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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 13 - आशा - उचित-अनुचित 'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा पीले कपड़े वाले नम्बरदार ने। दूसरे बैरेकों से भी इसी प्रकार की पुकारें लगभग उसी समय उठी। यह कारागार का तृतीय श्रेणी का बैरेक नम्बर सात है। संध्याकालीन भोजन हो चुकने पर बंदी अपने फट्टे(मुँज की रस्सी से बनी चटाइयाँ), कम्बल, कपड़े लपेटे, तसला-कटोरी लिये दो पंक्तियों में बैठ गये थे। उनकी गिनती की गयी और फिर भरभराकर वे बैरेक में घुस गये।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
13 - आशा - उचित-अनुचित

'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा पीले कपड़े वाले नम्बरदार ने। दूसरे बैरेकों से भी इसी प्रकार की पुकारें लगभग उसी समय उठी।

यह कारागार का तृतीय श्रेणी का बैरेक नम्बर सात है। संध्याकालीन भोजन हो चुकने पर बंदी अपने फट्टे(मुँज की रस्सी से बनी चटाइयाँ), कम्बल, कपड़े लपेटे, तसला-कटोरी लिये दो पंक्तियों में बैठ गये थे। उनकी गिनती की गयी और फिर भरभराकर वे बैरेक में घुस गये।

Eron (Neha Sharma)

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उस कुर्ते के ढीले बटन की तरह हो गयी हो तुम
चलने को लम्बा चले, अलग हो जाये तो अभी हो जाये।
कुछ ऐसा ही बदलाव मैं हर रोज़ तुममे देखता हूँ
पर मेरी हालत उस धागे सी नही कुर्ते जैसी है।
तुमसे नियंत्रित हूँ मैं भी।
तुम कुर्ते से गिरी तो वही जगह पर मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।
देखो कहीं ऐसा न हो तुम्हारे अहम में 
तुम मुझे खो दो फिर कभी मिलो भी नही।
और उसी कुर्ते पर एक नया बटन टांक दिया जाए।
बहुत मजबूती से विश्वास के धागे के साथ। - नेहा शर्मा

Love Prashar

#genesis Introduction इस कहानी को जब मैं लिख रहा था तो खुद मेरे जेहन मे कई सवालात थे मै उन दंगो के वक़्त वहा उस जगह पर तो नहीं था परन्तु सिर्फ उन दंगो के दृश्यों की कल्पना मात्र से ही मेरा ह्रदय डर और क्रोध से जाँझोड सा गया कुछ वक़्त बाद वहा कर्फुयु लगा और धीरे धीरे दंगे शांत होगए और शायद 14-15 साल होगए इस वाक्य को पर अब तक कोई फैसला नहीं आया और कुछ लोग जिनके घर उजड़े थे वो घर-बार छोड़ चले गए और कुछ जिनके पास अभी भी वहा रहने के इलावा कोई और चारा नहीं था वो वही उसी शहर मे जैसे तैसे अपना जीवन व्यतीत क्रर रहे है मेरी कहानी भी कुछ ऐसे किरदारों से भरी जिनके बारे मै जानकर आपको एहसास होगा की जिन्हे लोग दंगो का नाम दे रहे थे वो कुछ और नहीं सिर्फ इक सियासी नंगा नाच था और कुछ भटकी हुई कठपुतलिया अपने कला निर्देशक के निर्देश मै सरेआम कत्लेआम कर रहे थे मै इस कहानी मै किसी भी विशेष दंगो का उल्लेख नहीं करूँगा क्यूंकि दंगे जो भी हुए सबका मकसद और कारंवा एक ही था ये कहानी दो ऐसे परिवारों की है जो ठीक आमने सामने रहा करते थे इक परिवार मुस्लिम तो दूसरा हिन्दू , ये इक बड़े शहर की छोटी सी बस्ती जहा लोग बोहत खुश रहते जिन्हे धर्म या जातपात से कोई वास्ता नहीं था कुछ था तो सिर्फ अपने अपने कामो से और इक दूसरे से के साथ प्यार से रहने मै , इस बस्ती मै त्यौहार तो ऐसे मनाये जाते थे जैसे सबके हो हम कह सकते ये बस्ती सच मै इक धर्मनिरपेक्ष बस्ती थी जो किसी सियासी हुक्कम की मोहताज नहीं थी . तो अब बात करे इस कहानी के खास किरदारों की , इक परिवार का मुखिया सलीम था जिसकी एक बीवी शबाना और एक 7 साल का बेटा अली था , और दूसरा परिवार जहा का मुखिया राहुल बीवी अंकिता और बीटा निवान जो की करीब 5-6 साल की ही थी पर अली और उसकी कद काठी लगभग समान ही थी , दोनों परिवार ख़ुशी खुशी मिलजुलकर रहते थे राहुल और सलीम दोनों ही पड़े लिखे और अलग अलग प्राइवेट कंपनियों मै कुछ क्लेरिकल काम किया करते थे दोनों ही परिवारों मै इक गहरी दोस्ती थी Story अब करते है कहानी की शरुआत , कुछ करीब 2 ही रोज बचे थे लगभग बक्र ईद आने को और मोहल्ले मे हलचल शरू हो चुकी थी लोगो ने तयारिया भी शरू करदी थी राहुल और अंकिता हर ईद त्यौहार पर सलीम के बेटे के लिए नए कपडे लिया करते थे जो हमेश इक सफ़ेद कुरता पजामाँ , चप्पलें और इक सूंदर सी टोपी हुआ करती थी और ऐसे ही सलीम और शबाना भी दिवाली पर निवान के लिए नए कपडे और कुछ पटाखे मिठाईए लिया करते थे उस रोज अंकिता ने राहुल को फ़ोन किया और कहा के आज जल्दी आना शाम को परसो ईद है हम अली के लिए कपडे ले लेंगे राहुल ने भी कहा ठीक तुम और निवान त्यार रहहना मे करिब 4 बजे तक आजाऊंगा और फिर सीधे बाजार चलेंगे बाजार बाजार लगभग 5-7 km ही दूर था तो करीब 4.45 के आस पास अंकिता राहुल और निवान बाजार पोहंच गए , बाजार मे त्यौहार की वजह से काफी भीड़ भी थी लोग इक दूसरे की लिए खूब खरीदारी कर रहे थे बाजार हिन्दू मुस्लमान किसी मे भेदभाव नहीं करता तो वहा उसदिन सभी थे हिन्दू मुस्लिम हर कोई खरीदारी कर रहा था तो कुछ लोग सिर्फ अपनी दुकानों पर कारोबार के लिए आये हुए थे, कुछ छोटे छोटे बचे माता पिता के साथ खाने पीने के लिए , उस बाजार मे सिर्फ और सिर्फ खुशमिजाज चेहरे दिख रहे थे लोग बाजार के किनारो पे लग्गे खाने पीने के ठेलो पर खानपान कर रहे थे सब बेखबर थे दिन दुनिया के झगड़ो से उस वक़्त हर कोई सिर्फ खुश था , जैसे दिन डलने लगा धीरे धीरे भीड़ काम होती रही , अचानक से शहर मे खबर फैली की फलाना जगह पर दो गुटों मे लड़ाई के कारन कोमी दंगे फ़ैलने की आशंका है , ये बात बाजार मे लोगो के कान मे भी पोहंची पर लगभग हर कोई बेचिंतित था इससे क्यूंकि सबको इक दूसरे पर भरोसा था और लगरहा था ऐसा कुछ नहीं होगा छोटी मोटी लड़ाई है सब सही होजाएगा, अंकिता फिर भी थोड़ा डरी और सेहम सी गई राहुल ने पूछ क्या हुआ तो उसने कहा उसे लगता है हमे घर चलना चाइये पर राहुल ने कहा डरो मत सब सही हम इतने सालो से यहाँ रेहराये है ये सब हमारे अपने है , जिस दुकान पर वो दोनों खड़े थे और अली का कुरता पजामा ले रहे थे उसके मालिक एक मुस्लिम ही थे उन्होंने अंकिता की बात सुनली और कहा भाभी जी डरिये मत यहाँ ऐसा कुछ नहीं होगा और जब तक हम है यहाँ कुछ नहीं हो सकेगा , अंकिता को होंसला हुआ थोड़ा पर होनी कौन टाल सकता है टीवी पर अचानक इक खबर आयी की सुबह जो 2 मुस्लिम लड़के धार्मिक घुटो की लड़ाई मे घायल हुए थे उनकी हस्पताल मे मौत होगयी ये खबर आग की तरह पुरे शहर मे फ़ैल गई और ऐसा लगा जैसे ये सब कुछ पहले से ही तय था और कुछ गुट सिर्फ इस खबर के इन्तजार मे थे और खबर के आने के 20-25 मिंट के बितर ही शहर के इक भाग मे जैसे आग लग गई इससे पहले के बाजार मे खरीदारी मे व्यस्त लोगो को इसका पता चलता अचानक बाजार मे अल्ला हु अकबर अल्ल्हा हु अकबर की आवाज गूंजने लगी दूर से करीब 50-60 लोगो का गुट टोपिया पेनहे हाथो मे तलवारे पेट्रोल और मशाले लिए बजार मे टूट पड़े लोगो मे भगधड़ सी मच गई डर के मारे लोगो ने दुकाने बंद करदी और इससे पहले लोग भागते इस गुट ने दुकाने जलानी शरू करदी जहा भी उन्हें किसी के हिन्दू होने की पहचान मिली काटना मारना शरू करदिया , इसी भगदड़ मे राहुल अंकिता भी निवान को गोदी मे लिए बस्ती की तरफ भागना शरू होगये पर उसी वक़्त इक गुट ने उनका रास्ता रोका जिसमे दो लोग थे इक के हाथ मे तलवार और इक के हाथ मे पेट्रोल और मशाल राहुल ने जल्दी से अंकिता को निवान दिया और भागने को कहा वो रोती रोती पुत्रमोह मे वहा से दौड़पड़ी और भागते भागते कही कोने मे इक दुकान जो 20/20 की होगी खाली सी पड़ी थी बस उसमे कुछ बारे बारे पड़े थे इक बड़ा सा डर्म और उस दुकान के बहार ऊपर 786 और अल्हारखा शॉप, सेहमी हुयी अंकिता को ये एहसास होगया था की की अब तक उन दरिंदो ने राहुल को छोड़ा नहीं होगा रोतेरोते उसे सलीम की याद आई उसने कॉल कर सारा हाल बताया सलीम भाई ने बिना वक़्त ख़राब किये पूछा भाबी आप कहा हो बताओ मे आरहा हु , अंकिता ने बताया की कोई दुकान है और उसके ऊपर जो लिखा था वो पहचान मे बताया जैसे ही फ़ोन रखा बहार से अचानक से तेज तेज आवाजे आनि शरू होगी आल्हा हु अकबर अंकिता सेहम गई उसे ऐसा लगा जैसे अब शायद सब ख़तम होजाएगा अचानक उसकी नजर उस लिफ़ाफ़े पर पड़ी जो उस वक़्त भी निवान ने हाथ मै पकड़ रखा था उसने जल्दी से वो लिफाफा लिए खोला और निवान के कपडे बदललेन लगी तभी निवान ने अचानक जिद्द करनी शरू करदी की मम्मी ये तो अली के कपडे आप मुझे क्यों पहना रहे गंदे होजाएंगे , अंकिता ने उसके माथे पर चूमा और कहा बेटा बस तू ये कपडे पहने ले तुजे जिस दिन इस दुनिया के असूल समज आएंगे तुझे पता लग जाएगा मैंने ऐसा क्यों किया , बहार चीखो का शोर और गूंजने लगा और अंकिता के शरीर मै अजीब सी कंपन होने लगी जो शायद उसे किसी और बड़ी अनहोनी का अंदेशा दे रही थी , अंकिता ने बिना वक़्त बर्बाद किये जल्दी से निवान के कपडे बदले और इक दम बहार से आवाज आई के भाई जान वो दुकान देखो उसका आधा शटर खुला है शायद वहा कोई है तो किसी दूसरे ने कहा कोई नहीं वो अपने किसी मुस्लमान भाई की है छोड़ो उसे और कोई किसी हिन्दू की दूकान देखो मिले तो जला दो , सुनकर अंकिता को थोड़ा साँस आया की शायद अब कोई इस दूकान पर न आये , पर अनहोनी को शायद कोई नहीं टाल सकता अचानक अंकिता के फ़ोन पर रिंगटोन बजी जिसपर सलीम कॉल कर रहा था उस वक़्त बहार दो दंगाई उसी दुकान के बिलकुल पास मै खून मै लत पत् गांझे वाली सिगरेट बर रहे थे एक ने अचानक रिंगटोन सुनी जिसमे गायत्री मन्त्र का जाप हो रहा था उसने इक दम से साथ वाले को कहा के पक्का कोई अंदर है तभी फ़ोन बजरहा है तो दूसरे ने कहा भाईजान ने कहा न किसी मुस्लिम भाई की दूकान को नुक्सान नहीं पोहचना और हो सकता है दुकान के मालिक का फ़ोन भागदौड़ मै गिरगया होगा, पहले ने कहा बेवकूफ कोई मुस्लिम अपने फ़ोन मै गायत्री मन्त्र को क्यों रिंगटोन बनाएगा इतने मै फ़ोन दुबारा बजा अंकिता फ़ोन नहीं काट सकती थी क्यूंकि इससे साबित होजाता की अंदर कोई है , दंगाइयों मै से दूसरे ने कहा अरे रुक यार पहले ये गांझे वाली सिगरेट फुकलते है फिर काट देंगे जो भी मिला पहले ने कहा हा यार सही कहा वैसे भी जो होगा बहार तो आएगा और आया भी तो हम कौन सा छोड़देंगे , अंकिता ये सब सुन रही थी उसने देर ना करते हुए निवान को पास पड़े इक डर्म मै छुपे रहने को कहा और बोली जब तक सलीम अंकल न आये बहार ना निकले , मासूम निवान को कुछ समज नहीं आरहा था पर मम्मी की बात मान वो बिचारा ड्रम मै गुसगया उसका माँ से आखिरी सवाल था मम्मी पापा कहा है और आप कहा जा रहे हो , अंकिता न भरी आँखों से और भारी गले से कहा बेटा पापा ठीक है पर शायद वो गुम हो गये मै उन्हें ढूंढ़ने जा रही हु और अभी बस अंकल आएंगे तुजे घर लेजेंगे हम वही मिलेंगे पर बेटा तुजे मेरी कसम जब तक अंकल न आये तू बहार मत आइयो मासूम ने सेहमी सी आवाज मै कहा मम्मी आप चिंता मत करो मै तब तक नहीं आऊंगा जब तक अंकल नहीं आते, अंकिता जानती थी के अगर वो बहार नहीं गई तो वो लोग अंदर आएंगे और शायद तो वो और निवान दोनों ना बचे, सलीम जो बाइक पर आरहा था उसदिन किस्मत ख़राब ऐसी हुई की उसकी बाइक बिच रोड पर पेंचर होगी और अगर वो पैदल आता तो बोहत देर लगजाति वो जनता था की उसका जल्दी पोहंचना बोहत जरुरी यही बात वो अंकिता को बताना चाहता था और दंगो की आग अब तक उस बस्ती तक नहीं पोहंची थी पर लोग सेहम चुके थे और दुकाने घर सब बंद थे सलीम बिच रस्ते पर खड़ा इसी सोच मै था वो क्या करे के इतने मै अंकिता का फ़ोन आया और उसने बताया की अब शायद वो न बचे पर उसके बच्चेको सलीम बचाले इससे पहले सलीम कुछ बताता या पूछता अंकिता ने ये कहकर की अब वक़्त नहीं है अब बस आजाओ और उसके बचे को जो डर्म मै छुपा बैठा है उसे बचाले फ़ोन काटदिया , इससे पहले कोई अंदर आता अंकिता ने दुकान का शूटर उठाया और बहार की तरफ भागी दंगाइयों ने जैसे उससे भागते देखा उसके पीछे भागे और इक जगह जहा अंकिता ठोकर खा कर गिर पड़ी दंगाइयों ने कोई रेहम न खाते हुए उस मासूम माँ को बिच रोड जला डाला , दूसरी तरफ सलीम बाइक छोड़ दौड़ता हुआ बाजार की तरफ आरहा था के रस्ते मै उसे इक गिरी हुई स्कूटी मिले जिसका मालिक शायद स्कूटी छोड़ भागा होगा और दंगाइयों ने शायद उसे भी जला डाला होगा , सलीम फट से स्कूटी उठाई और बाजार की तरफ आरहा था रस्ते मै कुछ लोगो ने रोका पर शायद सलीम पोशाक देख वो समझ गए के वो उनका मुस्लिम भाई है उन्होंने पूछा कहा जाते हो सलीम ने कहा मेरा बेटा बाजार आया था अपनी माँ के साथ पर बिछड़ गया उसकी माँ तो रोती बिलखती घर पोहंच गई पर वो छूठ गया , दंगाइयों मै से इक ने कहा भाईजान फ़िक्र न करे अल्लाह के रेहम से आपका बचा सलामत होगा ये वो दंगाई थे जिन्होंने कितने बचे जला दिया पर यहाँ इंसानियत की बाते कर रहे थे क्यूंकि सिर्फ वो बचा अब उनके धर्म से था , सलीम ने कुछ न बोलते हुए वह से निकला और उसे बोहत ढूंढ़ने के बाद वैसी ही दुकान मिली जैसी अंकिता ने बताई थी वो दुकान मै गया और जैसे ही डर्म के ऊपर से दक्क्न हटाया जो दक्कन आधा खुला हुआ था ताकि निवान को साँस के लिए हवा मिलती रहे , सलीम ने निवान को देख झट्ट से बहार खिंचा और चूमना शरू करदिया निवान सेहमा हुआ था उससे जैसे इस वक़्त हर टोपी और कुर्ते पाजामे दाढ़ी वाला इंसान एक शैतान लग रहा था ,पर जैसे ही सलीम ने उसे गल्ले से लगाया और ठीक वैसे ही प्यार किया जैसे उसके पापा किया करते थे उससे एहसास हुआ शायद की दरिंदगी पोशाक मै नहीं इंसान मै होती है उस मासूम को ये बात समझने मै देर न लगी पर बहार वो दरिंदे इस बात को कैसे समझते जो बस कठपुतलिया बने कत्लेआम मचा रहे थे , सलीम ने निवान से कहा बेटा हम जब तक घर नहीं पोहचते रस्ते मै कोई तुम्हारा नाम पूछे तो सिर्फ अली बताना और मुझे अपना अब्बा निवान ने कहा अंकल मम्मी पापा कहा है सलीम ने कहा बेटा वो घर पोहंच गए पर तुम बस मेरी बात सुनो बेटा कुछ भी होजाये तुम्हे अपना नाम अली और मुझे अब्बा बतान है शायद अब उस मासूम निवान को भी समज आने लगा की जो अंकल कहरहे वोही करना सही है इक 6 साल का बच्चा उस वक़्त दुनिया के शायद सभी रंग देख रहा था पर फिर भी हिम्मत नहीं हार रहा था उसने सलीम से कहा अंकल आप चिंता मत करो मुझे पता है बहार कुछ गंदे लोग है जिन्हे शायद मुझसे और पापा मम्मी से कोई परेशानी है मै वही करूँगा जो अपने कहा ये बात सुन सलीम की आंखे बरगी वो रोने ही वाला था पर किसी तरीके से उसने अपने आपको रोका और वहा से बहार निकल स्कूटी स्टार्ट की और की घर तरफ चल पड़ा रस्ते मै उसने इक कटा हाथ देखा जिसमे उसने वही घडी देखि जो उसने कभी अपने दोस्त राहुल को गिफ्ट की थी वो रुकना चाहता था देखना चाहता पर जानता की इस वक़्त सिर्फ निवान को बचाना उसके लिए जरुरी है रास्ते मै बोहत से मुस्लिम गुट मिले पर किसी ने नहीं रोका और वो चलता गया इतनी देर मै उसने रस्ते मै दो चार और लाशें देखि इस बार लाशे कुर्ते पाजामे दाढ़ी वाले टोपी वाले लोगो की थी इससे पहले वो कुछ समझता उससे सामने से कुछ लोग भागते हुए उसकी तरफ नजर आते हुए दिखे जो सिर्फ जय श्री राम जय श्री राम का नारा लगारहे थे उन्होंने फट से सलीम की गिरबान पकड़ी और जमीन पर गिरा दिया सलीम देर न करते हुए उनसे कहा भाई मुझे काट दो मारदो पर इस बच्चे को छोड़ दो उनमे से इक दंगाई ने कहा अछा अब अपनों पे आयी तो पेर पड़ते हो जो हमारे मासूम बच्चे काटे वो , सलीम ने कहा भाई ये तुम्हारे ही धरम का है मै तो खुद इसे बचा के लाया हु दंगाई ने कहा पागल समझा है इसके कपडे देख ये कहा से हिन्दू लगता है , सलीम ने कहा भाई मेरी बात मानलो मै सच कहता हु ये मेरा बच्चा नहीं है मै हाथ जोड़ता हु तुम चाहे मेरे साथ जो मर्जी करलो पर इस मासूम को छोड़ दो , इतनी देर मै इक दंगाई ने फट से निवान को दबोच लिया और पूछा क्या बे क्या नाम है तेरा , मासूम निवान को क्या हिन्दू क्या मुस्लिम कुछ नहीं पता था उससे सिर्फ इतना पता था की बहार जो भी थे वो सब गंदे लोग थे उसके दिमाग मै सिर्फ इक बात ही थी की सलीम अंकल ने कहा था चाहे कुछ भी होजाये जो मैंने कहा है वही बोलना मासूम निवान ने अपना नाम अली बताया ये सुनते ही दंगाई ने सलीम के मुह्ह पर लात मारी और कहा झूठे तुम लोग मरने के ही लायक हो सलीम ने कहा नहीं भाई मै सच बोलरहा हु दूसरे दंगाई ने निवान से फिर पूछा ये जो आदमी है कौन है तेरानिवान ने झट्ट से कहा पापा है मेरे ये सुनते ही गुस्से मै आये दंगाई ने तलवार से बिना वक़्त गुजारे सलीम का गला काट डाला दूसरे दंगाई ने जैसे ही निवान का गला दबाने को पकड़ा तो उसके हाथ मै हनुमान जी का लॉकेट आगया जो शायद सलीम उतारना भूल गया था, दंगाई लॉकेट देख चौंक गया इक मुस्लिम बच्चे के गले मै हनुमान जी का लोकेट उसने झट्ट से बच्चे को निचे उतारा निवान रो रहा था और अचानक रोते रोते बोला सलीम अंकल उठो अंकल दंगाई सेहम गया और पूछा बेटा सुनो डरो मत बेटा बताओ तुमारा नाम क्या है रोते रोते उस मासूम ने कहा निवान दंगाई ने कहा ये कौन था और तुम्हारे मम्मी पापा कहा है निवान ने बताया की पापा बिछड़ गए थे मम्मी ने उसे डर्म मै छुपाया अंकल को फ़ोन किया और उसे कहा की अंकल आकर लेजाएंगे दंगाई ने कहा तो बेटा ये कपडे निवान ने बताया मम्मी ने जो कपडे अली के लिए थे वो मुझे पहना दिए दंगाई ने कहा अली कौन निवान ने कहा सलीम अंकल का बेटा , दंगाई की और साथी दंगाइयों की आँखे भर आयी और कोसने लग्गे की ये क्या पाप करदिया इक ऐसे इंसान को मार दिया उन्होंने जो हिन्दू ना होकर इक हिन्दू की जान बचा रहा था ज्यादा देर न लगी और दंगाइयों को ये बात समज आगयी उन्होंने निवान को उठाया और पूछा बेटा तुम्हे पता है तुमारा घर कहा है निवान ने सिर्फ इतना बताया की शिव मंदिर और मस्जिद के सामने , दंगाई को समज आगया की शहर मै एक ही ऐसी बस्ती है जहा मंदिर और मस्जिद साथ है उन्होंने देर न करते हुए बच्चे को वही सलीम के घर के बहार छोड़ दिया आज वो दंगाई जिन्होंने अंकिता और राहुल को मारा नजाने कहा है वो दंगाई जिन्होंने सलीम को मारा और बाद मै निवान को घर छोड़ न जाने कहा है पर हा आज भी निवान अली और शबनम एक ही घर मै साथ रह रहे है , हम सब लोगो के बिच मै ही रेहरहे है कुछ अंकित कुछ राहुल सलीम शबनम और वो दंगाई भी आशा करता हु इस कहानी के माद्यम से मै सिर्फ थोड़ा सा प्यार और बड़ा पाऊ , शुक्रिया वक़्त निकाल इससे पड़ने के लिए #Poetry

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इक दोस्ती ऐसी भी थी ( A Lesson From Riots, Friendship Has No Religion )


I wrote this with lot feelings please take some time out and read it if possible 

पूरी कहानी अनुशीर्षक मै पढ़े ( Read In Caption ) 
 #Genesis


Introduction 
इस कहानी को जब मैं लिख रहा था तो खुद मेरे जेहन मे कई सवालात थे मै उन दंगो के वक़्त वहा उस जगह पर तो नहीं था परन्तु सिर्फ उन दंगो के दृश्यों की कल्पना मात्र से ही मेरा ह्रदय डर और क्रोध से जाँझोड सा गया 
कुछ वक़्त बाद वहा कर्फुयु लगा और धीरे धीरे दंगे शांत होगए और शायद 14-15 साल होगए इस वाक्य को पर अब तक कोई फैसला नहीं आया और कुछ लोग जिनके घर उजड़े थे वो घर-बार छोड़ चले गए और कुछ जिनके पास अभी भी वहा रहने के इलावा कोई और चारा नहीं था वो वही उसी शहर मे जैसे तैसे अपना जीवन व्यतीत क्रर रहे है
मेरी कहानी भी कुछ ऐसे किरदारों से भरी जिनके बारे मै जानकर आपको एहसास होगा की जिन्हे लोग दंगो का नाम दे रहे थे वो कुछ और नहीं सिर्फ इक सियासी नंगा नाच था और कुछ भटकी हुई कठपुतलिया अपने कला निर्देशक के निर्देश मै सरेआम कत्लेआम कर रहे थे 
मै इस कहानी मै किसी भी विशेष दंगो का उल्लेख नहीं करूँगा क्यूंकि दंगे जो भी हुए सबका मकसद और कारंवा एक ही था 
ये कहानी दो ऐसे परिवारों की है जो ठीक आमने सामने रहा करते थे इक परिवार मुस्लिम तो दूसरा हिन्दू , ये इक बड़े शहर की छोटी सी बस्ती जहा लोग बोहत खुश रहते जिन्हे धर्म या जातपात से कोई वास्ता नहीं था कुछ था तो सिर्फ अपने अपने कामो से और इक दूसरे से के साथ प्यार से रहने मै , इस बस्ती मै त्यौहार तो ऐसे मनाये जाते थे जैसे सबके हो हम कह सकते ये बस्ती सच मै इक धर्मनिरपेक्ष बस्ती थी जो किसी सियासी हुक्कम की मोहताज नहीं थी .
तो अब बात करे इस कहानी के खास किरदारों की , इक परिवार का मुखिया सलीम था जिसकी एक बीवी शबाना और एक 7 साल का बेटा अली था , और दूसरा परिवार जहा का मुखिया राहुल बीवी अंकिता और बीटा निवान जो की करीब 5-6 साल की ही थी पर अली और उसकी कद काठी लगभग समान ही थी , दोनों परिवार ख़ुशी खुशी मिलजुलकर रहते थे राहुल और सलीम दोनों ही पड़े लिखे और अलग अलग प्राइवेट कंपनियों मै कुछ क्लेरिकल काम किया करते थे दोनों ही परिवारों मै इक गहरी दोस्ती थी
Story 
अब करते है कहानी की शरुआत , कुछ करीब 2 ही रोज बचे थे लगभग बक्र ईद आने को और मोहल्ले मे हलचल शरू हो चुकी थी लोगो ने तयारिया भी शरू करदी थी
राहुल और अंकिता हर ईद त्यौहार पर सलीम के बेटे के लिए नए कपडे लिया करते थे जो हमेश इक सफ़ेद कुरता पजामाँ , चप्पलें और इक सूंदर सी टोपी हुआ करती थी और ऐसे ही सलीम और शबाना भी दिवाली पर निवान के लिए नए कपडे और कुछ पटाखे मिठाईए लिया करते थे
उस रोज अंकिता ने राहुल को फ़ोन किया और कहा के आज जल्दी आना शाम को परसो ईद है हम अली के लिए कपडे ले लेंगे राहुल ने भी कहा ठीक तुम और निवान त्यार रहहना मे करिब 4 बजे तक आजाऊंगा और फिर सीधे बाजार चलेंगे 

बाजार बाजार लगभग 5-7 km ही दूर था तो करीब 4.45 के आस पास अंकिता राहुल और निवान बाजार पोहंच गए , बाजार मे त्यौहार की वजह से काफी भीड़ भी थी लोग इक दूसरे की लिए खूब खरीदारी कर रहे थे बाजार हिन्दू मुस्लमान किसी मे भेदभाव नहीं करता तो वहा उसदिन सभी थे हिन्दू मुस्लिम हर कोई खरीदारी कर रहा था तो कुछ लोग सिर्फ अपनी दुकानों पर कारोबार के लिए आये हुए थे, कुछ छोटे छोटे बचे माता पिता के साथ खाने पीने के लिए , उस बाजार मे सिर्फ और सिर्फ खुशमिजाज चेहरे दिख रहे थे लोग बाजार के किनारो पे लग्गे खाने पीने के ठेलो पर खानपान कर रहे थे सब बेखबर थे दिन दुनिया के झगड़ो से उस वक़्त हर कोई सिर्फ खुश था , जैसे दिन डलने लगा धीरे धीरे भीड़ काम होती रही , अचानक से शहर मे खबर फैली की फलाना जगह पर दो गुटों मे लड़ाई के कारन कोमी दंगे फ़ैलने की आशंका है , ये बात बाजार मे लोगो के कान मे भी पोहंची पर लगभग हर कोई बेचिंतित था इससे क्यूंकि सबको इक दूसरे पर भरोसा था और लगरहा था ऐसा कुछ नहीं होगा छोटी मोटी लड़ाई है सब सही होजाएगा, अंकिता फिर भी थोड़ा डरी और सेहम सी गई राहुल ने पूछ क्या हुआ तो उसने कहा उसे लगता है हमे घर चलना चाइये पर राहुल ने कहा डरो मत सब सही हम इतने सालो से यहाँ रेहराये है ये सब हमारे अपने है , जिस दुकान पर वो दोनों खड़े थे और अली का कुरता पजामा ले रहे थे उसके मालिक एक मुस्लिम ही थे उन्होंने अंकिता की बात सुनली और कहा भाभी जी डरिये मत यहाँ ऐसा कुछ नहीं होगा और जब तक हम है यहाँ कुछ नहीं हो सकेगा , अंकिता को होंसला हुआ थोड़ा

पर होनी कौन टाल सकता है टीवी पर अचानक इक खबर आयी की सुबह जो 2 मुस्लिम लड़के धार्मिक घुटो की लड़ाई मे घायल हुए थे उनकी हस्पताल मे मौत होगयी ये खबर आग की तरह पुरे शहर मे फ़ैल गई और ऐसा लगा जैसे ये सब कुछ पहले से ही तय था और कुछ गुट सिर्फ इस खबर के इन्तजार मे थे और खबर के आने के 20-25 मिंट के बितर ही शहर के इक भाग मे जैसे आग लग गई इससे पहले के बाजार मे खरीदारी मे व्यस्त लोगो को इसका पता चलता अचानक बाजार मे अल्ला हु अकबर अल्ल्हा हु अकबर की आवाज गूंजने लगी दूर से करीब 50-60 लोगो का गुट टोपिया पेनहे हाथो मे तलवारे पेट्रोल और मशाले लिए बजार मे टूट पड़े लोगो मे भगधड़ सी मच गई डर के मारे लोगो ने दुकाने बंद करदी और इससे पहले लोग भागते इस गुट ने दुकाने जलानी शरू करदी जहा भी उन्हें किसी के हिन्दू होने की पहचान मिली काटना मारना शरू करदिया , इसी भगदड़ मे राहुल अंकिता भी निवान को गोदी मे लिए बस्ती की तरफ भागना शरू होगये पर उसी वक़्त इक गुट ने उनका रास्ता रोका जिसमे दो लोग थे इक के हाथ मे तलवार और इक के हाथ मे पेट्रोल और मशाल राहुल ने जल्दी से अंकिता को निवान दिया और भागने को कहा वो रोती रोती पुत्रमोह मे वहा से दौड़पड़ी और भागते भागते कही कोने मे इक दुकान जो 20/20 की होगी खाली सी पड़ी थी बस उसमे कुछ बारे बारे पड़े थे इक बड़ा सा डर्म और उस दुकान के बहार ऊपर 786 और अल्हारखा शॉप, सेहमी हुयी अंकिता को ये एहसास होगया था की की अब तक उन दरिंदो ने राहुल को छोड़ा नहीं होगा रोतेरोते उसे सलीम की याद आई उसने कॉल कर सारा हाल बताया सलीम भाई ने बिना वक़्त ख़राब किये पूछा भाबी आप कहा हो बताओ मे आरहा हु , अंकिता ने बताया की कोई दुकान है और उसके ऊपर जो लिखा था वो पहचान मे बताया 

जैसे ही फ़ोन रखा बहार से अचानक से तेज तेज आवाजे आनि शरू होगी आल्हा हु अकबर अंकिता सेहम गई उसे ऐसा लगा जैसे अब शायद सब ख़तम होजाएगा अचानक उसकी नजर उस लिफ़ाफ़े पर पड़ी जो उस वक़्त भी निवान ने हाथ मै पकड़ रखा था उसने जल्दी से वो लिफाफा लिए खोला और निवान के कपडे बदललेन लगी तभी निवान ने अचानक जिद्द करनी शरू करदी की मम्मी ये तो अली के कपडे आप मुझे क्यों पहना रहे गंदे होजाएंगे , अंकिता ने उसके माथे पर चूमा और कहा बेटा बस तू ये कपडे पहने ले तुजे जिस दिन इस दुनिया के असूल समज आएंगे तुझे पता लग जाएगा मैंने ऐसा क्यों किया , बहार चीखो का शोर और गूंजने लगा और अंकिता के शरीर मै अजीब सी कंपन होने लगी जो शायद उसे किसी और बड़ी अनहोनी का अंदेशा दे रही थी , अंकिता ने बिना वक़्त बर्बाद किये जल्दी से निवान के कपडे बदले और इक दम बहार से आवाज आई के भाई जान वो दुकान देखो उसका आधा शटर खुला है शायद वहा कोई है तो किसी दूसरे ने कहा कोई नहीं वो अपने किसी मुस्लमान भाई की है छोड़ो उसे और कोई किसी हिन्दू की दूकान देखो मिले तो जला दो , सुनकर अंकिता को थोड़ा साँस आया की शायद अब कोई इस दूकान पर न आये , पर अनहोनी को शायद कोई नहीं टाल सकता अचानक अंकिता के फ़ोन पर रिंगटोन बजी जिसपर सलीम कॉल कर रहा था उस वक़्त बहार दो दंगाई उसी दुकान के बिलकुल पास मै खून मै लत पत् गांझे वाली सिगरेट बर रहे थे एक ने अचानक रिंगटोन सुनी जिसमे गायत्री मन्त्र का जाप हो रहा था उसने इक दम से साथ वाले को कहा के पक्का कोई अंदर है तभी फ़ोन बजरहा है तो दूसरे ने कहा भाईजान ने कहा न किसी मुस्लिम भाई की दूकान को नुक्सान नहीं पोहचना और हो सकता है दुकान के मालिक का फ़ोन भागदौड़ मै गिरगया होगा, पहले ने कहा बेवकूफ कोई मुस्लिम अपने फ़ोन मै गायत्री मन्त्र को क्यों रिंगटोन बनाएगा इतने मै फ़ोन दुबारा बजा अंकिता फ़ोन नहीं काट सकती थी क्यूंकि इससे साबित होजाता की अंदर कोई है , दंगाइयों मै से दूसरे ने कहा अरे रुक यार पहले ये गांझे वाली सिगरेट फुकलते है फिर काट देंगे जो भी मिला पहले ने कहा हा यार सही कहा वैसे भी जो होगा बहार तो आएगा और आया भी तो हम कौन सा छोड़देंगे , अंकिता ये सब सुन रही थी उसने देर ना करते हुए निवान को पास पड़े इक डर्म मै छुपे रहने को कहा और बोली जब तक सलीम अंकल न आये बहार ना निकले , मासूम निवान को कुछ समज नहीं आरहा था पर मम्मी की बात मान वो बिचारा ड्रम मै गुसगया उसका माँ से आखिरी सवाल था मम्मी पापा कहा है और आप कहा जा रहे हो , अंकिता न भरी आँखों से और भारी गले से कहा बेटा पापा ठीक है पर शायद वो गुम हो गये मै उन्हें ढूंढ़ने जा रही हु और अभी बस अंकल आएंगे तुजे घर लेजेंगे हम वही मिलेंगे पर बेटा तुजे मेरी कसम जब तक अंकल न आये तू बहार मत आइयो मासूम ने सेहमी सी आवाज मै कहा मम्मी आप चिंता मत करो मै तब तक नहीं आऊंगा जब तक अंकल नहीं आते, अंकिता जानती थी के अगर वो बहार नहीं गई तो वो लोग अंदर आएंगे और शायद तो वो और निवान दोनों ना बचे,
सलीम जो बाइक पर आरहा था उसदिन किस्मत ख़राब ऐसी हुई की उसकी बाइक बिच रोड पर पेंचर होगी और अगर वो पैदल आता तो बोहत देर लगजाति वो जनता था की उसका जल्दी पोहंचना बोहत जरुरी यही बात वो अंकिता को बताना चाहता था और दंगो की आग अब तक उस बस्ती तक नहीं पोहंची थी पर लोग सेहम चुके थे और दुकाने घर सब बंद थे सलीम बिच रस्ते पर खड़ा इसी सोच मै था वो क्या करे के इतने मै अंकिता का फ़ोन आया और उसने बताया की अब शायद वो न बचे पर उसके बच्चेको सलीम बचाले इससे पहले सलीम कुछ बताता या पूछता अंकिता ने ये कहकर की अब वक़्त नहीं है अब बस आजाओ और उसके बचे को जो डर्म मै छुपा बैठा है उसे बचाले फ़ोन काटदिया , इससे पहले कोई अंदर आता अंकिता ने दुकान का शूटर उठाया और बहार की तरफ भागी दंगाइयों ने जैसे उससे भागते देखा उसके पीछे भागे और इक जगह जहा अंकिता ठोकर खा कर गिर पड़ी दंगाइयों ने कोई रेहम न खाते हुए उस मासूम माँ को बिच रोड जला डाला , दूसरी तरफ सलीम बाइक छोड़ दौड़ता हुआ बाजार की तरफ आरहा था के रस्ते मै उसे इक गिरी हुई स्कूटी मिले जिसका मालिक शायद स्कूटी छोड़ भागा होगा और दंगाइयों ने शायद उसे भी जला डाला होगा , सलीम फट से स्कूटी उठाई और बाजार की तरफ आरहा था रस्ते मै कुछ लोगो ने रोका पर शायद सलीम पोशाक देख वो समझ गए के वो उनका मुस्लिम भाई है उन्होंने पूछा कहा जाते हो सलीम ने कहा मेरा बेटा बाजार आया था अपनी माँ के साथ पर बिछड़ गया उसकी माँ तो रोती बिलखती घर पोहंच गई पर वो छूठ गया , दंगाइयों मै से इक ने कहा भाईजान फ़िक्र न करे अल्लाह के रेहम से आपका बचा सलामत होगा ये वो दंगाई थे जिन्होंने कितने बचे जला दिया पर यहाँ इंसानियत की बाते कर रहे थे क्यूंकि सिर्फ वो बचा अब उनके धर्म से था , सलीम ने कुछ न बोलते हुए वह से निकला और उसे बोहत ढूंढ़ने के बाद वैसी ही दुकान मिली जैसी अंकिता ने बताई थी वो दुकान मै गया और जैसे ही डर्म के ऊपर से दक्क्न हटाया जो दक्कन आधा खुला हुआ था ताकि निवान को साँस के लिए हवा मिलती रहे , सलीम ने निवान को देख झट्ट से बहार खिंचा और चूमना शरू करदिया निवान सेहमा हुआ था उससे जैसे इस वक़्त हर टोपी और कुर्ते पाजामे दाढ़ी वाला इंसान एक शैतान लग रहा था ,पर जैसे ही सलीम ने उसे गल्ले से लगाया और ठीक वैसे ही प्यार किया जैसे उसके पापा किया करते थे उससे एहसास हुआ शायद की दरिंदगी पोशाक मै नहीं इंसान मै होती है उस मासूम को ये बात समझने मै देर न लगी पर बहार वो दरिंदे इस बात को कैसे समझते जो बस कठपुतलिया बने कत्लेआम मचा रहे थे , 
सलीम ने निवान से कहा बेटा हम जब तक घर नहीं पोहचते रस्ते मै कोई तुम्हारा नाम पूछे तो सिर्फ अली बताना और मुझे अपना अब्बा निवान ने कहा अंकल मम्मी पापा कहा है सलीम ने कहा बेटा वो घर पोहंच गए पर तुम बस मेरी बात सुनो बेटा कुछ भी होजाये तुम्हे अपना नाम अली और मुझे अब्बा बतान है शायद अब उस मासूम निवान को भी समज आने लगा की जो अंकल कहरहे वोही करना सही है इक 6 साल का बच्चा उस वक़्त दुनिया के शायद सभी रंग देख रहा था पर फिर भी हिम्मत नहीं हार रहा था उसने सलीम से कहा अंकल आप चिंता मत करो मुझे पता है बहार कुछ गंदे लोग है जिन्हे शायद मुझसे और पापा मम्मी से कोई परेशानी है मै वही करूँगा जो अपने कहा ये बात सुन सलीम की आंखे बरगी वो रोने ही वाला था पर किसी तरीके से उसने अपने आपको रोका और वहा से बहार निकल स्कूटी स्टार्ट की और की घर तरफ चल पड़ा रस्ते मै उसने इक कटा हाथ देखा जिसमे उसने वही घडी देखि जो उसने कभी अपने दोस्त राहुल को गिफ्ट की थी वो रुकना चाहता था देखना चाहता पर जानता की इस वक़्त सिर्फ निवान को बचाना उसके लिए जरुरी है रास्ते मै बोहत से मुस्लिम गुट मिले पर किसी ने नहीं रोका और वो चलता गया इतनी देर मै उसने रस्ते मै दो चार और लाशें देखि इस बार लाशे कुर्ते पाजामे दाढ़ी वाले टोपी वाले लोगो की थी इससे पहले वो कुछ समझता उससे सामने से कुछ लोग भागते हुए उसकी तरफ नजर आते हुए दिखे जो सिर्फ जय श्री राम जय श्री राम का नारा लगारहे थे उन्होंने फट से सलीम की गिरबान पकड़ी और जमीन पर गिरा दिया सलीम देर न करते हुए उनसे कहा भाई मुझे काट दो मारदो पर इस बच्चे को छोड़ दो उनमे से इक दंगाई ने कहा अछा अब अपनों पे आयी तो पेर पड़ते हो जो हमारे मासूम बच्चे काटे वो , सलीम ने कहा भाई ये तुम्हारे ही धरम का है मै तो खुद इसे बचा के लाया हु दंगाई ने कहा पागल समझा है इसके कपडे देख ये कहा से हिन्दू लगता है , सलीम ने कहा भाई मेरी बात मानलो मै सच कहता हु ये मेरा बच्चा नहीं है मै हाथ जोड़ता हु तुम चाहे मेरे साथ जो मर्जी करलो पर इस मासूम को छोड़ दो , इतनी देर मै इक दंगाई ने फट से निवान को दबोच लिया और पूछा क्या बे क्या नाम है तेरा , मासूम निवान को क्या हिन्दू क्या मुस्लिम कुछ नहीं पता था उससे सिर्फ इतना पता था की बहार जो भी थे वो सब गंदे लोग थे उसके दिमाग मै सिर्फ इक बात ही थी की सलीम अंकल ने कहा था चाहे कुछ भी होजाये जो मैंने कहा है वही बोलना मासूम निवान ने अपना नाम अली बताया ये सुनते ही दंगाई ने सलीम के मुह्ह पर लात मारी और कहा झूठे तुम लोग मरने के ही लायक हो सलीम ने कहा नहीं भाई मै सच बोलरहा हु दूसरे दंगाई ने निवान से फिर पूछा ये जो आदमी है कौन है तेरानिवान ने झट्ट से कहा पापा है मेरे ये सुनते ही गुस्से मै आये दंगाई ने तलवार से बिना वक़्त गुजारे सलीम का गला काट डाला दूसरे दंगाई ने जैसे ही निवान का गला दबाने को पकड़ा तो उसके हाथ मै हनुमान जी का लॉकेट आगया जो शायद सलीम उतारना भूल गया था, दंगाई लॉकेट देख चौंक गया इक मुस्लिम बच्चे के गले मै हनुमान जी का लोकेट उसने झट्ट से बच्चे को निचे उतारा निवान रो रहा था और अचानक रोते रोते बोला सलीम अंकल उठो अंकल दंगाई सेहम गया और पूछा बेटा सुनो डरो मत बेटा बताओ तुमारा नाम क्या है रोते रोते उस मासूम ने कहा निवान दंगाई ने कहा ये कौन था और तुम्हारे मम्मी पापा कहा है निवान ने बताया की पापा बिछड़ गए थे मम्मी ने उसे डर्म मै छुपाया अंकल को फ़ोन किया और उसे कहा की अंकल आकर लेजाएंगे दंगाई ने कहा तो बेटा ये कपडे निवान ने बताया मम्मी ने जो कपडे अली के लिए थे वो मुझे पहना दिए दंगाई ने कहा अली कौन निवान ने कहा सलीम अंकल का बेटा , दंगाई की और साथी दंगाइयों की आँखे भर आयी और कोसने लग्गे की ये क्या पाप करदिया इक ऐसे इंसान को मार दिया उन्होंने जो हिन्दू ना होकर इक हिन्दू की जान बचा रहा था ज्यादा देर न लगी और दंगाइयों को ये बात समज आगयी उन्होंने निवान को उठाया और पूछा बेटा तुम्हे पता है तुमारा घर कहा है निवान ने सिर्फ इतना बताया की शिव मंदिर और मस्जिद के सामने , दंगाई को समज आगया की शहर मै एक ही ऐसी बस्ती है जहा मंदिर और मस्जिद साथ है उन्होंने देर न करते हुए बच्चे को वही सलीम के घर के बहार छोड़ दिया 

आज वो दंगाई जिन्होंने अंकिता और राहुल को मारा नजाने कहा है वो दंगाई जिन्होंने सलीम को मारा और बाद मै निवान को घर छोड़ न जाने कहा है पर हा आज भी निवान अली और शबनम एक ही घर मै साथ रह रहे है , हम सब लोगो के बिच मै ही रेहरहे है कुछ अंकित कुछ राहुल सलीम शबनम और वो दंगाई भी 

आशा करता हु इस कहानी के माद्यम से मै सिर्फ थोड़ा सा प्यार और बड़ा पाऊ , शुक्रिया वक़्त निकाल इससे पड़ने के लिए


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