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Nikhil Ranjan
लगता है महादेव भी क्रोधित हैं हमसे , नहीं तो , इतने शांत बनारस के घाट कभी नहीं हुए ! हमारे किए पापों को देख कर अब ख़ुद हमें बनाने वाला भी शर्मिंदा है ! #बनारस #महादेव #बनारस_का_घाट #क्रोधित #खुदकिकलमसे #orginal
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*🌹सप्रभात🌹* *जो सम्मान से कभी गर्वित नहीं होते,* *अपमान से कभी क्रोधित नहीं होते* *और क्रोधित होकर भी,* *जो कभी कठोर नहीं बोलते....* *वास्तव में वे ही श्रेष्ठ होते हैं!!!!!!! ”* 🙏🏻🙏🏻परणाम 🙏🏻🙏🏻 #good mng
Digant K. Dusara
नवरात्रि माँ नव दुर्गा की रात्रि है उस रात्रि स्त्रियां गरबे घूमते हैं, उनकी सेवा अर्चना करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होते हैं, स्त्रियों का अपमान या दुर्व्यवहार हो तो शक्ति क्रोधित होते हैं, और ऐसे दुर्जनों का नाश करने पर शक्ति मजबूर हो रहे हैं, इसीलिये नवदुर्गा को क्रोधित नहीं करने का परामर्श देते हैं, यह भारत देश है यहाँ नारियों का सम्मान करते हैं, नारियों को सही नज़र से देखने पर आशिर्वाद देते हैं, नारियां हम सब देवी रूप में ही देखने का परामर्श देते हैं, नवरात्रि माँ नव दुर्गा की रात्रि है उस रात्रि स्त्रियां गरबे घूमते हैं, उनकी सेवा अर्चना करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होते हैं, सुख-समृद्धि प्राप्त होते हैं, सुख-समृद्धि प्राप्त होते हैं....... प्रेरक-दिगंत के दुसारा की ओर से नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं माँ शक्ति सभी को दिव्य प्रकाश से गलत कर्मों से दूर रखें 🌹🙏👑 नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
आयुष पंचोली
"दशावतार" जब जब धर्म की होंने लगती हैं हानि, धरती पर बढने लगते हैं, अधर्मी मनुष्य और अभिमानी । रोती हैं जब यह धरती माता खून के आँसू, गोओ का रूदन जब चित्कार मचाता हैं। तब हरने को पीड़ा इनकी, काल उतर कर युग परिवर्तन करने आता हैं। तब तब अवतरित होकर निराकार का परम अंश, धरकर कितने ही विविध रूप अपनी सर्वोच्च सत्ता की महानता का एहसास सबको कराता हैं।
Ashok Kumar
#OpenPoetry कोई भी क्रोधित हो सकता है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस की बात नहीं है और यह आसान भी नहीं है.
आरती राय
प्रकृति प्रकोप ************* अतृप्त धरा अति अकुलाई वर्षा रूठ नभ में खिसियाई फूलों की डाली मुरझाई पौधों ने भी शोक मनाई । क्यों रूठी हो धरा हमारी विकल भये सारे नर-नारी बादल क्रोधित नभ घनघोर बिजली चमक रही चहुँओर । आ जाओ अब वर्षारानी बुंद बुंद को तरसे प्राणी। बोली बरखा क्रोधित वाणी बंद करो अपनी मनमानी प्रकृति से मत करो खिलवाड़ वरना झेलो मेरा प्रहार ओ मानव जागो इकबार करो प्रकृति से अतिसय प्यार। लौट कर आऊँगी अगली बार तब तक झेलो सूखे की मार मत करो अब व्यर्थ प्रलाप करो धरा को नमस्कार। ******* आरती: प्रकृति प्रकोप
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