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Rabindra Prasad Sinha
क्या कुछ ढूंढ रहे हो? प्रेम? रूक जाओ, ठहर जाओ, स्थिर हो जाओ प्रेम तुम्हें खुद ढूंढ लेगा अगर तुम उसकी आग में जलने के लिए तैयार हो ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
प्रेम में लिखी गयी चिट्ठियाँ जलाने से नष्ट नहीं होती उसके शब्द हो जाते हैं और भी चमदार प्रेम तपने लगता है आग की तरह और भी जियादा ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
मन में गुबार है ही नहीं दिल में दीवार है ही नहीं कसमें खा के जो सच कहे वो ईमानदार है ही नहीं कहाँ से लाऊँ कंगन उसका इश्क में पगार है ही नहीं मिलने जुलने में बुरा क्या है माना कि तुमको प्यार है ही नहीं जिसे जताना पड़े रोज-ओ-शब यार वो प्यार है ही नहीं ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
प्रेम करने का सबसे बेहतर तरीका होता है बिना इच्छा के जिये चले जाना प्रेम में इंतजार से सुंदर और कुछ नहीं होता ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
आज मैंने कचहरी में गीता की शपथ लेकर गवाह को झूठी गवाही देते देखा माँ मुझे वर दो कि मैं बिना कसम खाये सच कह सकूँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
सूर्यास्त के बाद अंधेरे के विरुद्ध लड़ने का बीड़ा उठाया था मिट्टी के नन्हें दिये ने आजकल कुछ दिये फंस गये हैं अंधेरे के मायाजाल में वे घोषित कर रहें खुद को प्रकाश का असली वारिस असली नकली के इस युद्ध में असली दियों को साहस दो माँ धैर्य दो माँ सत्य को वर दो माँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
तुम्हारे विछोह की पीड़ा इतनी घनीभूत थी कि अगर प्रेम रूक न गया होता मेरे पास तो मैं हो गया होता पत्थर ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
स्मृति तुम्हारी अंश है तुम्हारा ही उतनी ही कोमल, उतनी ही शीतल जीतनी हो तुम, जीतना है तुम्हारा प्यार दहकती भी है जितना दहकती हो तुम प्यार करते हुए ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
जब तुम्हें फूल सिर्फ पूजा की सामग्री लगे जब तुम्हें चाँद में सिर्फ चर्खा चलाती बुढिया दिखे जब तुम्हें अपने हर सवाल का जवाब गूगल में खोजना पड़े तब तुम किताबें पढ़ो कविता लिखो चित्र बनाओ नृत्य करो बीज बोओ गहरी साँस लो ठंडा पानी पियो यही तुम्हारे मरणासन्न हृदय की धमनियों को पुनर्जीवित करेगा ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
इसका उससे क्यूँ पंगा है मन में हरदम क्यूँ दंगा है सजा है स्वच्छ वसन में लेकिन आदमी दिखता क्यूँ नंगा है रोटी दवाई तक मुश्किल है फिर भी सब कुछ क्यूँ चंगा है निर्भया अब भी नहीं है निर्भय मैली अब तक क्यूँ गंगा है जिसमें कानून . बनता है वो संसद क्यूँ लफंगा है ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम