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Hrishabh Trivedi
सफ़र मायानगरी का(भाग4) 😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 नोट:- जिन्होंने इस सीरीज के पहले तीन पार्ट नहीं पढ़े हैं, वो पहले उन्हें पढ़े वर्ना कहानी समझ में नहीं आएगी। इस पर क्लिक करें👉👉 #सफर_मायानगरी_का Based on a true story उस रात के किस्से के बाद आयुषी ने तो हमें डायरेक्ट करने से मना कर दिया था, और अब हमारे पास दूसरा कोई डायरेक्टर भी नहीं था। अभी तक हमने कुछ शूट भी नहीं किया था क्यूंकि अभी तो सिर्फ हम उस पूरी स्क्रिप्ट को रीक्रिएट कैसे करें इसी में अपना दिमाग लगा रहे थे। हर ग्रुप्स को दिन में 3 घंटों के लिए ही कैमरा और बाकी एक्यूपमेंट्स इस्तेमाल करन
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सफ़र मायानगरी का(भाग3) 😊अनुशीर्षक में पढ़े 😊 नोट:- जिन्होंने इस सीरीज के पहले दो पार्ट नहीं पढ़े हैं, वो पहले उन्हें पढ़े वर्ना कहानी समझ में नहीं आएगी। इस पर क्लिक करें👉👉 #सफर_मायानगरी_का Based on a true story अब तक धीरे धीरे हम सबको लगभग 2 महीने पूरी हो चुके थे, और हम में से कोई भी अभी अपने घर नहीं गया था। 3 घंटे की क्लासेज और लगभग उतनी ही कैमरा रिहर्सल + प्रैक्टिस + डांस हम लोगों की दिनचर्या का हिस्सा थी। हालांकि, संडे को सिर्फ 1 घंटा रिहर्स करना होता था, वो भी अगर आप चाहें तो। दिन में इतनी ट्रेनिंग सुनने में तो आसान लगती है लेकिन वो 7
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सफ़र मायानगरी का (पार्ट-2) आप लोगों को दूसरे भाग के लिए इतनी प्रतीक्षा करनी पड़ी उसके लिए क्षमा चाहूंगा 🙏🙏 जिन्होंने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा वो पहले pinned quote पढ़े, तभी ये कहानी समझ में आएगी। 😊😊अनुशीर्षक में पढ़े😊😊 जैसा कि आप लोगों ने पहले भाग में पढ़ा था कि मेरा selection बालाजी टेलीफिल्म्स में हो गया था और अब मुझे लखनऊ से मुंबई के लिए रवाना होना था, जहां मेरी एक साल की ट्रेनिंग होनी थी। तो आज वो दिन आ चुका था, सभी का आशीर्वाद लेकर और जल्दी आने का वादा करके, मैं पापा और मामा के साथ लखनऊ एयरपोर्ट के लिए निकला जहां मेरी 12:20 की फ्लाइट थी। अब एयरपोर्ट पर और फ्लाइट में क्या हुआ ये बताकर कहानी को और लंबा क्यों करें, सीधे चलते है तब जब मेरी फ्लाइट मुंबई में लैंड हुई। मैं फिर कहूंगा कि मुंबई की हवा में एक अलग सी महक तो है, सपनों की महक। फ्लाइट नॉनस्टॉप थी और उसने मुझे लगभग 3 बजे तक मुंबई पहुंचा दिया। मैंने एयरपोर्ट पर उतरते ही अपनी कैब बुक कर दी, पर मुझे क्या पता था कि एयरपोर्ट पर अपने लगेज के लिए मुझे 15 मिनट एक्स्ट्रा इंतजार करना पड़ेगा। मैं लगेज के इंतजार में खड़ा था पर मेरा एक बैग आने का नाम ही नहीं ले रहा था।और इसी बीच एक ऐसा बैग भी था जो पिछले 10 मिनट से लगातार घूम रहा था मगर उसका मालिक उसे लेने को राज़ी ही नहीं था। ये मुझे मेले में गुम उस बच्चे की भांति लग रहा था जिसके मां - बाप उसे भगवान भरोसे छोड़कर मज़े से कहीं बताशे और आइसक्रीम का आनंद ले रहे हैं। खैर मेरा बैग आ गया और इसी बीच टैक्सी वाले का कॉल भी आ गया, मैं जल्दी से पूछता - पाछता टैक्सी की ओर बढ़ा। मुझे एयरपोर्ट से ICE Balaji तक जाना था, जो कि अंधेरी में था। टैक्सी में बैठते ही मैंने पिताजी को फोन कर अपने सुरक्षित पहुंचने की सूचना दे दी और लगभग 15 मिनट में हम पहुंच गए हमारी मंजिल पर। रास्ते भर ना जाने कितने ख्याल, कितने चित्र दिमाग में बनाते हुए आया कि जब वहां पहुंचूंगा तो ऐसा होगा, वैसा होगा, मगर बिल्डिंग के सामने पहुंचते ही मेरा मन ऐसा किया जैसे कि इसी टैक्सी में बैठकर वापस एयरपोर्ट चला जाऊं। मेरा हाल कुछ ऐसा था, " मिलो ना तुम तो हम घबराए, मिलो तो आंख चुराए, हमें क्या हो गया है।" खैर मैं अपने दोनो बैग के साथ बिल्डिंग के अंदर चला जहां रास्ते में मुझे एक लड़का दिखा, जिसके सामान को देखकर आसानी से आंकलन लगाया जा सकता था कि ये भी हमारे ही साथी हैं। थोड़ी दूर पर ही हम दोनों को उस शख्स ने रोका जिसके अगले एक साल के लिए मेरे साथ काफी अच्छे संबंध बनने वाले थे, जोंटी भैया, दरअसल इनका असल नाम शशांक सिंह था मगर अपनी जुल्फों के कारण अगले एक साल तक ये हमारे बीच जोंटी भैया के नाम से प्रसिद्ध रहे। इनकी कद- काठी को देखकर आप में कोई भी पहली बार में घबरा सकता है, इनका काम अपने साथियों के साथ सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने का था। इन्होंने हमसे हमारे selection letter मांगे और हमें 3rd floor पर जाकर रजिस्ट्रेशन कराने को कहा। इस सब में लगभग 6 बज गया था और अब हम लोगों को अपने हॉस्टल पर जाना था, जो कि लगभग 300 मी. की दूरी पर था। हॉस्टल अच्छा था मगर ये बालाजी वालों का नहीं था उन्होंने इसे कॉन्ट्रैक्ट पर लिया था। हॉस्टल के 1st और 2nd floor पर गर्ल्स के रूम थे और 3rd, 4th और 5th floor पर ब्वॉयज के।ब्वॉयज को 1st और 2nd floor पर बिना permission आना allow नहीं था। मगर इस नियम में भी एक समस्या थी, जिसके बारे में मैं आपको आगे बताऊंगा। मैं रूम में पहुंचा, जहां मेरा रूम पार्टनर पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रहा था, उसका नाम था राम रावत और वो राजस्थान से था। थोड़ी देर की बातचीत के बाद हम 3-4 लोग नीचे आए, जहां हमें अपराजिता और शिवान्या मिलीं। मगर अगर मुझे पता होता कि इनका ग्रुप आगे चलकर इतने तूफान खड़े कर सकता है तो शायद मैं इनसे कभी मिलता ही नहीं। कल सुबह 9 बजे हमारी पहली क्लास थी और एकता मैम यानी एकता कपूर खुद वहां आने वाली थी तो उत्साह और डर के इस मिले - जुले समागम ने नींद को उस रात मेरी आंखों से दूर ही रखा। सुबह जब हम क्लास में पहुंचे तो हमारी आंखें खुली की खुली रह गई, क्यूंकि ऐसे उपकरण हमारे सामने थे जो कि हम सबने सिर्फ टीवी या फिल्मों में ही देखे थे। क्लास में जाने से पहले ही हमारे मोबाइल बाहर जमा हो जाते थे, शायद उन्हें डर था कि हम उनकी ट्रेनिंग को पब्लिक ना कर दें। इस साल 412 बच्चे सेलेक्ट हुए थे जिसमें से लगभग 80 बच्चे एक्टिंग के थे, बाकी राइटिंग, डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी और अन्य चीजों के। लगभग 2 घंटे की हमारी क्लास के बाद चार लोग आए - एकता कपूर मैम, समीर सोनी सर, शरद मल्होत्रा सर और दिव्यांका त्रिपाठी मैम। हम यूपी वाले वैसे ही अभिनेताओं पर अपनी जां निसारते हैं, और जब इतने बड़े सितारे खुद हमसे मिलने आए तो होश पर काबू रखने की हम कल्पना मात्र ही कर सकते हैं। खैर लगभग 45 मिनट की बातचीत, टिप्स और हौसलाअफजाई के बाद सभी लोग चले गए। कुछ ही दिनों में हमारी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो गई थी कि हमें घरवालों को याद करने का समय तक नहीं मिलता था। और मैं अपने घरवालों से कभी - कभी रात के खाने के वक़्त ही बात कर पाता था। धीरे - धीरे लगभग एक महीना बीत चुका था। मुझे सीखने में मज़ा आ रहा था, मगर डांस मेरे लिए काफी तकलीफदेह था। अब आते है उस समस्या जिसका जिक्र मैंने कुछ देर पहले किया था। दरअसल ऐसा था कि लड़कों को 1st और 2nd floor पर बिना permission आना allow नहीं था और वहां दो गार्ड्स भी रहते थे। मगर ब्वॉयज के floor पर ऐसा कोई नियम लिखित में नहीं था और हमारे floor पर cctv तो थे पर कोई गार्ड नहीं था, शायद उन्हें लड़कियों पर ज्यादा भरोसा हो, मगर इस वजह वजह से एक बार मेरी जान हलक तक पहुंच गई थी। दरअसल राम और 2-3 लड़कों को छोड़कर मेरी floor पर किसी से खास दोस्ती नहीं थी क्योंकि या तो वो हद से ज्यादा अमीर थे या फिर हद से ज्यादा अजीब। हमारी दो खास दोस्त थीं, अपराजिता और शिवन्या। चूंकि ऐसा कोई नियम नहीं था कि गर्ल्स, ब्वॉयज के floor पर नहीं जा सकती इसलिए अक्सर हम चार और दिव्यांश, हमारे रूम में कोई गेम खेलते थे या गप्पे मरते थे। उस दिन भी ऐसा ही था मगर थोड़ी देर में हमारे गेट को किसी ने ज़ोर से धक्का दिया और चूंकि वह लॉक नहीं था इसलिए वह पीछे की दीवार पर जोर से टकराया। हम सब चौंक गए, देखा तो सामने वार्डन खड़ा था, वार्डन ने हमें देखते ही अपनी आंखों को छोटा किया, हमें अजीब तरह से घूरा और अगले ही छड़ बोला, " क्या हो रहा है यहां?" उसके इस वाक्य से हम सबके दिमाग में ऐसे - ऐसे ख्याल आने लगे जो एक मिनट पहले तक, हममें से किसी के भी दिमाग में दूर - दूर तक नहीं थे। इतनी देर में पीछे से जोंटी भैया आ गए और बोले, " मिले बच्चे?" वार्डन अपराजिता और शिवन्या से बोला, " अपने पापा का नंबर दोगी या मैं रजिस्टर से लेकर आऊं?" मैं, राम और दिव्यांश, हम तीनों की सांसों पर तो जैसे किसी ने पैर सा रख दिया था, क्यूंकि मुझे पता था कि अगर इसने मेरे पापा को फोन किया तो बिन बात का बतंगड़ बनने से कोई नहीं रोक सकता। मैं ये सोच ही रहा था कि इतने में अपराजिता चिल्ला पड़ी," ये लीजिए नंबर, बात कीजिए" ऐसा ही कुछ जवाब शिवन्या का भी था। हम तीनों का इस बातचीत में योगदान शून्य से भी कम था, मैं तो बस जोंटी भैया को देख रहा था जो हमारी हालत देखकर मंद - मंद मुस्कुरा रहे थे। लेकिन जैसे ही अपराजिता ने
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🏃🏃सफ़र मायानगरी का 🏃🏃 इसमें मेरे जीवन की एक बेहद अजीब और महत्वपूर्ण घटना लिखी है। और साथ ही ये मेरी पहली शॉर्ट स्टोरी भी है। पूरा पढ़े, तभी मज़ा आएगा। 😊😊अनुशीर्षक में पढ़े😊😊 घटना डेढ़ साल पुरानी है, लेकिन एक - एक पल दिमाग में छपा हुआ है। शुरुआत करते हैं अपने बारे में जरा बताते हुए, उस वक़्त मेरी उम्र लगभग 20 साल थी, ग्रेजुएशन कंप्लीट जो चुका था और साथ ही मैं हाल ही में यूपी पुलिस कांस्टेबल में सेलेक्ट भी हो गया था, लेकिन ज्वॉइन करने से जैसे - तैसे खुद को रोक लिया, एक दो एग्जाम और दिए मगर उनमें 3-4 नंबर की कमी रह गई। अपनी मर्जी से मैंने जिंदगी में सिर्फ o-level किया था और स्टेनोग्राफी सीख रहा था, बाकी सब दुनिया के कहे पर। 17.08.18, मुझे पता चला कि बालाजी टेलीफिल्म्स
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