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Best नेताओं Shayari, Status, Quotes, Stories

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Pushpa Sharma "कृtt¥"

YumRaaj ( MB जटाधारी )

#YumRaaj369 #nojotohindi #romanticmusic #नेताओं को चेतावनी नहीं लट्ठों की भाषा समझानी होगी।🤔

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Ayesha Aarya Singh

#जो जनता को भायेगी उसी की सरकार आयेगी घप्पले पहले भी होते थे , अब भी होयेंगें पर क्या, इस बार जनता की समस्याओं का #समाधान हो पायेगा या सारे वादे हवा में ही उड़ कर रह जायेंगे

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जो जनता को भायेगी 
उसी की सरकार आयेगी
घप्पले पहले भी होते थे ,
अब भी होयेंगें
पर क्या,
इस बार जनता की समस्याओं का 
समाधान हो पायेगा या 
सारे वादे हवा में ही उड़ कर रह जायेंगे 
और फिर भी अंधभक्त जनता 
किसी पार्टी का logo माथे पे लगा कर   
नेताओं का गुणगान ही करते रह जायेंगें ||

©Ayesha Aarya Singh #जो जनता को भायेगी 
उसी की सरकार आयेगी
घप्पले पहले भी होते थे ,
अब भी होयेंगें
पर क्या,
इस बार जनता की समस्याओं का 
#समाधान हो पायेगा या 
सारे वादे हवा में ही उड़ कर रह जायेंगे

Aditya Kumar Bharti

#नेताओं के लिए

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सम्मान हमेशा  तुम शहर मिटाने आये हो कभी नेताओं पर भी नज़र डालो।
आम आदमी को मारने से फुर्सत मिल गई हो तो उनके लिए भी वक़्त निकालो।।

©Aditya Kumar Bharti #नेताओं के लिए

Farukh Maniyar

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मैं लात मारता हूँ उस 3000 करोड़ की #मूर्ति को,
मैं थूकता हूँ इस देश के 4500 करोड़ के #महल में रहने वाले इंसानों पे,
मैं थूकता हूँ इस देश के उन #नेताओं के मुँह पर जो #चुनावों में अरबो रुपये फूंक देते है। 

इनके रहते अगर इस देश में ऐसी तस्वीरे देखने को मिल रही है तो थूकता हूँ इस देश के हुक्मरानों और इस देश के व्यवस्थापकों पर।
आक थू। 😭😭😭

गिरिश थपलियाल

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🙏 सारी पार्टी के #नेताओं से निवेदन 🙏
#पोस्टर, #बैनर लगवाने की बजाय #कपड़े के थैलो पर अपना प्रचार करवाये आपका प्रचार भी होगा और #भारत #प्लास्टिक मुक्त
@BJP4India @INCIndia @AamAadmiParty

ankush jain kanni

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राजनीति की मार ने नेताओं को क्या क्या सिखा दिया
बडे़ बड़े वीर नेताओं को जनता के कदमों मैं झुका दिया'

ankush jain kanni

राजनीति मार ने नेताओं को क्या क्या सिखा दिया बड़े-बड़े वीर नेताओं को जनता के सामने झुका दिया

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 राजनीति मार ने नेताओं को क्या क्या सिखा दिया  
बड़े-बड़े वीर नेताओं को जनता के सामने झुका दिया

Abhishek Kumar(ABHI)

comnt k sath btaye kasa hi ye geet

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मुल्क या मज़हब

ऐ मेरे इस मुल्क के लोगो
आपस में मिलकर रहिये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

मंदिर हो या मस्जिद सब में
एक खुदा ही बसता है
फिर क्यूॅ राम-रहीम की खातिर
हिन्दू-मुस्लिम लड़ता है
मंदिर-मस्जिद में फॅस करके
इंसानियत न खतम कीजिये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

गौ हत्या पर लड़ मरते हो
बाकी बात नही करते
बे-जुबान पषुओं की चिंता
संग में क्यूं नही तुम करते
अपने मतलब की खातिर
इनका बटवारा मत करिये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

एक-दूजे के बेटी-बहन की
इज्जत दोनो लूट रहे
आने वाली नस्ल के रग में
कौम का विश है घोल रहे
अपने अहम के आग में अपने
मासूमों को न जलाइये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

कौन सा धर्म था उनका
जिन्होने छाती पर गोलियॉ खाई थी
देष की आजादी के खातिर
अपनी बली चढ़ाई थी
याद करके उनकी कुर्बानी
देष पर थोड़ा रहम कीजिये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

राजनीति में फॅस करके तुम
आपस में क्युं लड़ते हो
नेताओं के भड़काने से
गलत काम क्युं करते हो
बहुत सुन चुके नेताओं की
खुद के दिल की अब सुनिये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये
 

मज़हब नही सिखाता है कि
आपस मे तुम बैर करो
सब कुछ अच्छा हो जायेगा
बस थोड़ा सा धैर्य धरो
जन्नत सा यह देष तुम्हारा
दोजख इसे न बनाइये
हिन्दू-मुस्लिम भूल के खुद को
हिन्दुस्तानी बस कहिये


ABHISHEK KUMAR GUPTA

मुक्त वर्ग - १ / Open Category - 1,



 #NojotoQuote comnt k sath btaye kasa hi ye geet

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह?  वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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Story of Sanjay Sinha 
 कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? 
वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं।
अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम
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