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꧁प्यारा शायर ~SKR꧂
आसान और जमीन दूर होकर भी, एक दूसरे के साथ है। नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें। (मूल कविता कैफ़ी आज़मी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।
Poonam Suyal
मक़ान है ये तेरा मेरा.... बनायेंगे इसे घर अपने प्यार से सजाएँगें इसको.... आपसी समझ और अपनेपन में, ज़िंदगी होगी हमारी बसर दिखा देंगे दुनिया को, मक़ान को घर कैसे हैं बनाते लगे ना इसे किसी की नजर नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें। (मूल कविता कैफ़ी आज़मी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।
Wallflower Wallflower
ऊंचे मकानों में तो लोग रहते है रूहे इश्क तुझ में फरिश्ते रहते है। जहां सुकून की नींद खुदाई बक्शिसी मिलती है। नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें। (मूल कविता कैफ़ी आज़मी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।
Asha Giri
पूर्ण कविता अनुशीर्षक में... नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें। (मूल कविता कैफ़ी आज़मी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।
Rakesh Tiwari
जंग खा रही ताले दरवाजें पे ऊंघती खिड़कियां यू लगा जैसे मेरी तरह वो भी किसी इंतज़ार में हैं मेने नजरो से खटखटाया मूकदर्शक अनुत्तरित सवालों से बोझिल बाट जोह रही मकान निस्तेज पड़ी थी नाउम्मीदी से बरसों बाद जो तिरी गली से गुजरा यू लगा जैसे किसी बियाबान से गुजरा -राकेश तिवारी- नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें। (मूल कविता कैफ़ी आज़मी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।
Sangeeta Patidar
ईंट-पत्थरों को पोत-पात कर बना तो लिया है मकान तुमने, क्या करोगे प्यार से सजे रिश्तों का, कहा जिसे दुकान तुमने। वक़्त की आँधियों से ढेर हुए जब तुम, तब किसने संभाला? बन अनजान, क्यों भीगी दुआ को किया लहू-लुहान तुमने? सिक्कों की खनकती आवाज़ से आती क्या नींद सुकूँ की? लोरी से धड़कती धड़कन पे, क्यों दिया नहीं धियान तुमने? किसी से रिश्ता बिगाड़कर, कब-तलक यूँ मुस्कुरा पाओगे? उन की वारी हुई ख़ुशियों को, कैसे कह दिया गुमान तुमने? बे-घर है 'धुन' कुछ समझती नहीं, तुम्हें तो कोई कमी नहीं! अपने ही हाथ से अपने का फिर कैसे किया ज़ियान तुमने? -संगीता पाटीदार 'धुन' ज़ियान- Loss नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH1 के साथ और "मकान" पर कविता लिखें।
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