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SURAJ आफताबी

जी साहिबा क्लास लग गई आज...💕💕 आपके श्रृंगार को गुमान हो गया, की ख़ूबसूरती उनसे है... ज़रा उनका भ्रम तोड़े.....😊😍🌷 #Milind #mearu #yqbaba #yqdidi shayari #तिल #कटि #YourQuoteAndMine Collaborating with milind patil

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चैन, करार, सुकुँ सब ले बैठा सनम की कटि का तिल
मगर,भरी महफिल "सूरज" दिल,जान भी खो बैठा देख होठों पर तिल.!! 
जी साहिबा क्लास लग गई आज...💕💕
आपके श्रृंगार को गुमान हो गया, की ख़ूबसूरती उनसे है... ज़रा उनका भ्रम तोड़े.....😊😍🌷
#milind #mearu #yqbaba #yqdidi #shayari #तिल #कटि #YourQuoteAndMine
Collaborating with milind patil

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
10 – अनुगमन

'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी।

थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

हरिसिंह राठौड़

#जय_क्षात्र_धर्म🚩🚩🚩🚩🚩
धड़ नच्चै लोहू बहै, परि बोलै सिर बोल ।
कटि कटि तन मन मे परै देन सकू मंगोल ।। #NojotoQuote

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 44 - नित्य मिलन श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो। मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं। भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

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।।श्री हरिः।।
44 - नित्य मिलन

श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो।

मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं।

भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 38 - तुलसी-पूजन मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश

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।।श्री हरिः।।
38 - तुलसी-पूजन

मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 34 - अन्वेषण 'तू क्या ढूंढ़ रहा है?' जब कोई कमर झुकाकर भूमि से दृष्टि लगाए एक-एक तृण का अन्तराल देखता धीरे-धीरे पद उठाता चले तो समझना ही होगा कि उसकी कोई वस्तु खो गयी है और वह उसे ढूंढ रहा है। साथ ही वह वस्तु बहुत छोटी होनी चाहिये, जो तृणों की भी ओट में छिप सके। कन्हाई कमर झुकाये एक-एक पद धीरे-धीरे उठाता चल रहा है। इस चपल ऊधमी के लिये इस प्रकार पृथ्वी पर नेत्र गड़ाकर चलना सर्वथा अस्वाभाविक है। ऐसी क्या वस्तु इसकी खोयी है कि इतनी शान्ति से, इतनी स्थिरता एकाग्रता से लगा है अन्वेषण

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।।श्री हरिः।।
34 - अन्वेषण

'तू क्या ढूंढ़ रहा है?' जब कोई कमर झुकाकर भूमि से दृष्टि लगाए एक-एक तृण का अन्तराल देखता धीरे-धीरे पद उठाता चले तो समझना ही होगा कि उसकी कोई वस्तु खो गयी है और वह उसे ढूंढ रहा है। साथ ही वह वस्तु बहुत छोटी होनी चाहिये, जो तृणों की भी ओट में छिप सके।

कन्हाई कमर झुकाये एक-एक पद धीरे-धीरे उठाता चल रहा है। इस चपल ऊधमी के लिये इस प्रकार पृथ्वी पर नेत्र गड़ाकर चलना सर्वथा अस्वाभाविक है। ऐसी क्या वस्तु इसकी खोयी है कि इतनी शान्ति से, इतनी
स्थिरता एकाग्रता से लगा है अन्वेषण

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 22 - नाम बताओ 'अरे, कौन है? छोड़ भी।' आज तनिक भद्र सखाओं से हटकर तमाल तरु के मूल में आ बैठा था। तमाल की ओट से आकर कन्हाई ने पीछे से उसके दोनों नेत्र अपने करों से बन्द कर लिये भद्र चौंका नहीं; किन्तु उसने अपने दोनों करों से नेत्र बन्द करने वाले के कर कलाइयों से कुछ ऊपर पकड़ लिये। अब यह स्पर्श भी क्या पहिचानने की अपेक्षा करता है? रुनझुन नूपुर भी बजे थे। बहुत सावधानी से आने पर भी कटि की मणिमेखला में कुछ क्वणन हुआ ही था और नन्दनन्दन के श्री अंग से जो उसकी वनमाला में लगी तुलसी का स

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|| श्री हरि: ||
22 - नाम बताओ 

'अरे, कौन है? छोड़ भी।' आज तनिक भद्र सखाओं से हटकर तमाल तरु के मूल में आ बैठा था। तमाल की ओट से आकर कन्हाई ने पीछे से उसके दोनों नेत्र अपने करों से बन्द कर लिये भद्र चौंका नहीं; किन्तु उसने अपने दोनों करों से नेत्र बन्द करने वाले के कर कलाइयों से कुछ ऊपर पकड़ लिये।

अब यह स्पर्श भी क्या पहिचानने की अपेक्षा करता है? रुनझुन नूपुर भी बजे थे। बहुत सावधानी से आने पर भी कटि की मणिमेखला में कुछ क्वणन हुआ ही था और नन्दनन्दन के श्री अंग से जो उसकी वनमाला में लगी तुलसी का स

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले

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।।श्री हरिः।।
17 - शीत में

इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है। #Books

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|| श्री हरि: || 
7 - गायक

श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए।

वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।

वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 5 - भोला 'कनूँ ! खूब मधुर, बहुत स्वादिष्ट पायस है।' भद्र अपने सम्मुख केशर पड़ा सुरभित पायस से परिपूर्ण पात्र लिये बैठा है। 'तू खायेगा?' 'खाऊँगा!' कोई स्नेह से बुलावे तो व्रजराजकुमार भोग लगाने न आ बैठे ऐसा नहीं हो सकता। अब श्यामसुन्दर भद्रके समीप आकर बैठ गया है। श्याम और भद्र दोनों बालक हैं। दोनों लगभग समान वय के हैं। इन्दीवर सुन्दर कन्हाई और गोधुम गौर भद्रसैन। दोनों की कटि में पीली कछनी है, किन्तु कृष्ण के कन्धे पर पीताम्बर पटुका है, भद्र का पटुका नीला है। दोनों के पैरों में #Books

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|| श्री हरि: || 
5 - भोला

'कनूँ ! खूब मधुर, बहुत स्वादिष्ट पायस है।' भद्र अपने सम्मुख केशर पड़ा सुरभित पायस से परिपूर्ण पात्र लिये बैठा है। 'तू खायेगा?'

'खाऊँगा!' कोई स्नेह से बुलावे तो व्रजराजकुमार भोग लगाने न आ बैठे ऐसा नहीं हो सकता। अब श्यामसुन्दर भद्रके समीप आकर बैठ गया है।

श्याम और भद्र दोनों बालक हैं। दोनों लगभग समान वय के हैं। इन्दीवर सुन्दर कन्हाई और गोधुम गौर भद्रसैन। दोनों की कटि में पीली कछनी है, किन्तु कृष्ण के कन्धे पर पीताम्बर पटुका है, भद्र का पटुका नीला है। दोनों के पैरों में
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