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Dr Mahesh Kumar White

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पूर्वार्थ

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Kareem Ali

जैसे ही आती हैं पटरी पर #जिंदगी की #रेलगाड़ी.. थोड़ी ही दूर चलते ही #धोखेबाज़ लोग, #चैन खींच लेंते हैं

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जैसे ही आती हैं पटरी पर जिंदगी की रेलगाड़ी..
थोड़ी ही दूर चलते ही धोखेबाज़ लोग,
चैन खींच लेंते हैं

©Kareem Ali जैसे ही आती हैं पटरी पर #जिंदगी की #रेलगाड़ी..
थोड़ी ही दूर चलते ही #धोखेबाज़ लोग,
#चैन खींच लेंते हैं

Rashi d

#रेलगाड़ी को बचाने में प्राण देने वाला वाला बालक #Safar2020

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#sParihar

मन की रैलगाड़ी.... #poem

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सबको अपने घर... गाँव... और दूर-दूर तक पहुँचाती है 
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है
कभी आवाज करके जोरों की... बहुत खूब डराती है
निकले बगल से... सब डर जायें...ऐसी सीटी बजाती है
कभी आराम से निकलकर... आगे ही चली जाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है

कभी समय पर... कभी देर ही... पर जरूर आ जाती है
आकर हम सबके मन में... जाने की उम्मीद जगाती है
कभी-कभी देरी से आकर... समय पर पहुंचाती है 
पहुंचे सब.. जहां जाना हो... यही आस दिखलाती है
बैठकर गाड़ी में फिर सब यात्री... यही बात दोहराते हैं
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है

सफर यहाँ का सबको भाता... और सुकून दे जाता है
तेज चलना इसका अंदाज... सबको ही रास आता है
अगर थोड़ा भी निर्देश... रास्ता खाली मिले तो 
बहुत तेज.. शांति से चलकर... समय रहते पहुँचाती है
पर रास्ता व्यस्त हुआ तो... फिर सबको बहुत रुलाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है 

कम खर्च में इतनी सुविधा... भला कौन दे जाता है? 
सभी यात्रियों का ठीक से ध्यान भला कौन रख पाता है 
कभी हमारी लापरवाही... हमपे ही भारी पड़ जाती है
थोड़ी जल्दबाजी करने से एक बड़ी दुर्घटना हो जाती है 
चलें थोड़ा ध्यानपूर्वक... ताकि अनहोनी ना होने पाए
समय पर पहुचें सब... बस यही बात याद दिलाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है मन की रैलगाड़ी....

dayal singh

bachpan ke din

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जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

Mo k sh K an

चाय की प्याली के खड़खड़ाने से 
रेलगाड़ी का पटरी पटकता शोर दबता चला गया 
ना जाने क्यूँ मैंने दो प्यालीयाँ मांगा ली 

शायद बिस्कुट देख कर बहक गया था
बिस्कुट, जो तुम अक्सर चाय में डूबा कर खाती थीं
मैंने भी कोशिश की, मगर 
मेरा बिस्कुट
मेरे वजूद की तरह चाय में घुल गया

तुम साथ होती थी तो हर सफ़र मुकम्मल था
तुम्हारे बाद, मंज़िल भी तलाश है
हर रेलगाड़ी मुझ से गुज़रती है
हर स्टेशन मुझ से छूट जाता है #mera_aks_paraya_tha
#मेरा_अक्स_पराया_था
#railgadi
#रेलगाड़ी
#kavishala #hindinama #tassavuf

बिलखते अल्फ़ाज़

#जिंदगी#रेलगाड़ी की पटरियो की तरह वीरान सी हो गयी है कभी-कभी कुछ रेलगाड़ीया इन वीरान पटरियो मे हलचल(#खुशी#दर्द) पैदा कर जाती है #nojotohindi #nojotopoem #OpenPoetry

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जिंदगी रेलगाड़ी की पटरियो की तरह वीरान सी हो गयी है

कभी-कभी कुछ रेलगाड़ीया इन वीरान पटरियो मे
हलचल(#खुशी,दर्द) पैदा कर जाती है

©Anajaan Musaaphir #जिंदगी#रेलगाड़ी की पटरियो की तरह वीरान सी हो गयी है कभी-कभी कुछ रेलगाड़ीया इन वीरान पटरियो मे हलचल(#खुशी#दर्द) पैदा कर जाती है
#nojotohindi #nojotopoem #OpenPoetry

ROHAN KUMAR SINGH

प्यार करने वालों को जब जब दुनिया #तड़पायेगी मोहब्बत #रेलगाड़ी के नीचे घुस जायेगी😬😂 #nojotophoto #कॉमेडी

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 प्यार करने वालों को जब जब दुनिया #तड़पायेगी

मोहब्बत #रेलगाड़ी के नीचे घुस #जायेगी😬😂

Jyotshna 24

My Best Friend आज की दोस्ती वो रेलगाड़ी है,
जो सिर्फ मतलब की,
पटरीयों पर दौड़ना जानती है । #रेलगाड़ी#नोजोटो
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