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Vishnu k Vishwakarma
Maa एक लाइन #माँ के लिए .... तुम उसकी क्या #बराबरी करोगी .. वो #तूफानों में भी #रोटियाँ #सेक देती है । वो माँ 🙏 है #डरती नही है #जनाब ..😎 वो तो #मुश्किलों को भी #चूल्हे में #झोंक देती है ।। ❤️❤️ ❤️ ❤️ ❤️ 😘 V!&hnu k V!&hwaka₹ma #maa
Bharat Bhushan Jha"Bharat"
सोच समझ कर निकलना, सर्दी में भरतार। चूक जरा सी हो गई, कर देगी ये बार।। कर देगी ये बार,रोम-रोम झुर्राये। दर्दो से भर देय,खोपड़ा भी भन्नाये।। माँगे फिर ये आग,सेक ही लेना भैया। नहीं लगाओ सेक,तभी हो ता ता थैया।। भारत भूषण झा"भरत" #NojotoQuote
Parul Sharma
december ka mahina बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ बिसरी यादों का एक फ्रेम दूँ कुछ भूली-भटकी कुछ बिसरी, कुछ हठ सी कुछ खट्टी कुछ मीठी कुछ कड़वी कुछ तीखी कुछ खुशमयी कुछ दुखमयी अपने दिल की विरासत में हर याद को एक जमीन दूँ दिसम्बर की सर्द धूप मेें जरा सेक लूँ बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ कुछ अपनों की कुछ गैरों की कुछ सपनों की कुछ हकीकत भरी सभी तो है अपनी अपनों की ठंड़ी कपकपी अगुलियों के बीच जकड़े चाय के कप के साथ जरा देख लू दिसम्बर की सर्द धूप मेें जरा सेक लूँ बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ सावन,पतझड़,बसंत, बार सी साल भर की जीवन के उतराव चढ़ाव पर साथ चली साल की अंतिम सीमा पर आस लगाये खड़ी जरा इन्हें अपनी हथेलियों में भर कर नये साल में प्रवेश दूँ सुनहरे अक्षरों में लिखकर अपने दिल का एक देश दूँ बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ दिसम्बर की सर्द धूप मेें जरा सेक लूँ पारुल शर्मा #NojotoQuote बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ बिसरी यादों का एक फ्रेम दूँ कुछ भूली-भटकी कुछ बिसरी, कुछ हठ सी कुछ खट्टी कुछ मीठी कुछ कड़वी कुछ तीखी कुछ खुशमयी कुछ दुखमयी अपने दिल की विरासत में हर याद को एक जमीन दूँ दिसम्बर की सर्द धूप मेें जरा सेक लूँ
बिखरी पड़ी हैं यादें जरा समेट लूँ बिसरी यादों का एक फ्रेम दूँ कुछ भूली-भटकी कुछ बिसरी, कुछ हठ सी कुछ खट्टी कुछ मीठी कुछ कड़वी कुछ तीखी कुछ खुशमयी कुछ दुखमयी अपने दिल की विरासत में हर याद को एक जमीन दूँ दिसम्बर की सर्द धूप मेें जरा सेक लूँ
read moreकुछ लम्हें ज़िन्दगी के
सेक दे मेरी आँख को रुमाल से आँखें ज़िन्दगी की खुल भी गई न । ©️✍️ सतिन्दर #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म #गई #न #आँखें #रुमाल #सेक #ज़िन्दगी #खुल
कुछ लम्हें ज़िन्दगी के
आज फिर तबीयत घबरा रही थी । सोचा चाय पी लूँ तो,,, मैंने कानों में हेड फोन ठूसे और मोबाइल पे अपना पसंदीदा गाना लगया ,,,, मेहरी बर्तन माझं के गई थी, सो बर्तन बरामदें में धूप सेक रहे थे । मैंने उनके आराम में ख़लल डाला और चाय का हत्था उठा उठाया ,,,, छन्नी जो बेचारी भारी बर्तनों के नीचे दबी थी, बेचारी का मुंह टेड़ा हो गया था । मेरे हाथों आते ही खिल उठी उसका ऐठा बदन वापिस सीधा हो गया,,,, छन्नी से आवाज़ आई ! "जीवन्दा रे भरावा" ! मेरे घुटते दम को बचा लिया । हत्था गैस पे रख्खा पानी डाला और आग लगा दी के जल जाय घबराहट, पत्ती, शक़्कर और दूध को मिला दिया,,,, आग की गर्मी ने तीनों को मिला के एक बना दिया तीनों की अब ख़ुद की कोई पहचान न थी । आग ने तीनों को मार के उनकी लाशों पे पत्ती से जो रंग बह रहा था पोत दिया ,,,, उबाले -उबाले - उबाले से सारा अहम भाप बनकर उड़ गया कितनों की कुर्बानी से एक कुछ बन पाया । मैंने प्याला उठाया उस पे छन्नी रख दी और हत्थे को खाली करने लगा ही था के ,,,, जो छन्नी मुझे कुछ देर पहले दुआयें दे रही थी तिलमिला उठी गरम - गरम चाय ने तड़पा दिया बेचारी को । उसके आँसू चाय में घुल के छन गए शायद एक दो छाले भी पड़े थे, पर चाय की मार ने फोड़ दिए ,,,, चाय की पहली चुस्की से मेरे ज़हन में उमड़ा ख़्याल के मैं अभी धूप सेक रहा हूँ । जब किसी को मेरे वजूद से काम होगा तो इस्तेमाल करेगा ,,,,, तन्हाई के मज़े ले "सतिन्दर" फिर तुझे भी आग लगा दी जाएगी ? या के उबाला जाएगा ? ©️✍️ सतिन्दर 12.03.18 #सतिन्दर #नज़्म #मेरावजूद
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