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soham palanpuri
बदनसीब हु बेबस हु ना चाहकर भी जिंदा हु, मैं वो बिछड़े भारत का सेहमासा परिंदा हु । गांव से निकला कमाने को शोहरत ओर मुकाम पाने को, पर सिमट कर रह गई ख्वाईशे दो वख्तकी रोटी खां ने को । जब देश मे धुंआ उठता है मैं सबसे पहले जलता हु, पहोच गई है चाँद पे दुनिया मैं आज भी पैदल चलता हूं । कई लूँटाते है लाखो शहर के मोल ओर दुकानों में , भाव ताल याद आता है सब्जियों के कंतानो में । दिन रात पसीना बहाता हु मिट्टी और मशीनों में , मैं तरसा पाई पाई को वो लाखो लूँटाते कशीनो में। मुश्किल से बनाई चार दीवारे छत कहाँ आशियाने को , जब बारिश हुई जोरो की तो मजबूर हो गया बह जाने को । करके भी मदद थोडी बहोत एहसान बहोत जताते है , एक बार का खाना देकर तस्वीरो में चिपकाते है । काश की साथ मे चुनाव होता इस कोरोना की महामारी में, बड़ी इज्जत से ले जाते घर बिठाके बढ़िया सवारी में । खेलते है क़भी वोटो के लिए कभी खेलते नोटों के लिए, सदियो से में आहत हु मै वो बिछड़ा भारत हु । -सोहम पालनपुरी #सोहमपालनपुरी #भारत #भारतीय #गरीब #DesertWalk
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