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Deepak usha mukund
जब भी कोई आहट होती हैं मेरे दरख्तों की साखों पर एक चिड़िया याद आती है जो कभी मेरे घर की थी जब भी कोई हरक़त होती हैं मेरी इन किवाड़ों पर एक गुड़िया बाबा बुलाती हैं जो कभी मेरे घर की थी।। था पाला नाज़ों से उसको बचाया हर,कुरीति बुराई से पर उसको ना बचा पाया मैंने इस जमाने की प्रीत पराई से बचपन मे बताया जो काम गलत बीती किशोर चतुराई में पर उसको न मैं बता सका घाटे है बड़ी भलाई में थी बातें उसकी बेबाक़ सभी लड़ जाती गैरों के भी हक़ के लिए जो सीखे उसने संस्कार सभी जहाँ गयी उधर भी छाप दिए हुई गुड़िया बड़ी समय ससुराल हुआ हुई शादी दांम्पत्य खुशहाल हुआ उसे गये वहाँ अभी साल हुआ कान फूंका किसी ने बवाल हुआ ससुराल वालों की मांगे अधूरी थी कैसे भी करके मैंने पूरी की लालच उनकी और बढ़ने लगी थी दहेज़ की आग में गुड़िया जलने लगी थी वो आग दहेज़ की अब बढ़ चुकी थी मेरी गुड़िया उसकी सूली चढ़ चुकी थी जो कहते थे देवी, गौरा उसको जला दिये थे दहेज़ में जो कभी फूलों की टोकरी में थी अब सो गई थी कांटो की सेज में याद जो आती हैं उसकी अब किवाड़ों की ओर मैं तकता हुँ कहदे आके बाबा मुझकों उसकी राह मैं देखता हूं अब जब भी कोई आहट होती हैं मेरे दरख्तों की साखों पर एक चिड़िया याद आती है जो कभी मेरे घर की थी जब भी कोई हरक़त होती हैं मेरी इन किवाड़ों पर एक गुड़िया बाबा बुलाती हैं जो कभी मेरे घर की थी।। #NojotoQuote
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