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amar gupta
बारिशों की कसक कहाँ? फूलों में महक कहाँ? आईना है बेखबर, रूप का ये अक्स कहाँ? मंजिलों को छूने वाली रेंगती सड़क कहाँ? सांझ हो चुकी है अब भोर का सबब कहाँ? ख्वाब क्या है, क्या पता? ख्वाब भी बचे कहाँ! जिंदगी है बेखबर, ऐ जिंदगी तू है कहाँ? #कालजयी_श्रुति #जिंदगी
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इतने नायाब जोड़ियां बना कर, तू उन्हें मुक्कमल क्यों नहीं करता ए खुदा, तेरे लिए इश्क क्या है? मिलन की आस लिए जीते रहना या विरह के ग़म में पल पल मरना तू बता, इश्क का अक्स क्या है? #इश्क #कालजयी_श्रुति #तुम #yqhindi #yqbaba Saket Garg thank you for the poke 😊
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इमारते जवान है खंडरों की तरह बदुआए लगती है मन्नतों की तरह राहों का पता क्या, बातों का पता क्या? मेरी बातें लगती है मिन्नतों की तरह! #merrychristmas #कालजयी_श्रुति #YQdidi Debabrata 🙏🖐️
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बेमान बड़ा ये इश्क जनाब सोच समझ कर कीजेगा। सूली पर टांग के बुद्धि को दिल को राह न दिजेगा। क्यों तुले है होश गवाने पर? कुछ न होगा पछताने पर! हां, अगर तड़प की कसक लगी तो इश्क दोबारा कीजेगा। (अनुशीर्षक में पढ़े) बेमान बड़ा ये इश्क जनाब सोच समझ कर कीजेगा। सूली पर टांग के बुद्धि को दिल को राह न दिजेगा। दिल की मान लिए ही जो और ख्वाब का फंदा पड़ गया तो खोई आंखों पर ऐनक डाल
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जीत ले तू हर असंभव, कर्म का बस कर चयन। कर्म के धागों से बंधित चक्र ये जीवन मरण। कर यकीन तू शौर्य है हां तेरे भांति कौन और? हर प्रतिष्ठा मान तुझसे, हृदय का हर कण तरुण। (शेष कविता अनुशीर्षक में पढ़े...) जीत ले तू हर असंभव, कर्म का बस कर चयन। कर्म के धागों से बंधित चक्र ये जीवन मरण। कर यकीन तू शौर्य है हां तेरे भांति कौन और? हर प्रतिष्ठा मान तुझसे,
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मुझे खुले कागज़ों पर लिखना पसंद है नाकि किसी बंधी रूल्ड डायरी पर जहा लकीरों की बंदिशे होती है और झूठी सजावट की जरूरत भी। बिलकुल हमारे रिश्ते की तरह ही मेरी मर्म कविताओं का दम भी घुटने लगता है, वो मरने लगती है ऊपरी दिखावट के दबाव से। मैं नहीं चाहती मेरी कविताओं को भी, कोई बांध दे जबरन एक में बल्कि स्वतंत्र भाव से लिखित ये काव्य आप ही जुड़ जाए प्रेम के लेई से मैं स्वयं संजोउ हर एक पन्ना और अपने प्रेम से संचित करू एक स्वतंत्र सुलझी डायरी। स्वतंत्र डायरी #कालजयी_श्रुति #हिंदी #yqbaba #YQdidi #डायरी
amar gupta
अगर सारे कवि अपनी करुणा को मार कर लेते है अपने हृदय को पाषाण तो ये सर्व जगत नीरसता के आसूं रोएगा! #कवि #भावहीन #शून्य #करुणा #कालजयी_श्रुति #YQdidi #yqbaba
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सावला रंग कितना खूबसूरत है ये मैंने तब जाना जब तुमने स्याही से लिखी एक कविता कागज़ पर, मेरे नाम की लिखी! #कविता #कागज़ #तुम #कालजयी_श्रुति #सावला_रँग #YQdidi #yqbaba
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अक्षर अक्षर पहचानती हूं उसे, मेरी लिखावट सा जानती हूं उसे। मेरी लेखन का सार है, अपनी कलम की स्याही मानती हूं उसे। कोरे कागजों की चुप्पी है उसमे और आँखों में उसकी गहराई है। मैं उस बिन अधूरी हूं इतनी की अपनी डायरी ही मानती हूं उसे। मेरे आंखों में है चेहरा उसी का, मेरे शब्दों में है बातें उसकी, मेरे प्रेम का स्वरूप है वो हीं, न जाने इतना क्यों चाहती हूं उसे? धीमी बारिशों की तरह है वो प्रेम वही , और विरह भी वो अपने भीतर को खाली कर के खुद के भीतर ढालती हूँ उसे। अक्षर अक्षर पहचानती हूं उसे, मेरी लिखावट सा जानती हूं उसे। अक्षर अक्षर पहचानती हूं उसे, मेरी लिखावट सा जानती हूं उसे। मेरी लेखन का सार है, अपनी कलम की स्याही मानती हूं उसे। कोरे कागजों की चुप्पी है उसमे और आँखों में उसकी गहराई है। मैं उस बिन अधूरी हूं इतनी की
amar gupta
सफेद रंग पर अक्सर दाग लग जाते है, अब सावलापन मुझे रास आने लगा है! जबसे ये सितारे तुम्हारी आंखे हुई है तबसे साँझ खुद मेरे पास आने लगा है। #तुम #सावलापन #सावला_रँग #कालजयी_श्रुति #YQdidi #yqbaba