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Raju Mandloi
“#वर्ष" #शब्द_में_एक_भ्रम_व_एक_तथ्य_अन्तर्निहित_है। तथ्य — ऋतुएँ एक निश्चित क्रम से आती हैं जिससे वर्ष नामक एक चक्र बनता है जिसका मान निर्धारित है। इस चक्र में आधारभूत 4 बिन्दु हैं अर्थात् इस चक्र के आरम्भ के 4 विकल्प हैं — 1. सबसे बड़ा दिन (इसी दिन से वर्ष/वर्षा का आरम्भ मनाया जाता था क्योंकि भारत“वर्ष" कृषिप्रधान था) 2. शरद् में दिन-रात की अवधि समान (कालान्तर में इसी दिन से वर्ष का आरम्भ मनाया जाने लगा क्योंकि यह पितृविसर्जन के निकटवर्ती था) 3. सबसे छोटा दिन (केरल आदि कुछ दक्षिणी प्रदेशों को छोड़कर इस दिन से कभी भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में वर्ष का आरम्भ नहीं मनाया गया) 4. वसन्त में दिन-रात की अवधि समान (वैष्णवों व योरोपवासियों के प्रभाव से इस दिन से वर्ष का आरम्भ मनाया जाने लगा) भ्रम — एक वर्ष (ऋतुचक्र) में पृथ्वी सूर्य का एक परिक्रमण पूर्ण कर लेती है। पूर्ण परिक्रमण को “नाक्षत्र वर्ष" संज्ञा प्रदान की गई है जिसकी अवधि वर्ष (ऋतुचक्र) से लगभग 20 मिनट अधिक होती है। प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेण्डर “नाक्षत्र वर्ष" का नहीं अपितु वर्ष (ऋतुचक्र) का द्योतक है किन्तु ऋतुचक्रदृष्ट्या भी इसमें 2 दोष रह गए हैं — प्रथम दोष — इसमें 30 दिन के 4 माह, 31 दिन के 7 माह एवं एक माह 28/29 दिन का है जबकि 30 दिन के न्यूनातिन्यून 6 माह अवश्य होने चाहिए। प्रथम निवारण — 30 दिन के 6 माह, 31 दिन के 5 माह एवं एक माह 30/31 दिन का होना चाहिए। द्वितीय निवारण — 30 दिन के 10 माह, 33 दिन का 11वाँ माह एवं 32/33 दिन का 12वाँ माह होना चाहिए। द्वितीय दोष — वर्ष के आरम्भ में 10 दिन का विलम्ब है क्योंकि उत्तरायणारम्भ (उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन) के 10 दिन पश्चात् 1 जैन्युअरि आती है। प्रथम निवारण — किसी 22 डिसैम्बर को सीधे 1 जैन्युअरि घोषित कर दिया जाय अथवा किसी 1 जैन्युअरि को सीधे 11 जैन्युअरि घोषित कर दिया जाय। द्वितीय निवारण — ऋतुचक्र-आधारित ग्रेगोरियन कैलेण्डर को “नाक्षत्र वर्ष"-आधारित कैलेण्डर में परिवर्तित कर दिया जाय। नक्षत्र अचल किन्तु ऋतुचक्र चल है किन्तु ऋतुचक्र-आधारित ग्रेगोरियन कैलेण्डर में नक्षत्र-आधारित मकर संक्रान्ति आदि घटनाएँ लगभग 72 वर्ष व्यतीत होने पर एक दिनांक आगे बढ़ती रहेंगी अर्थात् कालान्तर में मकर संक्रान्ति का दिनांक क्रमश: 15/16 जैन्युअरि, 16/17 जैन्युअरि, 17/18 जैन्युअरि होता जाएगा। यदि “नाक्षत्र वर्ष" पर आधारित कैलेण्डर चलाया जाय तो मकर संक्रान्ति का दिनांक स्थिर ही रहेगा और तब ऋतुचक्र के चारों बिन्दु अर्थात् उत्तरायणारम्भ, वसंत विषुव, दक्षिणायनारम्भ एवं शरद् विषुव लगभग 72 वर्ष व्यतीत होने पर एक दिनांक पिछड़ते रहेंगे अर्थात् उत्तरायणारम्भ का दिनांक क्रमश: 21 डिसैम्बर, 20 डिसैम्बर, 19 डिसैम्बर, 18 डिसैम्बर आदि होता जाएगा ; वसंत विषुव का दिनांक क्रमश: 20 मार्च, 19 मार्च, 18 मार्च, 17 मार्च आदि होता जाएगा ; दक्षिणायनारम्भ का दिनांक क्रमश: 20 ज्यून, 19 ज्यून, 18 ज्यून, 17 ज्यून आदि होता जाएगा तथा शरद् विषुव का दिनांक क्रमश: 22 सैप्टैम्बर, 21 सैप्टैम्बर, 20 सैप्टैम्बर, 19 सैप्टैम्बर आदि होता जाएगा। ऋतुचक्र का दिनांक पिछड़ना नितान्त समीचीन ही होगा क्योंकि यह 20 मिनट की वार्षिक दर से वस्तुत: पिछड़ ही रहा है। सनातनी हिन्दू नववर्ष चैत्र मास के प्रथम दिन से आरम्भ होता है। इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी; इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई, इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। प्रभु श्री राम तथा युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। यह शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन भी है। इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है। अब वर्ष के प्रारम्भ होने के समय की बात करते है । हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है । इस समय सूर्य मेष राशि में होता है । सृष्टि का आरम्भ मेष राशि के आदि बिंदु से हुआ है । सृष्टि का पहला दिन रविवार था और सूर्य की पहली होरा थी । इस कारण हमारा नव वर्ष तब ही शुरू होता है यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से । अब ईशवी नववर्ष की अवैज्ञानिकता की बात करते है । जिसके स्वागत की तैयारियाँ आप बेसब्री से कर रहें है । उसमे कोई वैज्ञानिता मुझे नजर नहीं आती । इसमें पहले 10 महीने होते थे । तब ये मार्च से शुरू होता था । मार्च का अर्थ भी शुरुवात करना होता है। बाद में इसमें 2 महीने जोड़ दिए गए जनवरी और फ़रवरी इनको अंत में जोड़ना चाहिए था लेकिन शुरू में जोड़ दिया इसका परिणाम ये हुआ कि जहाँ से शुरू होता था वह तीसरा महीना बन गया । दिसम्बर अर्थ दशवाँ होता है यह दशमलव से बना है अब ये 12वाँ महीना बन गया । डेट और दिन रात के बारह बजे बदलती है जिसका कोई आधार नहीं है । वास्तव में पहले विश्व का समय महाकालेश्वर से निर्धारित होता था । लेकिन जब हम अंग्रेजो के गुलाम बने तो उन्होंने हमारे बारे में बहुत कुच्छ जाना और हमारे साथ डेट और दिन बदलना शुरू किया । क्योंकि भारत और इंग्लैंड के समय में 5 घंटे 30 मिनट का अंतर है ।वो हमसे 5.30 घंटे पिच्छे है । लेकिन ऐसा करके उन्होंने अपने बौद्धिक दिवलयेपन का ही परिचय दिया उस समय वहाँ रात होती है । अब हमारी राष्ट्रीय नैतृत्व की बात करे जो आज भी कामनवेल्थ का सदस्य है जिसका अर्थ है हम आज भी इंग्लैंड की महारानी को अपनी आका मानते है । और एक सच्चे सेवक की भाति हमने भी मध्य रात्रि में दिन और दिनांक बदलना शुरू कर दिया । हमारी इसी पराधीन मानसिकता के कारण हम अपने पे भरोसा करने के स्थान पर दुसरो का कचरा इस नववर्ष और अन्य तरह कई तरह से ढो रहे है । सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमाणि आदि ग्रन्थों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है। ज्योतिर्विदाभरणादि भारतीय शास्त्रीय ग्रन्थ इसका स्पष्ट कारण बतलाते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जब सब ग्रह मेष राशि के आदि में थे, उस समय इस कल्प का प्रारम्भ हुआ। काल-गणना सृष्टि के आदि से ही चली। उसी दिन सर्वप्रथम सूर्योदय हुआ। प्राचीन समय में सप्तर्षि संवत प्रचलन में था; चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने कलियुग में धार्मिक साम्राज्य स्थापित करने के लिए इसी दिन विक्रमी संवत स्थापित किया था; इसमें नववर्ष की शुरुआत चंद्रमास के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। इसमें महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। सनातन तिथियाँ चन्द्रमास या चन्द्रमा की गति पर आधारित वैदिक कलेंडर में तिथियों अर्थात दिन या दिनांक के नाम संस्कृत गणना पर रखे गये हैं, वैदिक कलेंडर कई प्रकार के हैं, सबसे अधिक प्रचलित चन्द्रमास ही है। मास को दो भागों में बांटा जाता है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष :- कृष्ण पक्ष अर्थात जब चन्द्रमा की घटती आकृति होती है। शुक्ल पक्ष अर्थात जब चन्द्रमा की बढती आकृति होती है। तिथियाँ 1 = एकम (प्रथमी) 2 = द्वितीया 3 = तृतीया 4 = चतुर्थी 5 = पंचमी 6 = षष्ठी 7 = सप्तमी 8 = अष्टमी 9 = नवमी 10 = दशमी 11 = एकादशी 12 = द्वादशी 13 = त्रयोदशी 14 = चतुर्दशी 15 = कृष्ण पक्ष की अमावस्या :: शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा जब हम तिथि बताते हैं तो पक्ष भी बताते हैं जैसे: शुक्ल एकादशी अर्थात शुक्ल पक्ष की एकादशी या 11वीं तिथि कृष्ण पंचमी अर्थात कृष्ण पक्ष की पंचमी या 5वीं तिथि सनातन माह सबसे उत्तम वैदिक कलेंडर ऋतुओं (मौसम) के अनुसार चलता है, समस्त वैदिक मास (महीने) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। कान्ती वृन्त पर 12 महीने की सीमायें तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग हैं और नाम भी तारा मण्डलों के आकृतियों के आधार पर रखे गये हैं। जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ – 1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास l 2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास l 3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास l 4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा नक्षत्र से आषाढ़ l 5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास l 6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र से भाद्रपद l 7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास l 8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास l 9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास l 10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास l 11. माघा नक्षत्र से माघ मास l 12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से फाल्गुन मास l व्यवस्था वैदिक काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर नहीं पड़ता; इसका अध्ययन करते हुए विश्व के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋषियों ने इतनी सूक्ष्तम् और सटिक गणना कैसे कर ली। चूंकि सूर्य कान्ति मण्डल के ठीक केन्द्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है, और अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है। यूरोपीय कैलेण्डर अव्यवस्थित है,पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते है। अंग्रेज़ी वर्ष में प्रत्येक चार वर्ष के अन्तराल पर फरवरी महीने को लीप इयर घोषित कर देते है, परन्तु फिर भी नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। मार्च 21 और सेप्तम्बर 22 को equinox (बराबर दिन और रात) माना जाता है, परन्तु अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार सभी वर्षों में यह अलग-अलग दिन ही होता है। यही उत्तरी गोलार्ध में जून 20-21 को सबसे बड़ा दिन और दिसंबर 20-23 को सबसे छोटा दिन मानने के नियम पर भी है, यह वर्ष कभी सही दिनांक नहीं देता। इसके लिए पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय अधिक चल रहा है; यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है जहां की सीजीएस (CGS) सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किये जाते हैं। ये ऐसा इसलिए है क्योंकि उसको वैदिक कैलेण्डर की नकल अशुद्ध रूप से तैयार किया गया था। कैलेण्डर/वर्ष का प्रतितोलन प्राचीन काल में यूरोप में भी हिन्दू प्रभाव था, और सम्पूर्ण विश्व में चैत्र(चैत) मास को नववर्ष मनाया जाता था जो अंग्रेज़ी कैलेन्डर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है। चैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है, आज नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू। 12 बजे आधी रात से नया दिन का कोई तुक नहीं बनता है। दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कहते हैं, और यहाँ से नए दिन की तैयारी होती है। प्राचीन समय में भारत विश्वगुरु था, इसलिए कलियुग के समय ज्ञान के अभाव में यूरोप के लोग भारतियों का ही अनुकरण करना चाहते थे। अत: वे अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते थे क्योंकि इस समय भारत में नया दिन होता है, इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे। ।।हर हर महादेव ।। ।।जय परशुराम ।। #We_support_hindutava_unity ©Raju Mandloi #WinterEve
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