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Sunil Kumar Maurya Bekhud
कोई शांति की तलाश में आता है कोई मन बहलाने को कोई आता है हमसफर के संग दिल की बाते उसे बताने को किसी को चाहिए हवा ताजी घुली हो जिसमें गुलों की खुशबू कोई आता है ठोकरें खाकर बैठ कर अपना गम भुलाने को ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #पार्क
Er.Mahesh
बड़ा सुहाना था कल का दिन जो वाटर पार्क में नहाने का अवसर मिला पानी में तैरना फिर उसमे देर तक ठहरना मन में अजब सा आनंद जगा ऊंची स्लाइडों से सर्र से सरकना, पानी में जा कर उसमे थिरकना दिल को गजब सा सुकून मिला दोस्तों के साथ वाटर पार्क में नहाने से दिल में बड़ा ही आनंद जगा ©Er.Mahesh #पार्क में नहाना #melting
Umesh Kushwaha
"प्यार आज भी उससे है" प्यार में होना और प्यार से उबरना दो अलग अलग बात है। प्यार में होना यानी अमूर्त हो जाना। फिर आप कहीं इतना खो जाते है, जैसे बारिश की पहली बूंदे मिट्टी पर पड़ती हो तो वो सोंधी सोंधी खुशबू आपके मन को पूरी तरह मोह लेती है या धीरे धीरे आप इसके वस में हो जाते हैं,आप मोहित हो जाते है। उस मिट्टी की आवो हवा में आप जीने लगते है,फिर वही रोज़ की आदत में शुमार हो जाता है।आप चाह कर भी उस गोलाई की परिध से बाहर नहीं आ सकते,फिर आपकी दिनचर्या इस कदर जकड़ जाती है कि जब तक आप उस सौंधी सौंधी खुशबू को मस्तिष्क में उतार न ले तब तक आप खुश नहीं रह सकते,फिर क्या ये धीरे धीरे आपकी आदत आपका स्वभाव बन जाती है। जब कोई चीज़ आपके स्वभाव में आ जाए तो उसे बदलना कठिन होता है लेकिन ये और भी भयावह हो जाता जब धीरे धीरे इसकी कद्र कम होने लगती है। फिर क्या झल्लाहट और अकेलापन इस कदर हावी हो जाता है कि आप हर समय खाली खाली महसूस करने लगते हैं। नीरस और बेमन होकर जीना जैसे अंश और हर का कायदा हो,फिर आप उस अंश के ही होकर रह जाते हैं यानी हर चीज के आदी जैसे वो रास्ते,बाजार घूमना - फिरना यहां - वहां आना - जाना।यहां तक कि वहां की हवा भी आप के जहन में बस जाती है, जो कि प्राणवायु है। फ़िर आप इससे उबर नहीं सकते अंत तक चाहे कितना भी धैर्य रख लीजिए क्यूंकि वो वायु प्रणय बनकर आपके दिलोदिमाग से लेकर पूरे शरीर में वास कर रही होती है। जब वो अंश आपसे अलग होता है, वो तो यही सोचता है कि वो पूरी तरह अलग हो गया है लेकिन ये सिर्फ उसके ही परिपेछ्या से दृष्टागत है। वो कहीं अलग किसी और के साथ खुश है लेकिन आप उस साथ को इतना जी चुके होते हैं की वो फिर आपको नहीं छोड़ता जो की हर समय आपके साथ होता है और नहीं भी, यही बात सबसे ज्यादा तकलीफ देय होती है। वो सारे मंजर फिर याद आते हैं, वो सड़के जहां हम साथ चले थे,वो कचौरी का ठेला फिर पानी पूरी की बात" भैया दही वाली ही देना" और वहीं पास वाली आइस्क्रीम की दुकान से हर बार तुम जिद करके सिर्फ एक ही आइसक्रीम लिया करते थे,और फिर धीरे धीरे पार्क पहुंच जाते थे।फिर क्या तुम बोलती और मैं सुनता था। इतना ही नहीं हर रोज़ तुम्हारे ऑफिस से घर तक छोड़ना, पर हां वो हाईवे वाला पुल जहन में बना ही रहता है, जब तुमने अचानक बाइक रोकने को कहा था और हम कुछ देर रुके थे । तब पहलीवार तुमने हमें "किस" किया था,जो आज भी वो पुल वाला किस याद है जिसे भूलाया नही जा सकता। हर वो चीज याद है जो हम साथ में जिये हैं,वो गली - वो मोहल्ले! एक एक पल जो हम बातें करते थे और हां वो रेलवे का ओवरब्रिज कैसे भूल सकता हूं मै वहीं पर तो झगड़ा हुआ था हमारा, तुम उस दिन गुस्से में थी। फिर हमारी कई दिनों तक बात नहीं हुई और न ही मिलना जुलना। उस दिन बहुत कोशिश की थी तुमको समझाने की लेकिन तुमने अकेले ही फैसला कर लिया था। तुम्हारे लिए तो आसान था पर शायद आज तक मैं उन चीजों से उबर नहीं पाया हूं,खोजता रहता हूं मै तुम्हे ही उन्ही रास्तों में जहां जहां हम साथ चले थे। पर अब वो गलियां हमें चुभती हैं हवाओं में भी एक अजीब सी चुभन है जो गले ही नही उतरती। लेकिन तब भी उन सारी जगहों को एक बार फिर देख लेना चाहता हूं,मानो मै तुम्हे महसूस के रहा होता हूं जब उन सारी जगहों से गुजर रहा होता हूं चाहे वो तुम्हारे घर की पास वाली गली हो या रेलवे फाटक के खुलने का वो दो मिनट का इंतजार पर आज भी लगता है कि तुम उस पार से कहीं मुझे निहार रही होगी और दौड़कर फिर मेरे पास आना चाहती होगी लेकिन फिर मैं मौन हो जाता हूं तुम्हे खोकर,क्यूंकि मै जीना चाहता था तुम्हारे साथ,जब तुम साथ होती थी तो अच्छा लगता था लेकिन शायद अब तुम्हे मंजूर नहीं था मेरे साथ रहना , वो प्रश्न आज भी मेरे अंदर कहीं उस उत्तर को खोजना चाहता है जिसका जवाब सिर्फ तुम हो। मै तुम्हे ढूडना चाहता हूं फिर वही उसी पार्क में की तुम आओगी उसी मेज पर जहां हम साथ बैठा करते थे,आज भी मैं रोज उसी मेज़ पर जाकर अकेले बैठता हूं इसी उम्मीद में कि एक दिन तुम जरूर आओगी। अब तो दिल की धड़कने और तेज़ होने लगी थी क्यूंकि मेरे जाने का यानी इस शहर को छोड़ने का समय कुछ ही दिन और बचा था। उस शहर को छोड़ने से पहले मैं हर एक चीज को समेट लेना चाहता था,हर वो लम्हा जी लेना चाहता अब अकेले ही जैसे तुम्हारे साथ जिया था। तुम्हारे न होने का दुख तो था वो अकेलापन लेकिन तुम मुझमें हर वक्त होती थी ऐसा लगता था कि तुम मेरे साथ चल रही हो,कुछ कह रही हो और मैं सुनता जा रहा हूं आज भी उसी तरह पूरी तनमयता से। कुछ भी हो ये शहर तो अब जहन में बस गया है वो भी सिर्फ तुम्हारे लिए जिसे अब भूलाया नहीं जा सकता। इश शहर ने हमें बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ सिखाया भी है। अब यहां खोने को कुछ बचा भी नहीं था क्यूंकि आप यहां अपना दिल हार चुके है और उससे बेहद कीमती कुछ हो भी नहीं सकता। इस शहर ने प्रेम करना सिखाया, प्यार में होना सिखाया लेकिन प्यार से उबरना नहीं सिखा पाया जिसकी टीस आज भी चुभ रही है जो शायद अब जीवन पर्यंत रहे क्यूंकि जब कोई प्यार में होता है तो वो फुल स्विंग के साथ पूरी ईमानदारी और लगन से होता है और फिर जब कोई बीच में ही छोड़ के चला जाए तो फिर बहुत दुखता है इसीलिए कहता हूं प्यार में होना और प्यार से उबरना दो अलग - अलग बात है। प्यार आज भी उससे है।
Sandeep Lucky Guru
हर कोई कहता है कि इंजीनियरिंग इतना आसान है कि यह एक पार्क में चलने की तर है लेकिन केवल इंजीनियर्स जानते हैं कि पार्क को जुरासिक पार्क कहा जाता है हैप्पी इंजीनियर्स Day Engine
Pnkj Dixit
#OpenPoetry 🇮🇳पं• चंद्रशेखर आजाद🇮🇳 🇮🇳चन्द्रशेखर आजाद 🇮🇳 पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल क
Sweety Mamta
घुँघरु कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर निकल आये, शायद मेरा सामान निकालना एक बहाना था। उनको तो बाहर आने का की मौका मिल गया। मैंने भी हड़बड़ी से उन घुंघरुओं को उठा कर युही अपने बिस्तर पर रख दिया , और सरपट रसोई में दौड़ी। और भिंडी की सब्जी काटते हुये सोचने लगी, ज्यो आज वो घुंघरू दिखी गए हैं तो मैं,, आज अपना कत्थक जरूर करूंगी। तब तक रवि ने आवाज लगाई ,, "अरे विद्या जरा तौलिया तो रख दो,, मुझे नहा कर निकलना
Suresh Daiya ink
-: यादे :- वो पार्क का कोना तुम्हे याद हेना ? यादे वहां जाकर आज भी हकीकत सी लगती है ... read Caption..👇 Insta :- Suresh ._.Daiya.ink वो पार्क का कोना याद हेना तुम्हे..?? जहाँ तुम सबसे नज़रे बचाके आया करती थी में अरसे बाद बिछड़ने के हमारे आज उसी जगह पर लौटा था वो खाली कुर्सी आज भी हमारा इंतज़ार करती है वो पानीपुरी वाले भैया भी हमे नही भूले... मुझे देख मुस्कुराते हुए बोले अरे भाई आप ( शायद अचम्भे में थे ) काफी समय बाद देखा आपको तो कहा चले गए थे और वो ( सुप्प, ) में बोल पड़ा वो कौन भाई जी अरे वही जो आपके साथ आती थी फिर आप अपने हाथों से गोलगप्पे खिलाया करते थे ( में पहले ही तुम्हे सोचे जा रहा था इन्होंने जैसे जले पे नमक डाल दिया )
Anil Siwach