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abhay dwivedi
#OpenPoetry फ़िज़ा में जौर था , तू हिन्दू मैं मुस्लिम का ही शोर था , घरों में आग थी हो चुकी , बस्तियाँ राख थी , ये कैसा इंसानियत का तौर था , भाई भाई को ही काट रहा था , कहता अपनी क़ौम छाँट रहा था , ये कैसा है वक़्त आज , लाडला ही माँ को बाँट रहा था , क्योँ आज अपनों पर ही एहतिमाल था , क्या नहीं उनको कोई मलाल था , हर त्यौहार था चीख़ रहा , माज़ी माँग था भीख रहा , दफ़अ'तन आया क्या दौर था , फ़िज़ा में जौर था , तू हिन्दू मैं मुस्लिम का ही शोर था , घरों में आग थी हो चुकी , बस्तियां रख थी , ये कैसा इंसानियत का तौर था, #अभय माज़ी = अतीत जौर = अत्याचार , तौर = ढंग एहतिमाल = शक , दफ़अ'तन = अचानक #nojoto #jaur #daur #taurdelhi
abhay dwivedi
#OpenPoetry अखबार में पढ़ा था , के देश जैसे श्मशान सा हो गया था , हर तरफ दंगे भाग दौड़ , क्योँ हो रहा था ऐसा , ना जाने क्योँ इंसान ही , इंसान का दुश्मन हो रहा था , खुद को थे बाँट रहे वो , हिन्दू मुसलमान में , मगर रह तो रहे थे वो , हिन्दुस्तान में , घरों में आग थी , बस्तियाँ राख हो रही थी , फ़िज़ा खामोश थी और , इंसानियत सो रही थी , क्योँ उनको याद नहीं , मैं नहीं हम थे साथ , ज़िन्दगी बिताते थे , ईद हमारी भी थी , वो भी दिवाली मनाते थे , हमको भी पसंद थी सिवँइयाँ, हमारी मिठाई वो चाव से खाते थे , मगर आज ये क्या मंज़र हो गया था , अखबार में पढ़ा था , के देश जैसे श्मशान सा हो गया था , #अभय #nojoto #taurdelhi #hindustaan
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