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Sandeep Sagar

कुन्ती
एक नारी की व्यथा
सुन के राज्य डोलता है
सामने तो चूप मगर
पर मौन मौन बोलता है
बोलने से ऐसा जैसे
परतें खोलता कोई
राज था छिपा जो उनका
सामने तोलता कोई।
माँ ने अपनी कोख से 
जन्म दिए लाल को
सामने खड़े है दोनो
लिए धनुष,भाल को।
देख माता कुन्ती का दिल था दहल उठा
माता की ममता का आँसू सम्भाल उठा
कर्ण को मनाने का प्रयत्न बहुधा किया
पर कर्ण ने दोस्ती का फर्ज था अदा किया
सुत पुत्र नाम से जब लोगों ने तोड़ा था
तब भी दुर्योधन ने मेरा साथ नही छोड़ा था
आज कैसे माँ के कारण  उसका साथ छोड़ दूँ 
जिसने सहारा दिया उसको इस मोड़ पर तोड़ दूँ
बोला वचन देता हूँ माँ तू राजमहल जा
सोच मत की तेरा पुत्र विफल जाए सम्भाल जा
एक पुत्र वीरगति को अगर जाएगा
फिर से एक पुत्र आकर तेरा पांडव पुत्र बनाएगा।।

©Sandeep Sagar #कुन्ती #महाभारत 

#MereKhayaal

Yogini Kajol Pathak

#Ocean #कुन्ती #अर्जुन संवादEnglish Varsha Singh Baghel(शिल्पी) Saurav Tiwari आशुतोष यादव #कविता

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क्या पुछते हो यह जिद् कर क्यों बहता है मेरे आखों से पानी,
तुम क्या जानों हे मधुसूदन मित्र,यह ममता की भारी हानी,
ले पोछती हूँ मैं आखों को,तेरे समीप न इसको बहाऊँगी,
मैं फिर बनती हूँ पत्थर,तू जा अभी मैं आऊँगी
वो आह निकलने दे जो ममता बर्षों से तड़पी है 
सपूतनी रह यह कुन्ती चिर पूतन को तरसी है,
जब कर किलकारी इन आँचल में तू चहक रहा था,
तब इसके हिस्से का ममता,तुम पाँचो में बट रहा था,
जो सदा रहा इस स्नेह का अधिकारी वह बन राधेय 
निज हिस्से के वात्सल्य को तड़प रहा था,
जो कह दूँगी मैं सच तो फिर सुना न तुमसे जाएगा
ये गाँडीव तुम्हारे कंधे पर पलभर को ठहर न पाएगा 
,जाओ हे अर्जुन विश्राम करो तुम इस वीर से लड़ कर आए हो 
वो स्वावलम्बी कोई और नहीं निज अग्रज प्राण हर तुम आए हो,
अरे यूँ कर अभिमान,शौर्य अपनी दिखाते तुम
भला हारा न होता वो खुद से तो क्या परशुराम शिष्य हराते तुम
यह कर्ण नहीं कौन्तेय है जिसका शरीर धरा पे है पड़ा,
जिसके जन्म के वक्त ये समाज बन शैतान ममता के राहों में रहा खड़ा,
यह छत्रिय है यह कोई सहज पुरूष नहीं 
जिसके सर गोदी मे रख रोने को मैं यहाँ पड़ी आज तरस रही 
जा गाँडीवधारी यूँ परीक्छा न ले, यह आँखे अब रूक सकती नहीं 
भर नयनों में सागर,छड़ भर भी थम सकती नहीं,
आज कर विलाप मैं निज ह्रदय आग अश्रु से बुझाउँगी
अब और न तकलीफ दे जा अर्जुन अभी मैं आऊँगी,
मेरे यह द्वृग व्याकुल हैं,भर नयन इसको देखने दे,
अब तक तो मरी हर रोज हूँ आज मुझे फिर से मरने दे,!
वात्सल्य कर्ज अर्जुन आज ह्रदय से उताँरूगी 
जिसको मार विजयी हुआ उस वीर पर स्नेह मैं हारूँगी,
हे अर्जुन लेखनी विधना की विधाता से भी टाली जाती नहीं, 
जो कहते हैं ईश नहीं उनसे भी मौत सम्भाली जाती नहीं,,! #Ocean #कुन्ती #अर्जुन संवाद#NojotoEnglish Varsha Singh Baghel(शिल्पी) Saurav Tiwari आशुतोष यादव


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