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Godambari Negi
Life Like @पुंडरीक #पढ़ना मना है ☺ 'उफ! ये दिवस' (व्यंग्य) 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस । बधाइयों की बाढ़ सी उमड़ रही थी ।अखबार में जानी मानी महिलाओं की तस्वीरें छपी थीं।कुछ को पुरुस्कृत भी किया गया। सोशल मीडिया पर तो वो लोग भी महिला दिवस की बधाइयां देते हुए दिख रहे थे ,जो महिलाओं को पैर की जूती ,बच्चे पैदा करने की वस्तु समझते हैं या यह कहते नहीं थकते कि औरत की अक्ल घुटने में रहती है। मन में रह-रहकर कई विचार उठ रहे थे ।बल्कि ये कहूँ कि मथ रहे थे तो सही होगा । दही मथनी जैसे कभी इधर कभी-उधर। एक विचार उछल रहा था, दुनिया में इतने दिवस मनाने की परंपरा क्यों और कैसे आई?दूसरा मन कह रहा था, "ठीक ही तो है इसमें क्या बुराई है, कम से कम एक दिन ही सही कोई अच्छा काम तो होता है।" तभी तीसरा विचार आकर टांग अड़ाने लगता ,- "क्या खाक अच्छा ,इतने दिवस मानाए जाना कहाँ तक ठीक है ,साल में अगर 365 दिन मनाने लगे तो एक बात के लिए सिर्फ एक ही दिन बचेगा ।यानी महिला को 8 मार्च को ताली मिलेगी बाकी दिन गाली । 364 दिन इंतजार में बिताने होंगे।ये भी हो सकता है वो ताली सुनने को जिंदा रहेगी भी या नहीं। मदर्स डे या फादर्स डे को हैप्पी फादर डे या हैप्पी मदर्स डे कह दो , वो भी मैसेज में या ज्यादा से ज्यादा फोन पर हो गया उत्तर दायित्व खत्म । माँ-बाप गाँव में बेटे शहर में।बाप खाट पर माँ व्हील चेयरपर। बच्चे , "माँ बाबूजी अपना ख्याल रखना।" ओके बाय ...हो गई जिम्मेदारी खत्म।" चौथा विचार कहता,- "न होने से तो कुछ होना ही अच्छा है न ,सोचो माता-पिता थोड़े तो खुश होंगें हमें भूले नहीं बच्चे अभी...। तुम ये समझ लो यहां जो जो नहीं होता उसी के लिए ये 1 दिवस निर्धारित किया गया है।" एक विचार और कूद पड़ा, महिला दिवस पर अमीर महिलाएं ही क्यों बुलाई जाती हैं, गरीब क्यों नहीं? परिश्रम तो वो भी बहुत करती हैं।क्या-क्या कष्ट नहीं सहती हैं वो। कोई-कोई तो पूरा परिवार का बोझ अकेले उठाती हैं। अन्य विचार-' "क्योंकि उन्होंने दुनिया में नाम कमा लिया है ,प्रसिद्ध हो गई हैं तो उनके आगे-पीछे कलछी-चमचे भी चक्कर लगाते ही हैं न फेमस होने के लिए।" कोई दूसरा,-"अच्छा तो सबको जानना जरूरी है? ये तो स्वार्थ है, सिर्फ़ इनाम पाने और फेमस होने के लिए करते हैं...! पर पड़ोस की काकी तो वर्षों से वृद्धाश्रम जाकर निशुल्क सेवा करती हैं दो चार घंटे। ....उन्हें तो कोई सम्मान नहीं मिला और ना अखबार में नाम आया?" दूसरा विचार, ही ही!बताती नहीं होंगी न किसी को ।फोटू-फाटू खिंचवा लेती दे दाकर।बड़े लोगों तक पहुंच भी तो जरूरी है। जाने दो तुम्हें क्या? अखबार वालों को वो बुलाती ही नहीं होगी न । ना बताती होगी कि मैंने अलां-फलां काम किए... हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और श्रीमती मंदिरा देवी को महिला दिवस पर पुरस्कार मिला है ।गरीब लाचार के लिए बहुत कुछ किया है उसने। सास-ससुर वृद्धाश्रम में रहते हैं। सुना है बहू से बनती नहीं दहेज़ में हीरे का सैट जो नहीं लाई उसके लिए। कान की सोने की बाली में टरका दिया। ऐसा बोलती है... लोगों से सुना है। एक विचार तैरा,- "ये समझ लो जो ढोल बजाए वही नचाए... बाकी चूल्हे पर दाल पकाए हि हि।" सोचते-सोचते कब आँख लग गई पता नहीं चला शुभकामनाएं देते-देते। आँख खुली तो पूर्व में सूरज झाँक रहा था। ©Godambari Negi #उफयेदिवस
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