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Vikas Kumar Chourasia

Vikas Kumar Chourasia

Vikas Kumar Chourasia

Vikas Kumar Chourasia

हटा नहीं
डरा नहीं
बस यूँ समझ,
लड़ा नहीं

थका नहीं
झुका नहीं
बस यूँ समझ,
लड़ा नहीं

हार मैंने मान ली
ना ये समझ हरा दिया

स्वभाव से तो रौद्र था
बस खुद को ही बुझा दिया
अब खुद को ही बुझा दिया 
   🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

ये जंगल, ये पहाड़
बहती नदियाँ, गिरते झरने

"सुकून बहुत देता है"

अब तुम कहोगे, ये सब
कुछ दिन का ही है

हाँ, जो भी हो 
"सुकून बहुत देता है"

ज़ब-ज़ब इनके करीब जाता हूँ
कोई अपना सा मुझे खींचता है

ज़ब-ज़ब वहाँ से उठ के आता हूँ
ऐसा लगता है, उधड़ रहा हूँ

अब तुम कहोगे, ये सब
कुछ दिन ही अच्छा लगता है

हाँ, जो भी हो 
पर "सुकून बहुत देता है"
 🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

शीर्षक- खुले आकाश में (लोरी)
लेखक- विकास कुमार चौरसिया
जबलपुर म.प्र. 

आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में
सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में
आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में

वहाँ तारे झिलमिलाते, अंधेरों के साथ में
हमको भी सिखलाते, कैसे खिलते हैं रात में
डरना कभी ना, विश्वास खुद पे रखना
नाज़ तुझपे दुनिया करे, ऐसी राह चलना

आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में
सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में
आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में

सूरज की रोशनी, एक तेज़ हम पे भरती है
दूसरों की ख़ातिर ही रोशनी बिखरती है
तुमको भी सेवा, ऐसी ही कुछ करनी है
मनुष्य की ये ज़िंदगी, इसलिये तो मिलती है

आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में
सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में
आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में

चाँद की शीतलता भी, हमसे ये कहती है
रहना तुम भी शीतल से, राह चाहे जैसी हो
संसार के समंदर में, ठहराव रखना सीख लो
निष्काम भाव से तुम, सब काम करना सीख लो

आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में
सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में
आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

पतझड़ आने पर, ये हरे-भरे जंगल
श्मशान नज़र आते हैं

अँधेरी रातों में, दौड़ते-भागते रास्ते
सुनसान नज़र आते हैं

उड़ चले हैं पंछी, अपने आसियाँ छोड़ कर 
अब सारे घोंसले गुमनाम नज़र आते हैं

और धुंधला चुकी है भीड़ में, मेरी पहचान इस तरह 
के मानो
हम अपने ही घर में, मेहमान नज़र आते हैं
           🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

सफ़र का जो मज़ा होता है
वो कहीं पहुँच जाने पर कहाँ होता है

जो रास्तों का दीदार होता है
वो कहीं पहुँच जाने पर कहाँ होता है

मुझे सफ़र करना इसलिए पसंद नहीं 
के कहीं पहुँचना होता है

मुझे सफ़र बस इसलिए पसंद है
क्योंकि शहर के शोर से दूर 
कई हसीन जगह से गुजरना होता है
       🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

सूरज चढ़ती जवानी में है

सफ़ेद लिबास सा कोहरा
ठहरे पानी में है

चुरा के अब जो बैठे हैं वो दिल मेरा

उनसे कह दो,
ये तमाम शहर मेरी निगरानी में है 
      🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी

Vikas Kumar Chourasia

सुबह की धूप को
दोनों हाथों से उठाकर
अँधेरी रात में बिखेरना

खुली आँखों से 
रात के सपनों को समेटकर
फिर सूरज की रोशनी को देखना

तुम्हें आँखों में कुछ देर 
अंधकार नज़र आयेगा

फिर एक तस्वीर साफ होगी

और सही मायने में ज़िंदगी का
आधार नज़र आयेगा
     🍁विकास कुमार🍁

©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
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