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Anamika Nautiyal

बणों का फूलो मां ऐ ग्ये फूलार सज्यां होला खोला-घर-द्वार बाला-ज्वान सभी हैंसणा होला मुख पर आयूँ होलू उलार जंगलों के फूलों में पुष्पन आ गया है घर मोहल्ले दहलीज सभी सजी हुई बच्चे और जवान सभी प्रसन्न हैं

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        बणों का फूलो मां ऐ ग्ये फूलार
सज्यां होला  खोला-घर-द्वार
बाला-ज्वान सभी हैंसणा होला
मुख पर आयूँ होलू उलार

जंगलों के फूलों में पुष्पन आ गया है
घर मोहल्ले दहलीज सभी सजी हुई
बच्चे और जवान सभी प्रसन्न हैं

Anamika Nautiyal

गढ़वाली बोली में रची गई मेरी द्वारा दूसरी कविता हिंदी अनुवाद आज इन बंजर पड़े हुए खेतों मैं फिर से हरियाली छा गई है इन सूने पड़े घरों में फिर हल्ला-गुल्ला हो गया कुछ नहीं हुआ तो कम से कम इस

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आज यौं डोखरा पुंगड़ा मां फिर रंगत ऐगी
यौं सूना पड्या घरों मां फिर हल्ला-गुल्ला व्हैगी

कुछ ना व्है त ईं बीमारी न लोग त अपड़ा उब पैटाई
धै लगाण बुलाणी रै य धरती अब त कुछ समझ आई
 
जौं छोड़-कुड़ी छोड़ी तुम जै न 
आज विपदा मां वखी तुमुन शरण पाई

हे! मेरा नौन्यालों अब ना जाए छोड़ी क मिथैं 
तुमारा औण न मेरी आस जगाई गढ़वाली बोली में रची गई मेरी द्वारा दूसरी कविता

 हिंदी अनुवाद

आज इन बंजर पड़े हुए खेतों मैं फिर से हरियाली छा गई है
इन सूने पड़े घरों में फिर हल्ला-गुल्ला हो गया

कुछ नहीं हुआ तो कम से कम इस

Anamika Nautiyal

अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है। फूलों में नई कोंपले आ गई है , वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है। देहरी पर फूल पड़ चुके हैं आज फूलदेई का त्योहार है। ⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔ फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं

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ऐगे चैत यू बंसती बहार लीक
फूल मां फूलार लीक
फ्योलीं बुरांश खिलिगे बणो मां
बच्चा-बच्चा खुश म्यार पहाड़ मां
डेली-डेली फूल पडी गे
आज फूलदेई कु त्योहार एगे


 अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है।
फूलों में नई कोंपले आ गई है ,
वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है।
देहरी पर फूल पड़ चुके हैं 
आज फूलदेई का त्योहार है।

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फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं

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