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Manavazhagan
आपके पास नैतिक अच्छे विचार हैं यदि आप सोचते हैं, तो आप नीचे नहीं गिरेंगे। मजबूत नैतिकता के साथ अच्छे विचार सोच कर ऊपर उठने का प्रयास करें। ©Manavazhagan #नैतिक विचार सोचो, मेरे प्रिय युवक, और तुम कभी नीचे नहीं गिरोगे। भारत अमर रहे, वंदे मातरम।#youth #india #motivation
rahul Raj
धन संपदा हमेशा मनुष्य के पास नहीं रहते परंतु शिक्षा रूपी ज्ञान जीवन भर मनुष्य के काम आता है और इसे कोई चोरी भी नहीं कर सकता। इसीलिए सबसे बड़ा धन ज्ञान है। ©rahul Raj #नैतिक सीख# #bestfrnds
Ek villain
नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है इस संबंध में डॉक्टर के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक समिति विचार विमर्श कर रही इसमें बचपन से ही बच्चों में वैज्ञानिक सोच के विकास पर ध्यान दिया जाएगा साथ ही बच्चों में गणना संबंधित सोच पर तर्क करने की क्षमता पर भी खास ध्यान दिया जाएगा इसमें मौलिक कर्तव्य का अधिकार से जुड़े आयाम शामिल होंगे लेकिन इन तमाम बातों के बीच एक अहम विषय की कोई चर्चा नहीं हो रही हम बात कर रहे हैं नैतिक शिक्षा के अनिवार्य शिक्षण के रूप में रूपरेखा के निर्माण दरअसल नई शिक्षा नीति और अनिवार्य पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को शिक्षण विषय के रूप में शामिल करने की कोई बात नहीं कही गई है जबकि नैतिक शिक्षा के सामाजिक मूल्यों की स्थापना का सशक्त माध्यम होती है यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अब तक हमारी शिक्षा प्रणाली मानवीय मूल्य और नैतिक चरित्र काम करने में कहीं ना कहीं नाकाम रही है यह वजह है कि रिश्तो के तत्वों का अभाव परिलक्षित हो रहा है हर रोज अखबारों की खबरें नाम देने में काफी उच्च शिक्षित होने का दम भरने वाले समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की आधी किसी तरह से समाज को खोखला कर रहे हैं समाज में आज हर जिम्मेदार नागरिक स्वयं को आता है क्योंकि इस बात से कभी घोर अपराध से कटता सजा प्रावधान है कानून की सख्ती है फिर भी अपराधों के ग्राफ में हो रहा है संजय आगे अपराध बढ़े सी दिशा में हमें अन्य बातों पर विचार करना होगा जो समाज के अपराध मुक्ति में सहायक हो इस स्थिति में शिक्षा के संबंध को देखना महत्वपूर्ण हो जाता ©Ek villain #नैतिक शिक्षा की उपादेयता #Love
नैतिक INDIA
अब बन्द करो कोरोना-कोरोना। न यह अब जाने वाला । हमे ही चलना होगा साथ इसके। रखना होगा अपना ध्यान चारो ओर स्वस्थ रहे , जहाँ बार बार हाथ को धोना है, मुह पर मास्क लगाना है। अपनों के संग भौतिक दुरी रखनी है। लेकिन दिल की दूरियों कम ना हो, फिर लौट ,पारंपरिक संस्कृति और परंपरा की और अब न हो सके प्रकृति का शोषण। हमे प्रकृति के साथ जीना होगा। आओ मिलकर चले एक नैतिक राह पर अपनों के संग ,अपनों के साथ।।।।।। #एक कदम नैतिकता की ओर, #नैतिक भारत अभियान।
kamal sharma
लोगों का प्रतिकात्मकता पर गहरा लगाव है।और सबसे बड़ी बात आजादी के बाद भी देश को कोई ऐसा प्रतिनिधित्व नहीं मिला जिसका कोई स्वतंत्र आदर्श हो आदर्श नैतिक मूल्य हो वो कभी अपने लिये इतनी स्वीकार्यता जनमानस में नहीं बना पाये जितना स्वतंत्रता पूर्व के हमारे जन नेताओं ने बनाये आज हमारे तथाकथित जननेताओ से ज्यादा प्रासंगिक तो उन जननेताओ की मूर्तियां है जिन्होने अपने आप को देश के लिये आहूत कर दिया ।मूर्तियों को दंडवत प्रणाम करते लोगो में कोई भी उनके आदर्शों और नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने के लिये तैयार नहीं दिखता लेकिन उनकी छोड़ी विरासत को हथियाने होड़ लगी है।गाँधी पर बोलना एक बात है जनाब गाँधी होना दूसरी बात खैर *** स्वच्छतादिवस पर कचरे से ज्यादा कचरों को बाहर निकालना ज्यादा सार्थक होगा
Gyanendra Kumar
बापू के विचार सत्य अहिंसा स्वाभिमान नैतिक जीवन भेदभाव रहित ईमानदारी सौम्य वाणी न्याय प्रिय रहना और उदार ह्रदय सामाजिक सन्तुलित जीवन शैली और अनेकता में एकता आदि जो समाज को नैतिक जीवन देते हैं । #GandhiJi
TARUN KUMAR VIMAL
लेख बड़ा जरूर है लेकिन कुछ समजनें को मिलता है।............... दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। – न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल। भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले) भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये। भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है। जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है। जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं। भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं। भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि 1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते । 2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था। प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की। सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है 3- भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है लेखक-ब्रायन, गाडजोन न्यूजीलैंड ( समाज की बंद आँखों को खोलने के लिए इस मैसेज को जितने लोगो तक भेज #tarun_kumar_vimal सकते हैं भेजने का कष्ट करें ।) #indian #politics #tarun_kumar_vimal
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