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amar gupta

आकाश और धूल कण का मिलन अनन्त है,
आकाश और सागर का मिलन बस एक भ्रम!
यथार्थ है जीवन, यथार्थ है यहां प्रेम मगर
अधिकल्पित हैं तो बस तुम, मै और ' हम ' ! अधिक्लपित - imaginary
यथार्थ - true

#तुम_और_मैं #मिलन #तुम_सम_मै #YQdidi #yqbaba
#bestyqhindiquotes     #कालजयी_श्रुति

amar gupta

For bettr view मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' ! तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन, तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष, मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को #प्रेम #yqbaba #yqdidi #हिंदी_कविता #तुम_और_मैं #bestyqhindiquotes #कालजयी_श्रुति #तुम_सम_मै

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मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर
 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' !

तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन,
तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष,
मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को 
यहां वहां दिन-रात सूर्य चंद्र के चक्र सा
समक्ष होकर भी है प्रत्यक्ष हम 
और यह खोज चलता रहेगा अनंत तक 
जिसमें 'तुम और मैं' की दौड़ यूहीं रहेगी!

' तुम ' वह सूर्य है जिसकी परछाई 
सागर को धुंधला देती है अक्सर 
मिलन का एक स्वांग रचने को-
वह स्वांग ' मै ' और यह मिलन क्षितिज 
कल्पनाओं की नींव तो होती है मगर 
क्या कोई अंत होता है? - अपूर्ण है यह।
मुझे इस दौड़ से मुक्त कर दो 
और बांध लो अपने अनंत यथार्थ नभ से 
मुझ कण नगण्य अधिकलपित शून्य को 
सदैव के लिए - एक भ्रमण हो तय,
'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै'!  For bettr view

मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर
 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' !

तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन,
तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष,
मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को

Shruti Gupta

आकाश और धूल कण का मिलन अनन्त है,
आकाश और सागर का मिलन बस एक भ्रम!
यथार्थ है जीवन, यथार्थ है यहां प्रेम मगर
अधिकल्पित हैं तो बस तुम, मै और ' हम ' ! अधिक्लपित - imaginary
यथार्थ - true

#तुम_और_मैं #मिलन #तुम_सम_मै #YQdidi #yqbaba
#bestyqhindiquotes     #कालजयी_श्रुति

Shruti Gupta

For bettr view मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' ! तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन, तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष, मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को #प्रेम #yqbaba #yqdidi #हिंदी_कविता #तुम_और_मैं #bestyqhindiquotes #कालजयी_श्रुति #तुम_सम_मै

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मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर
 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' !

तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन,
तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष,
मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को 
यहां वहां दिन-रात सूर्य चंद्र के चक्र सा
समक्ष होकर भी है प्रत्यक्ष हम 
और यह खोज चलता रहेगा अनंत तक 
जिसमें 'तुम और मैं' की दौड़ यूहीं रहेगी!

' तुम ' वह सूर्य है जिसकी परछाई 
सागर को धुंधला देती है अक्सर 
मिलन का एक स्वांग रचने को-
वह स्वांग ' मै ' और यह मिलन क्षितिज 
कल्पनाओं की नींव तो होती है मगर 
क्या कोई अंत होता है? - अपूर्ण है यह।
मुझे इस दौड़ से मुक्त कर दो 
और बांध लो अपने अनंत यथार्थ नभ से 
मुझ कण नगण्य अधिकलपित शून्य को 
सदैव के लिए - एक भ्रमण हो तय,
'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै'!  For bettr view

मुझे मात्र 'तुम' नहीं चाहिए मगर
 'तुम सम मै' या ही 'तुम संग मै' !

तुम्हारी कल्पनाओं में व्यर्थ किए दिन,
तुम्हारी प्रतीक्षा में बीत गए कई वर्ष,
मगर हम ढूंढते रह गए एक दूसरे को


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