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Bambhu Kumar (बम्भू)

थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को #डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में #poem #अजनबी #होठों #वासना #कृष्णा #ढह #ढीली #बेख़बर #कौमार्य #चीख़ #छटपटाई #कछारों

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2.
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया... थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को
सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को

#डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में

Anjali Sheetal Kerketta

एक कहानी पुरानी डायरी से 

ये 2008 की बात है जब मैं मैटिक लिखकर छुटटी बिताने अपने बुआ के साथ हटिया से बोकरो जा रही थी ।मेरी बुआ जो एक शिक्षिका है । मैं अपनी बुआ के साथ वर्दमान टे्न से जा रही थी ।बहुत खुश थी मैं । मुरी स्टेशन पर एक बूढ़ी महिला टे्न में चढ़ी।वह घूम -घूमकर पैसा मांग रही थी।मैं उनको देखी तो ऐसा लगा वह मांगना ना चाहती हो ।मुझे ऐसा लगा कि उनसे बात करू।मुझसे रहा नही गया ।मैं बोली यहां बैठिये। वो  बूढ़ी मां मेरे बगल बैठ गयी।मैंने कहा आप कुछ कहना चाहती है ।वो चुप थी।फिर बोली बेटी! मेरी इस हालात की जिम्मेदार मैं हूं मेरा बूढ़ापा है। मैने कहा क्यों ऐसा सोचती हो। फिर उसने अपनी कहानी बताई उसका एक बेटा  है।उसके लिए वह घर जाकर - जाकर बरतन धोयी ,कपड़े धोयी ताकि  वह अच्छी तरह से पढ़कर एक अच्छा इंसान बने। वह  पढ़कर नौकरी करने लगा।।नौकरी करते हुए उसे एक लड़की से प्रेम हो गया।मैने उसकी शादी करा दी। सब ठीक रह चला था मैं घर के काम करती वे दोनो नौकरी में जाते।मैं धीरे -धीरे वृध्दा अवस्था में आ गयी।अब मुझसे  ज्यादा काम नही होता था।एक दिन मेरे बेटे ने कहा "मां अब तेरा बोझ मैं नही उठा पाऊंगा।" ना चाहकर भी मुझे घर छोड़ना पड़ा। काश  ये बुढ़ापा आता ही नही। मैं रो पड़ी और सोच में डूब गयी  "कोई बेटा कैसे इतना निरदयी हो सकता है धूप में जलकर जिसने सीचां उसे ,उसने ही धूप में जलने को छोड़ दिया। ऐसी संतान से अच्छा निसंतान होना है।
दोस्तो 
माता- पिता हमारे लिए सबकुछ करते है लेकिन क्या हम उनके बुढ़ापे में सहारा नही बन सकते एक दिन हमें भी तो उसी अवस्था में जाना है।

madhusmita das

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हजार लोग हजार बात बोलते थे अब भी बोलते है, ये मै लिख कर आयी हूं ।
पर बोलने वाला सजा भोगा मेरा कुछ नहीं गया।
बूढ़ी एक थी बोली कि बेटी हुई है वो भी लंगड़ी।
मा बाप सुन कर चुप रहे गए।
मै चुप नहीं रहे पाई।
बचपन बीता उसके साथ बूढ़ी और बूढ़ी हो गई। एक दिन तबीयत खराब हुआ hospital me admit करना पड़ा।
उसी दिन मुझे घूमने जाना था, घर में जो दो लोग थे वो गुस्सा कर ने लगे (और करना एक अच्छे इन्सान का काम है क्यूं की एक इन्सान बीमार था)।
मुझे बूढ़ी की वो पुरानी बाते याद थी , मुझे अच्छा नहीं लगा कि उसके लिए मुझे खुश नहीं होने दी रहे घर में।
मूह से निकाल गया ये बूढ़ी मर क्यूं नहीं जाती और 5 minutes के बाद phone Baja, खबर ये था की बूढ़ी चल बसी।
उस दिन   बिल्कुल नहीं रूई मै क्यूं की हर बार की तरह उस दिन भी मै कुछ नहीं कर रही थी पर भगवान नाम का कुछ होता है।

हेमाश्री प्रयाग

हरी भरी हो वसुंधरा,हरा भरा सा जहां। बूढ़ी वसुंधरा काकी. Hariom Suryawanshi Satyaprem Internet Jockey Abhijeet Yadav @TheBluntPoet Nojoto Help 🤝 Wagish Chandra

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🌍 *बूढ़ी वसुंधरा काकी*🌚

पानी पानी कह बुला रही थी।
बूढ़े झुर्रीदार कांपते हाथों वाली काकी थी 
हे बेटा मुझे प्यास है लगी  
दे दो लाकर एक लोटा पानी।
सुकड़ी आंखें घुसी हुई। 
जैसे हो गड्ढे में गोली ।
उस पर एक पाव का चश्मा।
जिसमें  एक आंख का है शीशा चटका ।
लटक रहा धागे में बंधा ऐनक।
 जैसे चूल्हे पर हो चढ़ा तवा।
सूखे काले होठ तो मानो तड़प रहे हो कई वर्षों से ।
बूंद-बूंद को व्याकुल धरती फट गई भीषण सूखे से ।
टांगो तक उफनाती धोती ऐसे वलय बनाती मानो हो  सागर में उठता ज्वार ।
बीच-बीच में फटी है ऐसे  जैसे भूरे बादल में निकले हो तारे दो चार ।।
मटमैली रंग हो चली जो ,
जो रहती ती कभी हरी-भरी।
लहंगा उसका रहा सुनहरा, चुनरी रंगी बसंती  ।
केश है बिखरे उसके जैसे नदी हो लहराती ।
करुण दशा हुई धरती मां की यह हेमा है बतलाती ।
बूढ़ी हो रही धरती काकी जो थी मधुबन मदमाती ।।

*हेमा श्रीवास्तव हेमाश्री प्रयाग* 🍀🍀 #NojotoQuote हरी भरी हो वसुंधरा,हरा भरा सा जहां।
बूढ़ी वसुंधरा काकी.
Hariom Suryawanshi  Satyaprem Internet Jockey Abhijeet Yadav @TheBluntPoet Nojoto Help 🤝 Wagish Chandra

#sachin shukla

अंगुली पकड़ के जिसको चलना सिखाया ,
जब वो सामने अकड़ता है ,
मत पुछो बूढ़ी चमड़ी पर तब कैसा कौढा पड़ता है ।,

जिसके लिये ना बदली करवट , 
वो आँखे जब बदलता है, 
मत पूछो बूढ़ी चमड़ी पर तब कैसा कौढा पड़ता है॥. #NojotoQuote #loveyourparents #truth

Kumar.vikash18

बूढ़ी आँखे अनवरत जागती वो बूढ़ी आँखे तेरे आने की आहट पाने के लिये द्वार को ताकती बूढ़ी आँखे , अब वो निवाला भी हलक़ से निगला जाता नहीं तुम्हे खिला के जो खाती थीं बूढ़ी आँखे ! चार थीं वो कभी तुम्हारे आने से छः

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अनवरत जागती वो बूढ़ी आँखे तेरे आने
की आहट पाने के लिये द्वार को ताकती
बूढ़ी आँखे ,
अब वो निवाला भी हलक़ से निगला
जाता नहीं तुम्हे खिला के जो खाती थीं
बूढ़ी आँखे !
चार थीं वो कभी तुम्हारे आने से छः
हुआ करती थीं तुम क्या गये दो बची
बूढ़ी आँखे ,
घर का वो आँगन भरा पूरा था कभी
आज देख कर वीरानगी आँसू बहाती
बूढ़ी आँखे !
याद करो वो तुम्हारे बीमार पड़ते आँखों
में गुजारती रातें आज खुद  लाचार हैं
बूढ़ी आँखे ,
रोके रखी थी वो एक साँस जो तुमसे
मिलने के लिये चल बसी इस आस में
बूढ़ी आँखे !! बूढ़ी आँखे 
अनवरत जागती वो बूढ़ी आँखे तेरे आने
की आहट पाने के लिये द्वार को ताकती
बूढ़ी आँखे ,
अब वो निवाला भी हलक़ से निगला
जाता नहीं तुम्हे खिला के जो खाती थीं
बूढ़ी आँखे !
चार थीं वो कभी तुम्हारे आने से छः

Kashyap Hargovind Hargovind

"मां बाप अपने बेटा बेटी की खुशी के लिए अपनी सारी जिंदगी लगा देते हैं और उनको कोई भी दुख नहीं होने देते हैं. गरीब मां बाप अपनी औलाद के लिए झूठे बर्तन तक साफ करते हैं, लेकिन बड़ा होने के बाद वही औलाद अपने मां बाप को दो वक्त की रोटी तक नहीं दे पाते हैं. औलाद अपनी मां पर चाहे कितना भी जुल्म करें लेकिन मां मां के दिल में हमेशा उनके लिए ममता ही रहती है. आज हम आपको एक ऐसा ही वाकया सुनाने जा रहे हैं. बेटों ने 85 वर्षीय मां को निकाला घर से बाहर जिस घटना का आज हम जिक्र करने जा रहे हैं वह उत्तर प्रदेश के

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"मां बाप अपने बेटा बेटी की खुशी के लिए अपनी सारी जिंदगी लगा देते हैं और उनको कोई भी दुख नहीं होने देते हैं. गरीब मां बाप अपनी औलाद के लिए झूठे बर्तन तक साफ करते हैं, लेकिन बड़ा होने के बाद वही औलाद अपने मां बाप को दो वक्त की रोटी तक नहीं दे पाते हैं. औलाद अपनी मां पर चाहे कितना भी जुल्म करें लेकिन मां मां के दिल में हमेशा उनके लिए ममता ही रहती है. आज हम आपको एक ऐसा ही वाकया सुनाने जा रहे हैं.
बेटों ने 85 वर्षीय मां को निकाला घर से बाहर

जिस घटना का आज हम जिक्र करने जा रहे हैं वह उत्तर प्रदेश के

kavi Ashwani Mishra

#hindisayari

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जब तुम बूढ़ी हो जाओगी
बैठोगी फिर जब अकेले कहीं
नगमों को मेरे गाओगी
होगी हंसी तेरे होठों में तब..
बैठ बच्चों को अपने फुर्सत से 
किस्से कुछ तो सुनाओगी
जब तुम बूढ़ी हो जाओगी ....
पं अश्वनी कुमार मिश्रा #hindisayari

RAJ SINGH ✔️

#दस_साल_बाद 

                           #मौत_का_इजहार 

                            #Rebirth 

                                #PART_1


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