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ankit saraswat

#शहर

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शहर भावना हीन, संवेदना हीन भीड़ से भरा, पर बेबस खड़ा वो ताकता रहा हजारों की भीड़ में लाखों के चेहरे और उसे बस देखना था वो शहर था, वो बस देख सकता था
और वो बस चुपचाप देखता रहा हर रात हर सुबह।। 
#अंकित सारस्वत # ##शहर

Parul Sharma

nojoto family के सभीसदस्यों को सुप्रभात #कुछ_लोग_ऐसे_भी नकारात्मकता पैदायसी नहीं होती और ना ही यह कोई जातीय लक्षण है। जिस मन में अपराधबोधता, हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना घर कर लेती है वहाँ नकारात्मकता सरलता से अपनी जगह बना लेती है। अपराधबोधता , हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना अगर बढ़ती जाती है तो मनुष्य एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है या जो उसे स्वतंत्रता का आभास कराता है। और वह भावनाओं से पृथक हो असामाजिक हो जाता। ये तब घातक सिद्ध होती है जब नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण व्यक्ति किन्हीं अपरा

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 nojoto family के सभीसदस्यों को सुप्रभात
#कुछ_लोग_ऐसे_भी
नकारात्मकता पैदायसी नहीं होती और ना ही यह कोई जातीय लक्षण है। जिस मन में अपराधबोधता, हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना घर कर लेती है वहाँ नकारात्मकता सरलता से अपनी जगह बना लेती है। अपराधबोधता , हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना अगर बढ़ती जाती है तो मनुष्य एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है या जो उसे स्वतंत्रता का आभास कराता है। और वह भावनाओं से पृथक हो असामाजिक हो जाता। ये तब घातक सिद्ध होती है जब नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण व्यक्ति किन्हीं अपरा

Parul Sharma

|| कुछ लोग ऐसे भी || नकारात्मकता पैदायसी नहीं होती और ना ही यह कोई जातीय लक्षण है। जिस मन में अपराधबोधता, हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना घर कर लेती है वहाँ नकारात्मकता सरलता से अपनी जगह बना लेती है। अपराधबोधता , हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना अगर बढ़ती जाती है तो मनुष्य एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है या जो उसे स्वतंत्रता का आभास कराता है। और वह भावनाओं से पृथक हो असामाजिक हो जाता। ये तब घातक सिद्ध होती है जब नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण व्यक्ति किन्हीं अपराधिक कार्यों में लीन हो कर विवेक ही

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 || कुछ लोग ऐसे भी || 
नकारात्मकता पैदायसी नहीं होती और ना ही यह कोई जातीय लक्षण है। जिस मन में अपराधबोधता, हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना घर कर लेती है वहाँ नकारात्मकता सरलता से अपनी जगह बना लेती है। अपराधबोधता , हीन भावना,या श्रेष्ठता की भावना अगर बढ़ती जाती है तो मनुष्य एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है या जो उसे स्वतंत्रता का आभास कराता है। और वह भावनाओं से पृथक हो असामाजिक हो जाता। ये तब घातक सिद्ध होती है जब नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण व्यक्ति किन्हीं अपराधिक कार्यों में लीन हो कर विवेक ही

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