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DR. LAVKESH GANDHI

प्लेटफॉर्म
 
खुले आसमान के नीचे
प्लेटफार्म जहांँ मैं सोता हूंँ 
जहांँ नित्य लोग आते हैं
और फिर चले जाते हैं
यहांँ के लोग हैं अजनबी
साथ तो रहते हैं मगर
हैं एक दूसरे से अनजान 
इसे ही कहते हैं प्लेटफार्म 


  #प्लेटफार्म #
#yqbaba #yqdidi 
#yqquotes

गौरव गोरखपुरी

#MeraShehar 10 गुजर रहे थे जब तेरे शहर से काम लेना तो था मुझे सब्र से मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

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गुजर रहे थे जब तेरे शहर से
काम लेना तो था मुझे सब्र से
मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी
ऐसा लगा कि तू मुझे छोड़ के जा रही है
और बड़ी जोर से तेरी याद आने लगी

बाहर आने को आतुर थी , दिल की धड़कन ,धड़क धड़क कर 
मगर बेचारी रह गई , सीने के अंदर तड़प तड़प कर

सांसे चल रही थी ऐसी , जैसे कि कह रही हो 
कि ट्रेन से उतर जाओ , वो यहीं कहीं तो होगी 
जैसे ही मै हाथ बढ़ाऊंगा ,तुम मेरे साथ चल दोगी
हाल रूह का ऐसा था, जैसे इलाज से मिलने आया रोगी

तभी गले लग कर रोते देखा , मैंने एक जोड़े को प्लेटफार्म पर
हाथ छुड़ा कर जाते देखा ,लड़की को मैंने प्लेटफॉर्म पर 

फिर हां ना की खींच तान में , ट्रेन काफी आगे निकल गई

चलो , अच्छा ही हुआ ,जो उतरे नहीं थे हम ट्रेन से
कैसे कैसे खुद को सम्हाला था तुम्हारे जाने के बाद 
फिर हो जाते हम पहले से - बेचैन से 

फिर वादा खुद से कर आए हम ,गुजरते हुए तेरे शहर से
कि जोड़ेंगे खुद से ,याद किसी और की, क्योंकि जहर को काटते हैं जहर से #MeraShehar 10 

गुजर रहे थे जब तेरे शहर से
काम लेना तो था मुझे सब्र से

मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

गौरव गोरखपुरी

#OpenPoetry तेरा शहर गुजर रहे थे जब तेरे शहर से काम लेना तो था मुझे सब्र से मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी

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#OpenPoetry  
तेरा शहर

गुजर रहे थे जब तेरे शहर से ,
काम लेना तो था मुझे सब्र से ।
मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी ,
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी ।

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी ,
ऐसा लगा कि तू मुझे छोड़ के जा रही है..
और बड़ी जोर से तेरी याद आने लगी ।
बाहर आने को आतुर थी , दिल की धड़कन ,धड़क धड़क कर ।
मगर बेचारी रह गई , सीने के अंदर तड़प तड़प कर ।

सांसे चल रही थी ऐसी , जैसे कि कह रही हो - 
कि ट्रेन से उतर जाओ गौरव , वो यहीं कहीं तो होगी ।
जैसे ही मै हाथ बढ़ाऊंगा , तुम मेरे साथ चल दोगी ।
हाल रूह का ऐसा था - जैसे इलाज से मिलने आया रोगी ।

तभी गले लग कर रोते देखा , मैंने एक जोड़े को प्लेटफार्म पर ।
हाथ छुड़ा कर जाते देखा ,लड़की को मैंने प्लेटफॉर्म पर ।
फिर हां ना की खींच तान में , ट्रेन काफी आगे निकल गई ।
मगर तू तो इस शहर में नहीं, कैसे ये बात मेरे जहन से निकल गई ।

चलो , अच्छा ही हुआ ,जो उतरे नहीं थे हम ट्रेन से ।
कैसे कैसे खुद को सम्हाला था , तुम्हारे जाने के बाद , 
फिर हो जाते हम पहले से - बेचैन से ।

फिर वादा खुद से कर आए हम ,गुजरते हुए तेरे शहर से ।
कि जोड़ेंगे खुद से ,याद किसी और की, क्योंकि जहर को काटते हैं जहर से ।। #OpenPoetry तेरा शहर 
गुजर रहे थे जब तेरे शहर से
काम लेना तो था मुझे सब्र से

मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी

Shreya Tripathi

#safar.. #notojo #dilse #Poetry #Ek mulakat

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वो ट्रेन वाली मुलाकत 
वो हल्की हल्की सी बात
एक दूसरे को ढूंढना
और वो आंखमिचोली वाली अदा
वो किसी एक के प्लेटफार्म पर उतरने पर
अजीब सी बेचैनी
जैसे कोई राज सिमरन से जुदा हो रहा
.......
वो छुप छुप के देखना
इश्क़ की नजाकत कहु या सिर्फ इत्तेफाक
कोई न कोई लव स्टोरी बन के खत्म हो रही है इस प्लेटफार्म से उस प्लेटफ़ॉर्म तक.... #NojotoQuote #safar..
#notojo
#dilse
#poetry
#ek mulakat

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