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@thewriterVDS
अमावस की रात थी। मैं बिस्तर पर जा रहा था। तभी अचानक एक ऐसा वाकया हुआ की आपकी रूह कांप जाएगी। हुआ यूं, जब मैं बिस्तर पर गया तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मैंने दरवाजा खोला, बाहर कोई नहीं था। थोड़ी देर में फिर दरवाजे पर किसी न दस्तक दी। मैंने दरवाजा खोला, वहां कोई नहीं था। मैं जैसे ही दरवाजा बंद करने को सोच ही रहा था कि मेरा ध्यान नीचे गया वहां एक बिल्ली थी जिसने दरवाजे को knock किया था। मैं थोड़ी देर के लिए डर गया था कि आज अमावस की रात है कोई भूत-पिशाच तो नहीं क्योंकि मैंने ऐसी बहुत सारी कहानियां सुनी हैं जिसमें ऐसा होता है।😀😀😀😁😁 #अमावस की #रात थी। मैं #बिस्तर पर जा रहा था। तभी #अचानक एक ऐसा #वाकया हुआ की आपकी #रूह #कांप जाएगी। हुआ यूं, जब मैं बिस्तर पर गया तभी #दरवाजे पर किसी ने #दस्तक दी। मैंने दरवाजा खोला, #बाहर कोई नहीं था। थोड़ी #देर में फिर दरवाजे पर किसी न दस्तक दी। मैंने दरवाजा #खोला, वहां कोई नहीं था। मैं जैसे ही दरवाजा #बंद करने को सोच ही रहा था कि मेरा #ध्यान नीचे गया वहां एक #बिल्ली थी जिसने दरवाजे को #knock किया था। मैं थोड़ी देर के लिए #डर गया था कि #आज अमावस की रात है कोई #भूत-पिशाच तो नहीं क्योंकि मैंने ऐ
रोहित 'हीरू' मिश्रा
जब कोई पहली मुलाकात बताता है मेरा दिल भी जोर से धड़क जाता है मचल जाता हूं लम्हा फरियाद करके ज़ेहन में कोई वाकया याद आता है कभी,,, मैं भी गुज़रा था उसी राह से जवां उम्र की कातिल - हसीं रात से नज़र ने नज़र से, क्या कह दिया ? कैसे बताऊं ? 'हीरू' वो शुरुआत से गुस्ताख़ी निग़ाहों की क्या कर गई ? मैंने समझा मरीज-ए-दवा कर गई हकीम को बुलाओ कोई ऐ ज़ालिमों यह तो इश्क़-ए-उल्फ़त ख़ता कर गई रोहित मिश्रा 'हीरू' ©Rohit Mishra #PahliMulakat #वाकया #फरियाद #कातिल #गुस्ताख़ी #निगाहें #मरीज़ #हकीम
Rajeev Pandey
इक वाकया सी ज़िन्दगी, और मै किसी किरदार सा वो ना गुजरी फिर कभी....जिसे परखता चला गया #जिंदगी #वाकया #परखना
देवल कुमार
वो ख़ुशबू गुलों की थी या उसके सुर्ख़ लबों की, ये वाकया आज तक हमसे बा-वाकया न हो सका...!! #लब #गुलाब #शायरी #nojoto #hindi
Pnkj Dixit
वाकया...... हकीकत में पिरोकर कल्पना सजीव रुप साकार करूं दो दिन पहले बीते पलों को फिर से आंखों के समक्ष धरूं जून दोपहरी तारीख चौबीस दिन रविवार शुभ रहा गांव के तांगे वाले अड्डे पर दो नन्हें मुन्नों को मस्ती करते देखा अधनंगे बदन , रजकण से नहाएं हुए एक दूजे संग खेल रहे सब चिंताओं से दूर नौनिहाल हंसते खिलखिलाते , मिट्टी के ढेले उठाए गंदे नाले में फेंकते जाते उधर से गुजरते एक दो राहगीरों ने उनको देखा , रोका भी वो तो अपनी धुन के पक्के बचपन को बचपन जैसा जी रहे थे कुछ बच्चे जो पास खड़ी गाड़ी में बैठे उनको देख देख कर रीझ रहे चेहरे के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे ..... काश ! वहीं पास में बैठी उनकी मम्मी आंखों आंखों में ही डरा धमका रही थी एक जगह दो बचपन मैं देख रहा था मंद मंद मुस्कुरा कर बस यही सोच रहा था ... आखिर कौन सुखी है ? गरीबी का बचपन या अमीरी का ? इसी धुन में मस्त होकर गरीबी के आजाद चिंता रहित बचपन को अपने स्मृतिपटल पर अंकित कर गन्तव्य की ओर प्रस्थान किया इस खूबसूरत वाकया को याद करते हुए आनन्द से भर जाता हूं । २६/०६/२०१८ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा 'बेधड़क' वाकया...... हकीकत में पिरोकर कल्पना सजीव रुप साकार करूं दो दिन पहले बीते पलों को फिर से आंखों के समक्ष धरूं जून दोपहरी तारीख चौबीस दिन रविवार शुभ रहा
आदी अधूरा
मुझे लगा मेरी जिन्दगी में दौलत शौहरत सब तू है बेहिसाब खुश था मैं और मेरा मौसम पर तू तो फरेब का किस्सा निकली जैसे हाथो से हो रेत फिसली मेरी जिन्दगी का सबसे यादगार वाकया तू है मज़ाक है क्या आखिर मुझे बर्बाद किया है तूने #Romio #वाकया बर्बादी का
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