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परवेज आलम
योग्य अभ्यर्थियों के लिए सुनहरा अवसर ©परवेज आलम #सीवान #सर #सरकार #मोदी #कांग्रेस #तथा #भारत #गोपालगंज #बिहारी #बिहार जयहिन्द विकास पार्टी भारत की ओर से नव वर्ष की शुभकामनाएं
pandeysatyam999
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी। दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥ सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
Ashok kumar
ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार ने 29/09/2019 को करगहर प्रखंड के मोहनपुर खरसान के सामुदायिक भवन में बैठक किया। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले "आहर पोखर पर बसे गरीबों का घर अतिक्रमण मुक्त किया जाए" को जिला या प्रखंड प्रशासन तभी अमली जामा पहनाने का विचार करें जब गरीबों को आवास के लिए पांच बिसिमल जमीन मुहैया करा कर उस पर घर बना दे। ऐसा नहीं करने पर यूनियन बड़े आन्दोलन में जाने को विवश होगा। साथ ही नया जॉब कार्ड बनाने, जॉब कार्ड पर हाजिरी बनाने, जॉब कार्ड नवीकरण करने
dayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
Paramjeet kaur Mehra
पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ।कौरवों की सभा में विराट रूप श्री कृष्ण जी ने दिखाया था तथा यहाँ युद्ध के मैदान में विराट रूप काल ने दिखाया था।
Prabodh Prateek
आज़ादी के आन्दोलन के उस अविस्मरणीय योद्धा ज्वलंत देशप्रेम , अदम्य साहस , निर्भीक जोश , आदर्श के प्रति अटल निष्ठा , दृढ़ संकल्प शक्ति , ज्ञान की प्रगाढ़ता , सत्यान्वेषी मानसिकता , सांगठनिक दक्षता , छोटी उम्र में ही विचारों की गहराई, पर उनकी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अतुलनीय भूमिका और उच्च आदर्शों को याद करते हुए शत् शत् नमन ,प्रणाम करता हूँ भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए जीवनभर संघर्ष किया और उनके साहसी व्यक्तित्व, क्रांतिकारी विचारधारा, दूर-दृष्टि तथा सटीक कार्ययोजना से आज की युवा पीढ़ी को
Paramjeet kaur Mehra
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Anil Siwach
Priya Sharma
*फ्री फ्री फ्री फ्री 100% फ्री* पुस्तक *ज्ञान_गंगा* आपके घर तक बिल्कुल फ्री पहुंचाई जाएगी। इस पुस्तक में बहुत ही अद्वितीय ज्ञान है कुछ सवाल सभी के मन में आते हैं जैसे कि👇🏻👇🏻👇🏻 1. *सृष्टि की रचना कैसे हुई तथा किसने की और कैसे की?* 2. *श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी श्री शिवजी की उत्पत्ति कैसे हुई?* 3. *कौन तथा कैसा है कुल का मालिक?* 4. *पूर्ण संत की क्या पहचान है?* *👆🏻👆🏻 इस तरीके के कई सवाल जो इंसान के मन में उठते हैं उनका जवाब इस पुस्तक में है इसलिए इस पुस्तक का नाम
Anil Siwach