में विजय का विधान देख लीजिए जब कभी फंस जाए यदि प्राण सकंट में राम भक्त वीर हनुमान देख लीजिए वीरता को जानना ही चाहते हैं यदि आप वर्दियों में देश के जवान देख लीजिए (3) पढ़ा महाराणा प्रताप को तो में पहले स्वाभिमान लिखूं इतिहास पढ़ा मां पन्ना का तो में पहले बलिदान लिखू़ं चरित्र जाना कर्ण का तो में पहले दिनमान लिखूं कुर्बानी का जलसा देखा तो में पहले हिंदुस्तान लिखूं (4) दिव्य तज करेगा तिमिरता से मित्रता तो सिद्ध होगा सीखा नहीं कुछ भी प्रकाश से नाम के जो देशभक्त काम देश के विरुद्ध ऐसे लोगों ने ना सीखा कुछ भी सुभाष से आचरण घात प्रति घात के हो मेहमान सीखा उनने ना कुछ भारतीय भाषा से द्वंदता का भाव कटुता का जिनका स्वभाव उन्होंने कभी ना कुछ सीखा इतिहास (5) भर नहीं सको यदि पेट किसी भूखे का तो बोलो फिर रखा हुआ खाना किस काम का सुनकर करे ना जो कानों को आनंदित तो बोलो फिर बजता वो गाना किस काम का मुखड़ा हो गोरा गोरा मन में भरा हो कूड़ा बोलो फिर वो गंगा नहाना किस काम का रख नहीं सको माता-पिता को भी घर में ना बोलो फिर महल, खजाना किस काम का (6) आओ करें माता भारती की जय याद रहे यह राम कृष्ण के ज्ञान की माटी है सैनिकों के रक्त से सींची बलिदान की घाटी है। यह है भूमि गीता गढ़ने वाले देवकी के नदं की आदर्श के प्रतीक हौसलों से बुलंद विवेकानदं की। धरा टंकार ती थी जहां अर्जुन के तीर से यह देश भरा पड़ा है ऐसे अनेकों वीर से। देखोगेतो बलिदानीयों की बलिदानी याद आएगी भगत शेखर सुभाष की अमर कुर्बानी याद आएगी। न जाने फहरते तिरंगे पर कितने सलाम दिख जाएंगे नक्षत्र पर सुरुक्षित अब्दुल कलाम दिख जाएंगे। ताप भी छोटा पड़ा यहां शिवाजी के ताप से प्रताप गूंजता यहां प्रताप के प्रताप से। पढ़ोगे सच्चा इतिहास तो रोंगटे खड़े नजर आएंगे बिना सर के धड़ पर गोरा बादल लड़ते नजर आएंगे। सैनिकों के अस्तित्व पर कुर्बान लिखा मिल जाएगा कण-कण पर उनके हिंदुस्तान लिखा मिल जाएगा। भले सिर कट गए लेकिन सिर झुकने दिया नहीं बलिदान की प्रथा कारवां बलिदान का रुकने दिया नहीं। तभी शब्द शब्द में सम्मान लिख दिया इसलिए महान हिदुंस्तान लिख दिया। यद्ध लड़ने से पहले हो जाती जहां निश्चित विजय आओ करें माता भारती की जय भारती की जय यूंही नहीं लिखी बलिदान स्वाभिमान की परंपरा यूंही नहीं लिखी मैंने महान हिंदुस्तान की परंपरा पिता देते हैं यहां बुढ़ापे का सहारा तो माता आखों का नीर देती है बहन देती है हाथ की कलाई तो पत्नी मांग का सिंदूर दे देती है बलिदान पर कहीं पन्ना तो कहीं झांसी रानी लिखा होगा स्वाभिमान पर जौहर कुंड वाली पद्मिनी रानी लिखा होगा। क्या क्या कहूं यहां वीरता की निशानियां बहुत है यद्ध पराक्रम और शौर्य की कहानियां बहुत है पर यद्ध के साथ-साथ यहां बद्ध के भी विपक्ष पक्ष थे सिर्फ वीरता ही नहीं हम ज्ञान में भी दक्ष थे सबसे ज्यादा थी संजीवनी यहां किसी भी रोग को गर्व करो इसी भमिू ने जीवित किया है योग को यह भमिू है संघर्ष के सारथी राम बनवास की यहां भमिू है चरक की यह भमिू कालिदास की ना तंत्र से मिला है गौरव ना गौरव मिला मत्रं से त्याग तपस्या से मिला है ना मिला कोई षड्यत्रं से हम कल भी थे अभय हम आज भी अभय आओ करेमाता भारती की जय,जय जय ©Sumit Singh #KavyanjaliAntaragni21
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