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Veena Khandelwal

सभीको दशहरे की शुभकामनाएँ... 🙏🙏
#रावण_के_राम_से_प्रश्न

हे रघुकुल शिरोमणी रामचंद्र,तुमसे पूछूं क्या चंद प्रश्न।
कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम हो हर साल मारते मुझको तुम

यहां क्रुर दरिंदे गली गली, क्या इसमें  तेरा फर्ज़ नहीं ? 
जहाँ आब लूट रही बाला की ,ऐसा करना क्या हर्ज नहीं? 
मैं सिया हरण का पाप किया, लेकिन मर्यादा तोड़ी क्या ? 
हां कर्म धर्म से था राक्षस ,फिर भी हाथों से छुआ क्या?
हे राघव अब ये बाण चला , कुछ छद्मी राम रहीम पे तुम.
कैसे मर्यादा------
मैने लूटा पर देशों को, औ निर्मित की स्वर्णिम लंका।
पर जरा तुम्हारे धनिकों पर, क्यों तुमको आई ना शंका.
ये श्वेत वस्त्र में ढोंगी ही, तेरा ही धन लूटा करते.
अपने ही देश के पैसों को,चुपचाप विदेशों में भरते.
हे राघव चलाओ बाण अब  जरा इन द्रोहियों पर तुम. 
कैसे मर्यादा---------
लगी थी शक्ति जब लक्ष्मण को ,सुषेण लंका से ही आया।
बिना ही मोल के उसने तो  वैद्यकिय फर्ज निभाया.
पर तेरे स्वदेश के डाक्टर, कहता पैसा भरो पहले.
बिना पैसे के यहाँ मरते, हजारों लोग यों कह लें.
यह अंतर  हमारे बीच का, राघव जरा देखो तो तुम.
कैसे मर्यादा-----
हर बार मुझे ही सजा मिली जो मैंने बस एक पाप किया ।  
 हर चौराहे जला जला मुझ मरे को ही बदनाम किया । 
 हे मर्यादा पुरुषोत्तम अब, मर्यादित देश आबाद बना  . 
इस बार नये रावण कुछ चुन, जिनने भारत बरबाद किया.
हे राम पाप पर आरक्षण ? कलियुग में इतना बंद करो.
कलियुग त्रेता का भेद जरा, हे समभावी तुम बंद करो.
कुछ नये पापियों के पूतले , इस बार जरा जलवाओ तुम.
कैसे मर्यादा----
veena

©Veena Khandelwal #steps

Veena Khandelwal

Happy Dushahara👏
इस पर्व पर      #रावण_के_राम_से_प्रश्न 
                                   #व
                                #सलाह
                     🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
रघुकुल सिरोमणी रामचंद्र  ,  धरती के पाप मिटाते तुम।
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते, हर साल मारते मुझको तुम।
यहां क्रूर दरिंदे गली गली  , उनको अनदेखा करते क्यों?
अब घोर पाप क्यों मुंदे अक्ष,हर बार मारते मुझको क्यों?

इक सिया हरण का पाप किया , लेकिन मर्यादा तोड़ा क्या?
माँ सीते इच्छा विरुद्ध उनसे   स्वयं  को कभी जोड़ा क्या?
लुटती  दामिनी निर्भरा रोज , असुरक्षित हर बच्ची नवजात।
हे!राम जो सबकी मातृभूमि ,क्या दिखे नहीं उनके जज्बात?

हर बार मुझे ही सजा मिली   ,  जो मैंने बस इक पाप किया ।
मरणागत फिर शरणागत था,अब तक ना मुझको माफ किया। 
अब पहचानो हर रावण को  ,   नित नये मुखौटे पहना जो।
हो केसरिया या सफेद पोश    ,  हर गली चौराहे लटका दो।

शक्ति से मुर्छित लखन हुआ मेरे वैद्य ने क्या कोई मोल लिया।
तू देख जरा बिन दवा यहां ,      कितनों ने ही दम तोड़ दिया।
निर्दयी  बेरहम   बने    वैद्य     ,     पहले  पैसा  हैं   भरवाते।
फिर  भी  दुखहारी  भवभंजन,      मेरी  लंका तुम जलवाते?

हां मैंने छद्मी वेश किया     ,   पर एक सिया का हरण किया।
राम रहीम आशारामों ने     ,   जाने कितनों का हरण किया?
इन दिवाचरों का नाश करूं,इस ओर कभी क्या ध्यान किया?
मुझ मरे हुए को मारे तुम    , मुझ मरणागत का भान किया?

मेरी अब सजा बची कितनी    , जो युगों पूर्व है पाप किया?
हर चौराहों पे जला जला  ,  मुझ मरे को ही बदनाम किया। 
हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम   ,  कुछ नव रावण प्रतिमान घड़ो।
इस बार नये कुछ रावण चुन, कर दहन, गहन प्रण मान गढ़ो।


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