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Sachin Ratnaparkhe

ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब" चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं, चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं। तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है ज़ाम-ए-इश्क़, चाहता हूं तेरी आँखो पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। #hindierotica #रुखसार #रेशमी_जुल्फें #हुस्न_ए_उरोज #बोसा_ए_लब #खूबसूरती_ए_जिस्म #कशिश_ए_हुस्न_ओ_शबाब #eroticgazal

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ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब"

चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं,
चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है ज़ाम-ए-इश्क़,
चाहता हूं तेरी आँखो पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी रेशमी जुल्फें सा अहसास है तुझसे मोहब्बत,
चाहता हूं तेरी जुल्फों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी उभरे रुखसार से सजती है क़ातिल मुस्कुराहट,
चाहता हूं तेरे रुखसार पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे हुस्न-ए-उरोज पर मरती है कई जवानियाँ,
चाहता हूं तेरे उरोज पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे बोसा-ए-लब से ज्यादा सुरूर-ए-इश्क़ कहाँ,
चाहता हूं तेरे लबों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी खूबसूरती-ए-जिस्म पर फ़िदा है सारा जमाना,
चाहता हूं तेरे जिस्म पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे कशिश-ए-हुस्न-ओ-शबाब से मदहोश है राही भी,
चाहता हूं तेरे शबाब पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब"

चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं,
चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है ज़ाम-ए-इश्क़,
चाहता हूं तेरी आँखो पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।


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