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दिनेश कुशभुवनपुरी
वर्णिक छंद: अरसात सवैया– रुद्र 211 211 211 211 211 211 211 212 द्वार खड़ा प्रभु दास तुम्हार सँभारि हमें फिर से अब लीजिए। पीर बढ़ी तन की मन की सहि जात नहीं अब तो कुछ कीजिए। फैल रहा विष जीवन में फिर रूद्र पधारि हलाहल पीजिए। जंग कहाँ कब जीत सकूँ तुम जो प्रभु साथ हमार न दीजिए॥ Dinesh Pandey ©दिनेश कुशभुवनपुरी #वर्णिक_छंद #अरसात_सवैया #रुद्र #हलाहल -"Richa_Shahu" Mysterious Girl शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) Alone Amit Raj Guru Kanu Priya R K Mishra " सूर्य " poonam atrey gaTTubaba एक अजनबी वरुण तिवारी Anshu writer ~pragya Subhash Chandra Asmita Singh {[PREET]} सुनील 'विचित्र' PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Suhana parvin Anupriya Diksha Singh Babli Gurjar Richa Mishra kh अmit कोठारी "राही" Madhusudan Shrivastava मनोज मानव करन सिंह परिहार Puja Udeshi विवेक ठाकुर "शाद" Anjali Srivastav kanta kumawat
Rudra Pratap Pandey
इन हवाओं के संग मैं गुजर जाऊंगा मैं वो बिता लम्हा हूं ना वापस आऊंगा तेरे यादों में चंद लम्हा छोड़ जाऊंगा ए दिले दिलदार वापस ना आऊंगा क्या अभी भी इख्तियार (पसंद) हूं तुझे मैं नही तो यार स्मृति से विसरा दे मुझे तु मुझे खुद ही पता नही किधर को मैं जाऊंगा कहीं वापस आऊंगा या मैं भटक जाउंगा छोड़ कर एक दिन सबको चला जाउंगा इन हवाओं के संग मैं बहता चला जाउंगा मैं वो बिता लम्हा हूं ना वापस आऊंगा 🌟 ©Rudra Pratap Pandey #walkingalone #रुद्र की शायरी
अविनाश कुमार
आसाँ नहीं है, सब समेट कर समुद्र हो जाना बहुत ही जटिल है, महादेव का रुद्र हो जाना ॥ हर हर महादेव ॥ महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ . समुद्र होना आसान नहीं होता है, पानी के साथ-साथ उसे और भी बहुत सारी चीजों को समेट कर अपने अंदर रखना पड़ता है, कुछ व्यर्थ तो कुछ मूल्यवान। ठीक उसी तरह रुद्र होना भी बहुत जटिल है। भगवान शिव के रूद्र रूप को पालनहार और संहारक दोनों ही संज्ञा प्राप्त है। रुद्र संहार करते हैं पाप का, बुराइयों का और साथ ही पालन भी करते हैं अपनों का, चिंता और दुखों का अंत कर के। वो सबकुछ अपने अंदर समेट कर सृष्टि का संतुलन बनाए रखते हैं। ~ अविनाश “कर्ण” .
Rudra Pratap Singh
न नेता ,न चुनाव, न रैली न गाड़ी से मतलब है। साहब गरीबों को बस अपनी दिहाड़ी से मतलब है। #रुद्र प्रताप सिंह# ©Rudra Pratap Singh #Struggle
Rudra Pratap Singh
सोचा था वो मिलेंगे तो ढेरों बातें करूंगा, सामने आए तो खुद को ही भूल बैठे हम!! #रुद्र प्रताप सिंह# ©Rudra Pratap Singh #Heart
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। नमस्ते भवभामाय नमस्ते भवमन्यवे। नमस्ते अस्तु बाहुभ्यामुतो त इषवे नमः ॥ हे क्रोधरूप रुद्रदेव! आपके प्रति हमारा प्रणाम है । हे नीलकण्ठ रुद्र! आपकी दोनों भुजाओं और उनमें धारण किये हुए बाणों को प्रणाम । हे कैलासपति ! आप पर्वत पर रहते हुए भी सबका मंगल करते हैं। हे गिरित्र (पर्वतों के रक्षक) रुद्रदेव! दुष्टों का संहार करने के लिए जिस बाण को आप धारण किये हुए हैं, उस बाण को हम मनुष्यों के लिए कल्याणप्रद बनाएँ। उससे हमारे स्वजनों का संहार न करें ॥ O wrathful Rudradev! We salute you. Hey Neelkanth Rudra! Greetings to both your arms and the arrows held in them. O Kailasapati! Even when you are on the mountain, you do everything. O Giritra (protector of mountains) Rudradev! To destroy the evil, the arrow which you are wearing, make that arrow beneficial to humans. Do not kill our relatives with it. ( नीलरुद्रोपनिषद् १.४ ) #नीलरुद्रोपनिषद् #शिव #शिवरात्रि #रुद्र #नीलकंठ #shiva
Jay Trivedi
इस रात की तन्हाई में नजाने क्यों ये मायूसी सी छायी हैं, पलके जुकाये में सोया हूँ पर कम्बख्त ये नींद नही आयी हैं। गुनगुनाती रहती हैं यूँ तो हज़ारो पंक्तिया इस चंचल मन में, पर ज़ेहन में जो बात हैं वो फिरभी कलम तक नहीं आयी हैं। लगता हैं कुछ स्पर्धा सी चल रही हो ये मेरे दिमाग में, मगर आज भी ये नींद मेरे खयालो से जीत नही पायी हैं। हर मेरी करवट के साथ एक नया सा खयाल आ जाता हैं, जैसे मेरे इस मन पर अनजान खयालो ने कुंडली जमाई हैं। मुख़्तसर सी हो गयी हो इन दिनों रातो की ये नींद मेरी और पूरी रात जैसे "रुद्र" मेरी बेखयाली में खयाली हैं। - जय त्रिवेदी ("रुद्र") #खयाली
Rudranshu shukla
दिलो में कुछ राज यू दबा के रखते हो,रुद्र जब से तुम अल्लाहाबाद रहते हो।। मुस्कराया में कहा-- नशे है हमारी यू ही राज खोलती है . तुम परेशान हो ये फजा बोलती है।. इन कोमल लफ्जो पे मत जाओ जालिम ये राज नहीं केवल अन्दाज बोलती है।। रुद्र ।। #allahabad#love#pyar#praygraj#prayag#gangayamuna#sangam#up
Jay Trivedi
"मेरे अल्फ़ाज़" कोई पूछे की में ग़ज़लों के ये अल्फ़ाज़ कहा से लाया हूँ, ये तो मेरे दिल के अल्फ़ाज़ हैं जो कागज़ में समाया हुँ| कुछ पुरानी मीठी यादें हैं, कुछ घाव हैं इस पागल दिल के, वर्ना यूँही तो नही इन शायरों की ज़मात मे में समाया हुँ। ग़ज़लों के सिवा नही हैं कोई अपना, समजा लिया हैं खुद को, तभी तो इस मुशायरे में अपनी तन्हाइयो की पेशकश लाया हुँ। तू खूब करले सितम ऐ ज़माने ये मेरे शायर दिल पर, इन गहरे घावो से ही तो में अभी खूब नाम कमाया हुँ! खौफ नही हैं किसीका मेरे इन बेखौफ अल्फाज़ो को, तभी तो 'रुद्र' में ऐसा शायर हुँ जो अल्फाज़ो में समाया हुँ। - जय त्रिवेदी ("रुद्र") #मेरे_अल्फ़ाज़