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payal kuwar
साथ की नहीं ऐहसास की बात है मुलाक़ात की नहीं इंतज़ार की बात है मिलते तो बहुत है, पर कभी-कभी सपनों में अपने तो कभी अपनो में सिर्फ सपने रह जाते हैं ©payal kuwar # फिर कुछ ऐहसास हुआ
मलंग
Beti ko devi ka roop kahne wale aaj chup hain. Navratri me no din vrat rakhne wale aaj chup hain. Gaay ko ma ka maan dene wale aaj chup hain. Bejan Jami ko matribhoomi kahne wale aaj chup hain. Kahan gyi ma chamunda jisne utha khappar dusto ka sanhaar kiya. Kahan gye sudarshan dhaari jisne bhari Sabha me dropti ka maan dhara. Kanth me garal samete huye shiv aaj tandav kyu nahi karte. Pag Pag me rakshash bethe hain jagdees tum Ram roop kyu nhi dharte. Nanhi fool si pariyo se khilne ka hak cheenne wale. Insaan hokar bhi janwaro sa gost nochne wale.. Tere kritya se sharmsar aaj dharti hui hai. Tune hewaniyat ki sari hade aaj Chui hain. Ab koi bhi ma beti shabd se karah jayegi.. Prasav ka ab dard hai chota vo ye dard sah na payegi. Sab agar bete chahenge... To bete kaha se aayenge... Bin beti ban dulha hum baraat kaha le jayenge. Bachho k liye khud ko luta dene wali ma kaha se layenge. Nar ho to naari ka hardum samman karo. Ban beta kabhi bhi beti ka yun na apmaan karo.. jannat ma k charno pe yuhi na bhagwan ne banayi hai... Ek ma me hi ye sari srasti samayi hai.
Jp arya
यदि आप पति हो और कभी एकदम सुबह 4.00 बजे जाग जाओ, और चाय पीने की इच्छा हो जाए, जो कि......स्वाभाविक है, तो आप सोचेंगे कि.....चाय खुद ही बनाऊँ या प्रिय अर्धांगिनी को जगाने का दुस्साहस करूँ.....? दोनों ही स्थितियों में आपको निम्नलिखित भयंकर परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है... और आप कुछ भी करो, आपको..."चार बातें"...तो सुननी ही है, जो कि वास्तव में 40-50 कम नहीं होती हैं...!! ... ... ● पहली परिस्थिति:--- आपने खुद ही चाय बनाई...!! आपने यदि खुद चाय बना ली, तो सुबह-सुबह ब्रह्म- मुहूर्त में आठ बजे जब भार्या जागेगी तब, आपको सुनना ही है:---- क्या ज़रूरत थी खुद बनाने की, मुझे जगा देते, पूरी पतीली "जला कर", रख दी, और वह "दूध की पतीली" थी, "चाय वाली" नीचे रखी है "दाल भरकर"....!! ... ... विश्लेषण:---- चाय खुद बनाने से पत्नी दुखी हुई / शर्मिंदा हुई / अपने अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ से भयाक्रांत हुई / या कुछ और, आप कभी भी समझ नहीं पाएंगे, दूसरा ये कि......"दूध की पतीली" में "चाय" बनाना तो गुनाह है, लेकिन "चाय की पतीली" में "दाल" भरकर रखी जा सकती है....??😉 ... ... ● दूसरी परिस्थिति:--- आपने पत्नि को चाय बनाने के लिए जगा दिया...!! यदि आपने गलती से भी पत्नी को जगा दिया तो, आप सुनने के लिए तैयार रहिये:---- "मेरी तो किस्मत ही ख़राब है, एक काम नहीं आता इस आदमी को, पिताजी ने जाने क्या देखा था इसमें, आधी रात को चाय चाहिए इन्हें....अभी अभी तो, पीठ सीधी की थी और इनकी फरमाइशें हैं कि ख़त्म ही नहीं हो रही हैं, न दिन देखते हैं, न रात....??😢🤦♀ चाय बनकर, पी कर ख़त्म भी हो जाएगी पर 'श्लोक-सरिता' का प्रवाह अनवरत, अविरल चलता ही रहेगा...!! ... ... ● तीसरी परिस्थिति:--- एक अन्य विचित्र परिस्थिति....!! यदि आप चाय खुद बना रहे हैं.......और शक्कर के डिब्बे में शक्कर आधा चम्मच बची है, तो आपके दिमाग में विचार आएगा ही कि बड़े डिब्बे से निकालकर इसमें टॉप-अप कर देता हूँ, यदि आपने ऐसा किया तो पता है क्या सुनोगे....?? शायद आप सोच रहे होंगे कि, आपने बहुत शाबाशी वाला काम किया, नहीं बल्कि आपको....शर्तिया ये सुनना पड़ेगा -- "किसने कहा था शक्कर निकालने को ? मुझे वह डिब्बा, आज मँजवाना था"😏 ... ... निष्कर्ष:---- संसार में पत्नी की नजरों में पति नाम का जो जीव होता है, उसमे अक्ल का बिल्कुल ही अभाव होता है...!! "सर्व-गुण-संपन्न"......तो उसके "पापा" और भाई होते हैं, और या फिर "वो....वाले-जीजाजी"....??? इसलिए सभी पतिओं को, मेरी सलाह है कि, कभी सुबह-सुबह नींद खुल जाए, तो वापस मुँह ढक कर सो जाएं, उसी में भलाई है...!! #MeraShehar
Lp sahab
माँ जैसी सरल है हिंदी, वो बचपन का आ आ... करना वो पहला शब्द मां मां... बोलना कैसे भूल जाऊं इस हिन्दी मां को जिनसे मैं बहुत प्यार करता हूं वो नाम दिया है इसने रोम रोम में बसा है नाम मेरी मां का कैसे कर्ज भुल जाऊ अब हिन्दी मां का कैसे कर्ज भुल जाऊ अब हिन्दी मां का वो बचपन का आ आ... करना वो पहला शब्द मां मां... बोलना कैसे भूल जाऊं इस हिन्दी मां को कैसे भूल जाऊं इस हिन्दी मां को लेखक ✍️Lucky padampura 9664315704 Asif Rehan Malik दीपक शर्मा (दीप राही) Abhijeet Dey Nehu❤
Vishal Panwar
गुमसुम है कितने जज़्बात मेरे, उस शख्स के खातिर पहने हैं कई दफा परिवर्तन के लिबास,उस शख्स के खातिर कहता है फिर भी हम साथ न हो सकेंगे अब क्या दफ़न ही हो जाऊं,उस शख्स के खातिर ।। #nojoto# quotes#
KAVI VINIT BADSIWAL
कौन कहता है कि बातों से हि प्यार होता है, किसी-किसी से आंखों ही आंखों में इजहार होता है।।1।। कुछ रिश्तो को नहीं चाहिए अलंकार, उन रिश्तों का आधार होता है केवल प्यार।।2। उस दिन मेरी आंखों में ललवाहट थी, शायद वो उसकी आंखों की चमकाहट थी।।3।। मैं आंखों ही आंखों में उसे अपना मान चुका था, उसको पाना है,मेरा दिल भी यह ठान चुका था।।4।। उस भरे हुए भवन में मेरी आंखे सिर्फ उसी को ढूंढ रही थी, शायद उस ओर भी यही मंजर था, वो भी हल्के हल्के अपनी आंखें मूंद रही थी।।5।। उसके प्रेम रूपी संगीत से मेरा हदय गूंज रहा था, मैं आंखों की गहराई में थी उसे ही ढूंढ रहा था।।6।। #अनदेखा प्रेम #भाग -3#आंखो की कसमकस
Keshav Suryavanshi
माझे मत-- माझे विचार मित्रांनो, माणस माणसाच मन तथा त्याच्यामनोभावना कदापी ओळखू शकत नाही. हे पूर्णत: सत्य नसून, काही अंशी सत्य आहे. मानवी मन हे अतीशय चंचल अस्थिर,संवेदन- शील असल्यामुळे ,क्षणात आपले मनोभाव बदलत असतात. सबब त्या मनोभावना ओळखण्यासाठी आपल्यात स्थिर निरपेक्ष मनोभाव असणे अगत्याचे आहे. आपल्याला ते मनोभाव ओळखण्यासाठी आपले मनोभाव निर्भेद,निर्मल,निरपेक्ष तथा प्रभावहीन असणे आवश्यक आहे. अॅड. सूर्यवंशी