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Gyana Ranjan Sethy
कविता: पहचान मुसलमान होता पाकिस्तान चलागया होता जनाब भारतीय हूँ इसलिए नहीं कि भारत में रहता हूँ इसलिए भी नहीं कि भारत मादरेवतन है मेरा इसलिए भी नहीं कि यहाँ की हवा से भरा मेरा सीना और पानी मेरी रगों में है अनाज धड़कता है मेरे नन्हें से दिल में ज़ुबान मुझे बनाती है नेकदिल इन्सान वजह सिर्फ़ एक है मेरी जड़ें बहुत गहरे धंसी हैं,सोने जैसी इस मिट्टी में उस मिट्टी में जिसमें बुद्ध महावीर राम कृष्ण कबीर मीरां नानक निज़ामुद्दीन चिश्ती गांधी सुभाष आज़ाद बिस्मिल अशफ़ाक़ भगत राजगुरु अभी भी सांस लेते हैं,उनके बदन की गर्मी से पकते हैं अनाज इस मुल्क में हज़रत मैं बोन्साई होता तो कब का टंग गया होता विदेशी छतों की कुंडी से पाक परवरदिगार ने बरगद बनाकर भेजा है तो उसकी लाज मेरे हाथ ही है ना! भारतीयता मेरी पहचान है इस्लाम मेरा मज़हब एक ज़मीन से जुड़ा है दूसरा आसमान से एक मां है तो दूसरा पिता है और हमारे खानदान में सिंगल पैरेंटिंग नहीं होती न मैं मां को छोड़ सकता न रह पाऊंगा पिता के बगैर ही ऐसे में तुम्हें जो समझना है समझो! जो मानना है मानो! मैं तो ऐसा ही हूँ और ऐसे ही रहूँगा अपनी जड़ों से जुड़ा आसमान में सिर ताने फिर मिलते हैं ख़ुदा हाफ़िज़ कविता: पहचान मुसलमान होता पाकिस्तान चलागया होता जनाब भारतीय हूँ इसलिए नहीं कि भारत में रहता हूँ इसलिए भी नहीं
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