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Best भाल Shayari, Status, Quotes, Stories

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Amit Singhal "Aseemit"

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Nagvendra Sharma( Raghu)

#भाल पर #चंदन लगा रखा है, रुद्र कंठ पर सजा रखा है, कर रहा हुँ #ध्यान प्रभु का, #शिव ने मुझे संभाल रखा है ।। -: नागवेन्द्र शर्मा (रघु) #nagvendrasharma #mahashivratri #Bholenath

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भाल पर चंदन लगा रखा है,
रुद्र कंठ पर सजा रखा है,
कर रहा हुँ ध्यान प्रभु का,
शिव ने मुझे संभाल रखा है ।। #भाल पर #चंदन लगा रखा है,
रुद्र कंठ पर सजा रखा है,
कर रहा हुँ #ध्यान प्रभु का,
#शिव ने मुझे संभाल रखा है ।।    
-: नागवेन्द्र शर्मा (रघु)
#nagvendrasharma #mahashivratri #bholenath

Sagar vm Jangid

#dashhara #ravan जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी #sagarvmjangid

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अगर मैं रावण होता तो जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्


              इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
           पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् #dashhara #ravan 
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी

Abhay Tripathi

## my thinking###

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लोग तब बड़े नही होते जब वो अपनी देख भाल करने वाले हो जाते हैं।
बल्कि वो तब बड़े होते है जब वो दूसरे की देख भाल करने वाले हो जाते हैं ##  my thinking###

Satya Prakash Upadhyay

चाँद का टुकड़ा शायरो का ख़याल,प्रेयसी का भाल ।
पुछने को सवाल,बताने में कमाल  ।।

है  चाँद का टुकड़ा

शिव का ताज, ईद का आदाब ।
कृष्ण को श्राप, ज़मज़म का आब ।।

है चाँद का टुकड़ा

प्रेमियों का साथी,शीतलता का सारथी ।
मन का अधिपति,शृंगार रस का छत्रपति।।

है ये चाँद का टुकड़ा

वैज्ञानिकों के लिए विषय,ज्योतिषों के लिए समय।
जिसके अंदर समेटे रूपों को देख होता विस्मय ।।

बस,वही है ये चाँद का टुकड़ा #शायरो का #ख़याल,#प्रेयसी का #भाल ।
#पुछने को #सवाल,#बताने में #कमाल  ।।

है  चाँद का टुकड़ा

#शिव का #ताज, #ईद का #आदाब ।
#कृष्ण को #श्राप, #ज़मज़म का #आब ।।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 7 - निष्ठा की विजय 'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
7 - निष्ठा की विजय

'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के

Jay Thaker

shiv tandav

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जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम् shiv tandav

Bharat Bhushan Jha"Bharat"

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चाँटा पड़ा है जोर से,
गाल हुआ है लाल।
बहुत उच्च का काम है, 
ऊँचा हुआ है भाल।
ऊँचा हुआ है भाल,आँख नोचेंगे उसकी।
हैं भारत के लाल,आँख उठती हो जिसकी।।
माता रो ना पाय,लाल जाने ना पाये।
जो भी आये पास,बही तो मुँह की खाये।।

भारत भूषण झा "भरत" #NojotoQuote

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले

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।।श्री हरिः।।
17 - शीत में

इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है। #Books

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|| श्री हरि: || 
7 - गायक

श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए।

वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।

वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।
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