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Azaad Pooran Singh Rajawat
"बिंदु है विमल शशि नयन निकट का तारा है रोशन होती रजनी इससे रोशन होता दिल हमारा है।" ©Azaad Pooran Singh Rajawat #बिंदु है विमल शशि#
रिंकी✍️
बिंदु तुमसे ही शुरू हुआ था मेरा पहला पड़ाव सीखा था मैंने कुछ लकीरें तुमसे ही तुमसे ही मै कुछ अक्षर और फिर शब्द तक कि यात्रा तय कर पाई बिंदु तुम शुरुआत थी मेरी जिंदगी के खूबसूरत एहसासों की तुम मात्र बिंदु थी लेकिन तुम शुरुआत थी मेरी यात्राओं की तुम थी उन यात्राओं मे हमेशा बरकरार जहां तुम्हारे सिवा मेरा कोई और न था ✍️ चन्द्र विद्या #बिंदु #यकदीदी #यकबाबा
Rahul Saraswat
बिंदु से बिंदु मिले बन जाती है लकीर न कोई ठोर ठिकाना तेरा चलते रहो फकीर #बिंदु#yqdidi#yqbhaijan
Shikha Mishra
तेरे नाम पर लगा चन्द्रबिन्दु अब समझ गयी माँ चंद्र-सी तेरी गोद में, बिंदु-सी लेटी हुई हूँ मैं. #yqbaba #YQDidi #yqbhaijan #YoPoWriMo #tmpd #love #mother #नाम #चन्द्रबिन्दु #माँ #चंद्र-सी #गोद #बिंदु-सी #लेटी #मैं
कवि राहुल पाल 🔵
मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१! वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने , हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२! जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे , जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३! वो न देखे हमारी तरफ अब कभी , साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे, वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु , बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४! जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे !५! वो अंक बने और मैं बना शून्य सा , वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे !६! तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे .. मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१! वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे
Amrata shakya
बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में, कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥
Amrata shakya
अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।। लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।। बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।। हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।। Third party image reference Third party image reference बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में, कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥ Third party image reference Third party image reference ऐसी ही गति तेरी होगी, निश्चित है क्यों देरी होगी, गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे॥ निश्चय करके फिर न ठहर तू, तन रहते प्रण पूरण कर तू, विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे?
vivek singh
इतिहास के पन्नो मे अंकित गौरवशाली एक बिंदु हुँ मैं, उत्पत्ती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै | जब पृथ्वी थी शुन्य से भरी हुई, अंधकार से भरी हुई, जग का हाथ पकड़ ज्ञान का दिप जलाया हमने, दिनकर की लाली दे कर के अंधकार मिटाया हमने, पीड़ा वसुधा का हरने को अध्यात्म का तंत्र दिया, वेदों का उपहार दिया " ॐ" नाम का मंत्र दिया , जब भ्रमित हुआ पार्थ रण मे तब गीता का मार्ग दिखलाया है, सर्वत्र मुझी से निकले हैं मुझमे ही सकल समाया है, मै राम कृष्ण मै अनंत विशाल मै दुर्गा चंडी माहकाल, मै इन्दु,प्रभाकर से प्राचीन रग-रग मे लिप्त अनुभुती नवीन, आदि से अनंत का संपूर्ण सिन्धु हुँ मै ,, उत्पत्ती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || रक्त की एक -एक बुंद राष्ट्र पे भर-भर नेवछावर कर दूँ, जब मै खोलुँ आंख तिसरी तो मरघट मे धुंआधार हर-हर कर दूँ, राष्ट्र भुमी के कण-कण मे जो माँ देखे वो हर दृष्टि हिंदू है, धू-धू कर जलती ज्वाला मे जौहर की प्रवृत्ति हिंदू है , व्यक्तित्व हिंदू है,अस्तित्व हिंदू है , अन्तर्मन के कण-कण की अभिव्यक्ती हिंदू है , स्वयं का नही अपितु संपूर्ण विश्व का कल्याण हो जाये, हिंदुत्व वही जिसका मनुष्यता मात्र पे नेवछावर प्राण हो जाये,, त्याग, पराक्रम और मानवता का विशिस्ट संगम हुँ मै , उत्पती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || मै गीता का ज्ञान अमर मै कुरुछेत्र का महा समर मै माधव का चक्र सुदर्शन हुँ मुख मे तीनो लोक का दर्शन हुँ पल भर मे प्रलयंकर हुँ मै आदि पुरुष हुँ शंकर हुँ मै रौद्र हुँ श्रृंगार भी मै, ढाल भी हुँ प्रहार भी मै मै वचन बध्ह मै मृत्यु द्वार पे कवच-कुंडल का दान करूँ, समस्त के उद्धार हेतु मै ही तो विष का पान करूँ मै प्रकृति का हुँ दृश्य अकाण्ड समाहित मुझमे अनन्त ब्रह्माण्ड सकल धरा के परिधि का केंद्र बिंदु हुँ मै उत्पती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || सृष्टि के माथे का चंदन हुँ मै मानवता का अभिनंदन हुँ मै जग को जीना सिखलाया हमने शुन्य से अनन्त तक बतलाया हमने सब मे सम्लित हो जाता हुँ मै गैरों को भी अपनाता हुँ मै प्रेम पुष्प का प्रतिक हुँ मै सभी धर्मों का अतीत हुँ मै मृत्यु मात्र से भयभीत नही,अमरत्व का अमिट एक गीत हुँ मै ! आकाश से पाताल तक,गत और अनागत काल तक , संपूर्ण सृष्टि के संस्कृतियों का सिन्धु हुँ मै , उत्पती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || नही सीमा का विस्तार किया, मैने बस प्रेम प्रसार किया ज्येष्ठ नही अपितु श्रेष्ठ भी हुँ पर अन्यथा न शस्त्र उठाया है हिंदू बन जाने को कहो कब किसका रक्त बहाया है कितनी मजारेँ दफ़न किया कितने मिनार गिरायें है मानवता के आड़ मे कहो कब धर्म को दिवार बनायें है सर्व धर्म सम्भाव यही मात्र मुल मेरे हैं मंदिर के निर्माण हेतु बोलो कब मस्जिद तोडे है पर मेरे सरल स्वभाव पे तुम अपनी मर्यादा भुलो ना गले लगाया है तुमको तो पीठ पे शूल हुलो ना पद्मवती का प्रण तुम भूलो ना महाराणा का रण तुम भूलो ना भूलो ना गोरा-बादल के तलवरों का तुम प्रहार धड़ मात्र यम के दूत बने करते सत्रु का तर-तर संहार भूलो ना विर शिवाजी को जब भगवा ध्वज ले निकले थे मराठी रक्तों के शोलों से औरंगजेब जब पिघले थे केशरिया ध्वज मे लिपटा जलती ज्वाला का सिन्धू हुँ मै , उत्पती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || रात्रि से प्रभात का प्रारंभ हूँ मैं, ब्रह्माण्ड के सृजन का आरंभ हूँ मैं, एक जननी, एक ईश्वर पृथक नहीं अखंड हूँ , गंगा सी अविरल अनंत हिमालय सा प्रचंड हूँ ,, मै बुद्ध मे, महावीर मे मै साई और कबीर मे मै, उत्साह मे मै, पीर मे मै, हिन्द के हर नीड़ मे मै,, हो गया जहाँ सर्वस्व अंतिम वहाँ से शुरू हूँ मैं, अखंड भारत का हूँ अटल संकल्प पुरातन काल से ही विश्व गुरु हूँ मैं,, भारत के आभामंडल का इंदु हूँ मैं, उत्पत्ती से अंत्येष्टि तक मै हिंदू हुँ हाँ हिंदू हुँ मै || #NojotoQuote मै हिंदू हूँ हाँ हिंदू हूँ मैं