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Ek villain
यूं तो हर साल सरकार दफ्तरों में हिंदी दिवस और पखवाड़ा मनाया जाता है लेकिन लगता है कि नौकरशाह हिंदी के लिए गूगल पर ही निर्भर रहते हैं बीते दिनों में कार्यक्रम के दौरान 1 एक पर्यावरण भूपेंद्र यादव ने अफसरों के जिस प्रकार टोका उससे तो यही जाहिर होता है दरअसल मंत्री जी को जिस शब्द से आप पढ़ती थी वही तेरा नदियों के संरक्षण में मैंने किया सचेता मंत्री ने सीधे पूछ लिया कि हस्तक्षेप सब जानते हैं से जुड़ पाया आवश्यक रूप से वह क्या सब सो जाया कर मंदिर में उन्हें यह बताएं कि पहन शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए वह मौजूद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री शिवपाल ने भी माना कि अवसरों की भाषा सहज लग रही है तो ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि अधिकारी संबंधित डेटपार्ट के अंतर को कितना सहज बना आते हैं ©Ek villain #अफसरों की सहज करने वाली हिंदी #Holi
Praveen Prajapati
आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था बिन हुक्म बलवान तूने ये कदम कैसे उठा लिया किससे पूछ उस रात तू दुश्मन की सीमा में जा लिया बलवान बोला सर जी! ये बताओ कि वो किस से पूछ के आये थे सोये फौजियों के सिर काटने का फरमान कोन से बाप से लाये थे बलवान का जवाब में सवाल दागना अफसरों को पसंद नही आया और बीच वाले अफसर ने लिखने के लिए जल्दी से पेन उठाया एक बोला बलवान हमें ऊपर जवाब देना है और तेरे काटे हुए सिर का पूरा हिसाब देना है तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया बोला साहब जी! अगर कोई आपकी माँ की इज्जत लूटता हो आपकी बहन बेटी या पत्नी को सरेआम मारता कूटता हो तो आप पहले अपने बाप का हुकमनामा लाओगे ? या फिर अपने घर की लुटती इज्जत खुद बचाओगे? अफसर नीचे झाँकने लगा एक ही जगह पर ताकने लगा बलवान बोला साहब जी गाँव का ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद पे खड़ा खड़ा पहचानता हूँ सीधा सा आदमी हूँ साहब ! मै कोई आंधी नहीं हूँ थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ मै वो गांधी नहीं हूँ अगर सरहद पे खड़े होकर गोली न चलाने की मुनादी है तो फिर साहब जी ! माफ़ करना ये काहे की आजादी है सुनों साहब जी ! सरहद पे जब जब भी छिड़ी लडाई है भारत माँ दुश्मन से नही आप जैसों से हारती आई है वोटों की राजनीति साहब जी लोकतंत्र का मैल है और भारतीय सेना इस राजनीति की रखैल है ये क्या हुकम देंगे हमें जो खुद ही भिखारी हैं किन्नर है सारे के सारे न कोई नर है न नारी है ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है दुश्मन का पेशाब निकालने को तो हमारी आँख ही काफी है और साहब जी एक बात बताओ वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब वाला यार जसवंत खोया था आप गवाह हो साहब जी उस वक्त मै बिल्कुल भी नहीं रोया था खुद उसके शरीर को उसके गाँव जाकर मै उतार कर आया था उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी मै पुचकार कर आया था पर उस दिन रोया मै जब उसकी घरवाली होंसला छोड़ती दिखी और लघु सचिवालय में वो चपरासी के हाथ पांव जोड़ती दिखी आग लग गयी साहब जी दिल किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ चपरासी और उस चरित्रहीन अफसर को मै गोली से उड़ा दूँ
आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"
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