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Saurav Das
जब बात प्यार से न बनी तो क्रान्तिकारी पर उतर आये देश से इतना प्रेम कि जान की बाजी लगा आये उम्र क्या थी ये न पुछिए इनमें भरपूर था जोश अंग्रेजो के रूह कांप उठे नाम सुनकर सुभाष चन्द्र बोस !! ©Saurav Das #क्रान्तिकारी #देश #प्रेम #जान #उम्र #जोश #अंग्रेज #कांप
Ajay Amitabh Suman
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दिखाने की कोशिश की गई है. दरअसल ये कहानी आज के राजनैतिक अवसरवादिता पे एक व्ययंग है. 15 अगस्त 2018,
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दिखाने की कोशिश की गई है. दरअसल ये कहानी आज के राजनैतिक अवसरवादिता पे एक व्ययंग है. 15 अगस्त 2018,
read moreParul Sharma
क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने क कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर ल्या है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगालते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाहते है। और इस मानसिक गुलामी में न जान कब अपनी भाषा का अपनापन खो बैठेपता ही नहीं चला। पर ऐसा क्यों हुआ ऐसा कब से हुआ ये इसकी शुरूआत गुलाम भारत में अंग्रेजी शाशकों ने की गुलाम भारत में अंग्रेजी माध्यम क स्कूल खुलबाये बड़े और पैसे बाले लोगों से मित्रता की और जो गद्दार थे या उनके चाटुकार थे उनको धन से माला माल कर दीया कुछ लोग उन्हे शासक मान तो कुछ लोग चापलूसी में तो कुछ लोग उनके बिछाये जाल को अहसान मान कर उनकी बेषभूषा, चालढाल भाषा आदत का अनुसरण करने लगे उन्हें इन्हीं धनी और उच्च पद पर आसीन लोगों जो देखा देखी और लोग इनकी नकल करने लगे जब तक अंग्रेज भारत छोड़ते तब तक अंग्रेजी ने पैर जामा लिये थे । भारत आजाद हुआ अब यह सोने की चिड़ीया भी न रहा और धनी लोग तो पहले से ही आधे अंग्रेज हो चुके थे और यहाँ तो भेड़ चाल खूब चलती है तो और इस तरह हिन्दी अपनी व्यापकता खोती गयी और अंग्रेजी सैंध जमाती गयी पारुल शर्मा imrohiinegi क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर लिया है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगा लते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाह
imrohiinegi क्यों जरूरत पड़ रही है हिन्दीं दिवस मनाने कि ये जताने कि आज हिन्दी दिवस है आज हिन्दी का दिन है क्या हिन्दी का दर्जा कम हो गया है या हमने ये स्वीकार कर लिया है कि हिन्दी उन ऊँचाईयों पर नहीं है जहाँ इसे होना चाहिये था अपने देश में ही हिन्दी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है हम कोई न कोई बहाना बनाकर अंग्रजी को गले लगा लते है और हिन्दी से हाथ छिटक देते है और अपनी ही भाषा को पराया कर देते है हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गये पर अंग्रेजी के गुलाम हो गये और बही बने रहना चाहते है और होना भी चाह
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